५ दोहों की बारी.......

मैं एक विचित्र ऊहापोह में था 
भाई सतीश जी ने उबार लिया 
सही समय पर सही सलाह दे डाली 
अब मैं निश्चिन्त हूँ लेकिन इस सब के बावजूद 
दुष्यंत कुमार का एक मतला याद आ रहा है 
कि 
मत कहो आकाश में कोहरा घना है 
ये किसी कि व्यक्तिगत आलोचना है 
खैर  
चूंकि आज 
५ दोहों की बारी है 
सो प्रस्तुत कर रहा हूँ  
कि
पत्थर-झंडे गाड़ कर ऊंची करी दूकान 
पंडिज्जी लाला हुए बेच बेच भगवान 

चौबीसों घंटे मांगता अब तो पेप्सी कैन 
मेरा बेटा हो गया तेंदुलकर का फैन

घर में टीवी बेचता चड्डी और बनियान 
बच्चे इंचीटेप ले नाप रहे सामान

टीवी पर सब देखते कूल्हों के अम्बार 
उनके आगे व्यर्थ है ख़बरों का संसार

नित्य जंग लडती रही साँवरियों की टीम 
दिवास्वप्न थी बाँटती गोरेपन की क्रीम
--योगेन्द्र मौदगिल 

26 comments:

पी.सी.गोदियाल "परचेत" said...

बहुत खूब मौदगिल साहब , करारे रहे ये दोहे भी !

soni garg goyal said...

वाह सर, एक एक दोहा सीधा कटाक्ष करता है ! बहुत खूब रहे आपके ये पांच दोहे !

Majaal said...

दोहों से आगे बढ़े, नग्मों का आग़ाज,
फॉर्म में आते देखते है, योगिंदर महाराज!

Arvind Mishra said...

पंडित जी पिज्जा बेच रहे हैं ऐसा कुछ पहले समझा -मगर बाद में समझ गया -चंगा है !

M VERMA said...

बहुत सुन्दर
सभी के सभी मासूम .. अरे नहीं चुटीले हैं

Udan Tashtari said...

बेहतरीन समसमायिक दोहे..

सुज्ञ said...

आज तो करारे,तीखे,नमकीन!!
मज़ा आ गया!!
यह समझ में नहिं आया
बच्चे इंचीटेप से ले नाप रहे सामान।

डॉ टी एस दराल said...

दोहे का यह अंदाज़ तो निराला है ।
बढ़िया और सही व्यंग , तेज़ धारदार ।

SKT said...

खूब खबर ली अपने बाजारीकरण की, दोहा का तो झंडा ही गाड दिया!

Kajal Kumar's Cartoons काजल कुमार के कार्टून said...

वाह पांच दोहों में तो ग़ज़ल ही हो जाती है . बहुत सुंदर.

समयचक्र said...

दुष्यंत जी के मतले के क्या कहने...बहुत सुन्दर है .. दोहे लाजबाब लगे ....आभार

ताऊ रामपुरिया said...

बेहतरीन और सटीक.

रामराम.

संगीता स्वरुप ( गीत ) said...

बहुत बढ़िया ...अच्छा व्यंग है

राज भाटिय़ा said...

अजी दोहे तो आज का सच है , बहुत सुंदर लिखा आप ने धन्यवाद

sandhyagupta said...

सब बाज़ार की माया है! शुभकामनायें.

डॉ० डंडा लखनवी said...

"दोहे इतने आपके, ’मौदिगल जी' दमदार।
इनको पढ़कर आँख दो, हो जाती हैं चार॥"
सद्भावी -डॉ० डंडा लखनवी

विनोद कुमार पांडेय said...

आधुनिकता का प्रभाव और बाजार के बढ़ते कुप्रभाव पर एक बेहतरीन व्यंग...सुंदर दोहे...प्रणाम ताऊ जी

Sulabh Jaiswal "सुलभ" said...

वाह... सटीक दोहे हैं.
बाज़ारवाद जो न कराये.

सर्वत एम० said...

दोहों पर आप जो तीखे व्यंग्य का तड़का लगते हैं, यही हर किसी के बस की बात नहीं. मैं पहले भी एक-आध बार आपके ब्लॉग तक आया था लेकिन कमेंट्स की भारी-भरकम भीड़ देख कर हिम्मत जवाब दे गयी और बगैर कमेन्ट दिए वापस लौट आया. आप महान हैं, न सिर्फ मेरे ब्लॉग तक पहुंचे बल्कि बंदे को अपने कमेन्ट से भी नवाज़ा.
मैं भी आप से मिलने की इच्छा रखता था लेकिन हिम्मत का अभाव! अब मिल गए हैं तो मिलते रहेंगे ना!

नीरज गोस्वामी said...

भाई जी आपकी जय हो...जय हो...जय हो...
नीरज

परमजीत सिहँ बाली said...

बहुत खूब मौदगिल साहब|

अन्तर सोहिल said...

हमेशा की तरह
छोटी-छोटी पंक्तियों में शानदार बडे-बडे व्यंग्य

प्रणाम स्वीकार करें

Parul kanani said...

sir..aapka andaaz nirala laga..too gud!

पूनम श्रीवास्तव said...

aadarniy sir, sarvpratham mere blog par aane avam mera housla bdhaane ke liye hardik dhanyvaad.
aapke dohe bahut hi achhe lage .samyikta se bhar pur ek ythath -arthatmak chitran.

poonam

रंजना said...

वाह...सारे के सारे लाजवाब....बेहतरीन !!!

शब्दों के बाण क्या सान साधकर मारे हैं आपने...

Satish Saxena said...

आजकल आप पूरे कबीरपंथी हो गए हो ...तीर कुछ ज्यादह तीखे नहीं हो गए ?? :-)
शुभकामनायें भाई जी !