ज़िन्दगी इक व्यथा हो गयी.
प्रीत की दुर्दशा हो गयी.
देखते, देखते, देखते...
ज़िन्दगी क्या से क्या हो गयी.
आया तूफ़ान महंगाई का,
सारी खुशियां हवा हो गयी.
पीड़ा इतनी बढ़ी अंततः,
कुल दिनों की दवा हो गयी.
मूं छिपाती फिरै मुफ़लिसी,
लो अमीरी अना हो गयी.
देख टीवी को अम्मा कहे,
छोरियां क्या से क्या हो गयी.
पहले होती थी इंसानियत,
आजकल गुमशुदा हो गयी.
--योगेन्द्र मौदगिल
39 comments:
हमेशा ही की तरह एक और सदाबहार रचना
देखते देखते देखते
ज़िंदगी क्या से क्या हो गयी
बढ़िया बात कही है मौदगिल साहब आपने बधाई कुबूल फरमाएं ...
अर्श
आईये जानें .... क्या हम मन के गुलाम हैं!
इन्सान, इन्सानियत ये सब किताबों में लिखने लायक बातें ही रह गयी हैं...
सच कहा महाराज! आज इन्सानियत वाकई गुमशुदा हो गई.....
बेहतरीन्!
waah bahut badhiya sirji...
इंसानियत तो समाप्त है .. अच्छे भाव की रचना !!
आजकल के हालात बयाँ करती सुन्दर रचना
क्या खूब बात कही आपने,
आपने तो सिर्फ़ कही पर यह एक अदा हो गई..
बेहतरीन पंक्तियाँ...बढ़िया लगी..धन्यवाद ताऊ जी
गहरे भाव लिए सुन्दर रचना
आज के हालातों पर अच्छा कटाक्ष है....
देखते देखते देखते
ज़िंदगी क्या से क्या हो गयी
-वाकई, बहुत गज़ब!
शानदार
मान गए आपको बहुत अच्छे तरीके से बताया है आपने आज के हालातों को
लाजवाब !
देख टीवी को अम्मा कहे
छोरियां क्या से क्या हो गई ।
इन्सानियत गुमशुदा होगई
बहुत कमाल मौदगिल साहब ।
बहुत सही कहा मोदगिल जी । देखते ही देखते जिंदगी कहाँ से कहाँ पहुँच गई ।
अच्छी प्रस्तुति........बधाई.....
Awesome... !
:)
खेलते हैं छोरे गली में अभी
छोरियां क्या से क्या हो गयीं..
गुरुदेव ,,... हमेशा की तरह आपकी कलाम का जादू चल गया है ...
आगया है अब टंगडीमार ले दनादन दे दनादन। दुनिया याद रखेगी। जरा संभलके।
टंगडीमार
बेहतरीन पंक्तियाँ...बढ़िया लगी..धन्यवाद
बहुत सही है कविवर !
पीड़ा इतनी बढ़ी अंततः
कुल दिनों की दवा हो गई ...
बढ़िया .....
दर्द का हद से गुज़रना है दवा हो जाना ...
'पहले होती थी इंसानियत'
- बहुत पुरानी बात है.
बहुत सुन्दर रचना आभार
ज़बरदस्त
बेहतरीन अभिव्यक्ति।
maudgill sahab maja aa gaya padhkar bahut khub bahut khub
हम थे पटना में कुछ काम से
देर कर दी, ख़ता हो गई!
उम्मीद है माफ कर देंगे... एक बार फिर मज़ा आ गया!
Waah...Waah...Waah...
सर अपनी गलती पर एक छोटा सा सुधार करने कि कोशिश की है .....उस पर आप की राय जानना चाहूंगी !
सर अपनी गलती पर एक छोटा सा सुधार करने कि कोशिश की है .....उस पर आप की राय जानना चाहूंगी !
चोर को पकड़कर छोड़ देने की बेमिसाल कार्रवाई पर कुछ हो जाए योगेन्द्र बाबू , यानी यूनियन कार्बाइड में गुनाहगार को छोड़ देने का नाटक को लेकर।
धन्यवाद
ए. एन. नन्द
एक ग़ज़ल कहने की कोशिश की है... आपका आशीर्वाद चाहूँगा...
वाह योगेन्द्रजी !
बहुत बढ़िया !
शुरू से आख़िर तक अच्छी ग़ज़ल है ।
देख टीवी को अम्मा कहे
छोरियां क्या से क्या हो गई
पहले होती थी इंसानियत
आजकल गुमशुदा हो गई
आप आप ही हैं !
- राजेन्द्र स्वर्णकार
शस्वरं
वाह बहुत गज़ब की गज़ल है\
खोखला पन हो गया हावीबदन पर दोस्तो
जिन्दगी की जंग का अभ्यास तो जाता रहा\वाह क्या खूब कही\
आज की तकदीर-----
कद नही किरदार भी----
चार ईंटे चार पैसे
सभी शेर कमाल के हैं बधाई।
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