आज ५ जनवरी है
तडके लगभग ४ बजे वापसी हुई
पानीपत आ गया
१ जनवरी से सांपला , भुसावल, रतलाम के
कवि सम्मेलनों को निबटाते हुए थकान के मारे सोकर अब उठा हूँ
और देखता हूँ कि इस बीच और क्या-क्या हुआ...
कुछ विशेष समझ में नहीं आ रहा कि
क्या लिखूं क्या पोस्ट करूं
फिर भी दो दोहे प्रस्तुत करता हूँ
कि
सच में मोती सीप सम प्रीत सुखद अनमोल
पर तन को सांकल लगा मन की सांकल खोल
क्या बतलाएं आपको अनहोनी का हाल
चिंतित दुनिया हो रही मस्ती से कंगाल
--योगेन्द्र मौदगिल
10 comments:
कुछ मित्र मेरे ब्लॉग पर आकर छंद-दोहे आदि की मांग कर रहे हैं जी
यानि कुयें को छोडकर प्यासे से पानी मांग रहे हैं :)
आपके पास भेजता हूँ, अभी
प्रणाम
गुरुदेव मज़ा आ गया ...
आपको नया साल बहुत बहुत मुबारक ...
यही मस्ती का गुण तो सीखना चाह रहे हैं।
बिल्कुल सही बात कही।
कबीर की टक्कर के दोहे लिख दिए हैं आपने...गज़ब कर दिया भाई...
छबीस दिसंबर को को मेरे एक अभिन्न मित्र की माता जी अचानक देहावसान होने के कारण मुंबई से बाहर था और आपसे मिल नहीं सका...दो तारीख़ को लौटा हूँ...आपसे न मिल पाने का अफ़सोस पाले बैठा हूँ...पर इस साल मिले बिना ना छोडूंगा...कसम खाली है मैंने...सच्ची...
नीरज
... short-sweet !!
ये दो दोहे तो दो सौ के समान हैं ।
बहुत खूब ।
वाह,,
दोहे तो सदैव की भांति बेजोड़ हैं...
आप पहले ठीक से आराम कर थकान मिटा लें हम प्रतीक्षा कर लेंगे..
सुन्दर!
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