मस्जिद की मीनारें बोली......

फार्म में आने न आने जैसा कुछ नहीं 
दर असल मेरा टाइपिंग अभ्यास रैमीगटन की बोर्ड पर था 
अभी पहले जैसा मज़ा नहीं आ रहा है पर फिर भी  
खैर 
चार लाइना देखें 
कि 
मस्जिद की मीनारें बोली मंदिर के कंगूरों से 
संभव हो तो देश बचा लो मज़हब के लंगूरों से 

लगे जो ऊँची ड़ाल 'मौदगिल' दोष है क्या अंगूरों का 
लेकिन है नाराज़ लोमड़ी बेचारे अंगूरों से 
--योगेन्द्र मौदगिल



29 comments:

Satish Saxena said...

क्या गज़ब लिखा है यार ! मुझे नहीं लगता कि ब्लाग जगत ने आपको उचित सम्मान दिया है , आप जैसे लोग ब्लाग लिखते हैं कम से कम मुझे गर्व है कि मैं भी आपके आसपास कुछ कुछ लिखता हूँ !
कभी कभी रेड वाइन भी पीया करो :-)
शुभकामनायें !

Satish Saxena said...

इस रचना को ले जा रहा हूँ "मेरे गीत" की शोभा बढ़ाएगा ! साभार

Arvind Mishra said...

क्या खूब !

शारदा अरोरा said...

शुरू की तीनों पंक्तियाँ ...वाह वाह ...चौथी पंक्ति में कुछ झोल है ..क्या ऐसा चलेगा ...कह कर खट्टे , सदियों से नाराज लोमड़ी बेचारे अंगूरों से ...आप बहुत बड़े रचना कार हैं , मुआफ कीजियेगा ।

सम्वेदना के स्वर said...

कविवर! मैं समझ सकता हूँ कि आदतें भी अजीब होती हैं..अच्छी लगती नहीं बुरी छूटती नहीं... बस आपकी ग़ज़ल का इंतज़ार है.. पहला शेर तो तमाचा है उन फ़िरक़ापरस्तों पर जो मज़हब के नाम पर सियासत की रोटी सेंक रहे हैं... और दूसरा शेर तो बस मुस्कुराने पर मजबूर कर देता है!

संगीता स्वरुप ( गीत ) said...

बहुत बढ़िया कटाक्ष है ....

hem pandey said...

मस्जिद की मीनार और मंदिर के कंगूर की बात मजहब के लंगूर के कान तक नहीं पंहुचती |

SATYA said...

बहुत बढ़िया.

पी.सी.गोदियाल "परचेत" said...

समझदार के लिए ज्ञानवर्धक !

vandana gupta said...

दो ही शेरों मे वो सब कह दिया जो लोग चाह कर भी नही कह पाते………………गज़ब की प्रस्तुति।

honesty project democracy said...

विचारणीय प्रस्तुती और स्वार्थी लोगों पर चोट करती रचना ... लेकिन क्याकरें सब के सब ऐसे ही हैं ...

समयचक्र said...

वाह बहुत बढ़िया गजल ....आभार

कडुवासच said...

... behatreen ... bhaavpoorn gajal !!!

Dr. Zakir Ali Rajnish said...

मौदगिल जी, बहुत खूब लिखा है आपने। बधाई।
………….
सपनों का भी मतलब होता है?
साहित्यिक चोरी का निर्लज्ज कारनामा.....

डॉ टी एस दराल said...

बहुत बढ़िया मुक्तक लिखा है । बेहतरीन ।

Taarkeshwar Giri said...

Apne ne to kamal hi kar diya, Matra Chhar line main hi sabko neeche gira diya.

Accha laga


www.taarkeshwargiri.blogspot.com

Satish Saxena said...

http://satish-saxena.blogspot.com/2010/08/blog-post_13.html

आपकी चर्चा है पढियेगा !

ताऊ रामपुरिया said...

वाह क्या बात कही है? देश बचालो लंगूरो से..बहुत शुभकामनाएं.

रामराम.

nilesh mathur said...

कमाल कि पंक्तियाँ है, बहुत ही सुन्दर सन्देश देती हुई खूबसूरत रचना!

Parul kanani said...

fantastic sir ji :)

राज भाटिय़ा said...

आप से सहमत है जी

वन्दना अवस्थी दुबे said...

वाह!! बहुत खूब मौदगिल जी.

Hari Shanker Rarhi said...

bahut achchhe udgaar!

हर्षिता said...

देखन में छोटन लगे घाव करें गंभीर वाली पंक्ति को चरितार्थ कर दिया आपने। तीखा व्यंग है।

Asha Joglekar said...

मस्जिद मंदिरों को तो पास पास रहने में कोई एतराज नही ।
यह हम उनमें जाने वाले ही हैं जिन्हे इबादत का मालूम राज नही ।
चार लाइना भी पूरी गज़ल बराबर गुरुदेव ।

Mahfooz Ali said...

अरे! सर! .......ग़ज़ब का लिखा है अपने.... दिल को छू गया...
--
www.lekhnee.blogspot.com


Regards...


Mahfooz..

देवेन्द्र पाण्डेय said...

इन चार पंक्तियों के लिये हजार बार नमन.
याद करूंगा और जो मिलेगा उसको सुनाकर कहूंगा ..मंत्र मान कर याद कर लो. भारत की ऱक्षा इसी से होगी.
..आभार.

दिगम्बर नासवा said...

ग़ज़ब लिखा है ... क्या बात है सर ...

Ravi mansotra said...

बहुत अच्छी पंक्तियां लिखी हैं।