समझने वालो की समझदारी का सम्मान करना चाहिए............
हम तो भैय्या......
सब कुछ सीखा हमने न सीखी हुशियारी
सच है दुनिया वालों के हम हैं अनाड़ी
खैर .........
सब कुछ सीखा हमने न सीखी हुशियारी
सच है दुनिया वालों के हम हैं अनाड़ी
खैर .........
वायदानुसार ४ दोहे प्रस्तुत हैं कि
पीठ दिखा कर हो गए, बात बात में ढेर.
घर का नाम डुबो रहे, पट्ठे घर के शेर ..
लोग बावले हो गए, सुन कर तीन के तीस.
चाँद चढ़ा चम्पत हुए, चोर चार सो बीस..
पहले आँखें मूँद कर, खूब बढाया रोग.
आग लगी तो फिर कुआँ, चले खोदने लोग..
अग-जग को दिखता नहीं, अपने मन का खोट.
देख पराया सुख लगे, अंगारों पर लोट..
--योगेन्द्र मौदगिल
26 comments:
बढ़िया दोहावली
पहले आँखें मूँद कर, खूब बढाया रोग.
आग लगी तो फिर कुआँ, चले खोदने लोग..
बहुतई गजब का लिखें हैं ....आभार
बहुत बढ़िया दोहे ...अच्छा व्यंग है ...
खूब कही. बहुत सुन्दर.
आपकी दोहों को पढ़ कर मन गदगद हो गया।
सटीक व्यंग्य अति प्रभावकारी अभिव्यक्ति !
-सद्भावी -डॉ० डंडा लखनवी
वाह बहुत सुंदर.
कमाल के दोहे हैं ज़नाब!
बहुत सुंदर!
बहुत सुन्दर अनुप्रास ....सभी दोहे बहुत असरदार और वास्तविकता से सटे हुए है .
आभार
आपके दोहे ..
बहुत सुन्दर
मुझे भले से लगे अमरती, जलेबी, पोहे
पर आज तो ख़ूब जमे आपके ये दोहे....
वाह...बहुत बढ़िया...
सुंदर प्रस्तुति!
“कोई देश विदेशी भाषा के द्वारा न तो उन्नति कर सकता है और ना ही राष्ट्रीय भावना की अभिव्यक्ति।”
बहुत खूबसूरत ग़ज़ल...
बहुत ही बढ़िया दोहे!
जबरन खुद पर थोपिए, होंगे खुद ही हलाल,
बचिए करने से ऐसा, इतिहास करे मलाल,
पर गर यूँ वादा निभे, तो बुरा नहीं 'मजाल'!
सारे ही दोहे श्रेष्ठ हैं।
ye hui na baat...too gud! :)
सभी दोहे एकदम बढ़िया.
वाह गुरुदेव ... आपकी कलाम की पैनी धार अपना कमाल दिखा रही है .... काड़ुवा सत्य बता रही है ....
बढ़िया दोहावली|
दोहों में यही तो विशेषताएं है, दो पंक्ति में ही सारा कथ्य कह जाते है।
सुन्दर दोहे!! आभार्।
बहुत बढिया !!
क्या बात है । दोहों की बहुत बढ़िया रंगत आई है ।
वाह वाह्! क्या खूब दोहावली रची है महाराज्!
अपने इस हुनर से दीवाना बना दिया है आपने...वाह...क्या दोहे कहें हैं...
नीरज
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