सुण बै ढपोरशंख.....

ब्लाग एक सार्वजनिक अभिव्यक्ति का माध्यम है
लेकिन कईं बार ऐसा लगता है कि लोग इसे बपौति मान रहे हैं

अपनी समझ से बाहर है मामला
मगर कुछेक टिप्पणियों के पढ़ने के बाद
एक ताज़ा छंद आप सब की नज़्र करता हूं
कि


सुण बै ढपोरशंख तू तो बेटे बावला है
एक बात बार-बार-बार दोहराता है

तुझे तो ये पता नहीं देश के ब्लागरों को
किस में, कहां पे ऒर कैसे मज़ा आता है

अपनी कहो तो सुनो, दूसरों की सब्र संग
वरना कहो तो कौन, किस में हिलाता है

अनूप हों के ग्यानदत्त या के हों समीरलाल
सबको ही अपनी में खूब मजा आता है
--योगेन्द्र मौदगिल

29 comments:

honesty project democracy said...

उम्दा प्रस्तुती ,लेकिन जाने भी दीजिये इस विवाद को अब ,इसकी चर्चा हम लोग बंद कर दें तो बेहतर होगा /

ब्लॉ.ललित शर्मा said...

सबको अपनी मे ही खूब मजा आथा है।

वाह वाह वाह पंडत जी यो भी खूब रही।

राम राम

डॉ. मनोज मिश्र said...

वाह-- वाह.

डॉ. महफूज़ अली (Dr. Mahfooz Ali) said...

Very good.......

राज भाटिय़ा said...

बहुत खुब जी मजेदार

संगीता स्वरुप ( गीत ) said...

बढ़िया व्यंग है....

Pt. D.K. Sharma "Vatsa" said...

भई वाह्! एकदम साच्ची बात.....
अर भाई मौदगिल जी, इब्ब कै यो प्रोफाईल आल्ली फोटू देख कै तो यूँ लग्गै जणौ बुद्धीजीवी बणन का विचार सै :-)

भारतीय नागरिक - Indian Citizen said...

यह तो खूब जोरदार रही...
महफूज जी अब वेरी गुड छोड़ भी दीजिये..

हर्षिता said...

अच्छी कही आपने मौदगिल जी।

rajkumar bhakkar said...

badhiya chhand !

विनोद कुमार पांडेय said...

ताऊ जी बहुत खूब चार लाइन में सारी विवाद ही ख़त्म कर डालें आपने..बढ़िया रचना..बधाई

Smart Indian said...

वाह जी वाह वेरी वेरी फन्नी!

Unknown said...

"सबको ही अपनी में खूब मजा आता है"

बिल्कुल सही कहा आपने! सब में हम भी शामिल हैं जी, हमें भी अपनी में खूब मजा आता है।

36solutions said...

वाह, सत्‍य.

dhiru singh { धीरेन्द्र वीर सिंह } said...

bikul theek kahaa aapane

डॉ टी एस दराल said...

मोदगिल जी , अपने ढंग से सही बात कह दी । वैसे आशा है ।

नीरज मुसाफ़िर said...

मौदगिल साहब, इब जो है, झगडे कू बन्द कर देना चाहिये।

पी.सी.गोदियाल "परचेत" said...

सुन बे ढ्पोरशंख,
तुझपर क्यों लगे पंख,
बहुत हुआ अब बंद कर
बजाना अपना शंख !!

बवाल said...

हा हा ग़ज़ब लिखा योगी बड्डे

समय चक्र said...

बढ़िया छंद ... भगवान परशुराम जयंती अवसर पर हार्दिक शुभकामनाये .

अमिताभ मीत said...

भाई आप भी इस (घन) चक्कर में ?

RAJNISH PARIHAR said...

भई वाह्! एकदम साच्ची बात.....

समय चक्र said...

बहुत सटीक सामयिक व्यग्य....आभार
परशुराम जयंती पर हार्दिक शुभकामनाये ...

ताऊ रामपुरिया said...

बहुत मेजेदार, बढिया खिंचाई कर डाली.

रामराम.

ताऊ रामपुरिया said...

भाई मौदगिल जी तैं म्हारा फ़ोन क्यूं नही ठावंता? दस दिन हो लिये मेरे यार. फ़ोन तो उठाले अक लठ्ठ ले के आणा पडेगा?

रामराम.

Udan Tashtari said...

वाह जी, बहुत सही बात कह गये...जिसे जहाँ आता हो, हमें तो बस आपको पढ़कर ही मजा आता है. :)

परशुराम जयंति की बधाई.

Khushdeep Sehgal said...

भई हमें तो कविराज मौदगिल की खरी खरी सुनने में मज़ा आता है...जय हो महाराज...

जय हिंद...

ढपो्रशंख said...

तुझे तो ये पता नहीं देश के ब्लोगरों को
किस में, कहाँ पे और कैसे मजा आता है

ढपोरशंख जी बस इतणा जाणे कि मौदगिल
यही बताने के लिये अपणा ब्लोग चलाता है

लिख कर अपणी चार शेर लिख की गजल
बिन कुछ बताये बात गोल गोल घुमाता है.

(शाईर ढपोरशंख दद्दाजी)

Mansoor ali Hashmi said...

'गल' में 'गू' आ गया है क्या कीजे?
थूंक कर चाटना, सज़ा कीजे.

किसको छोटा किसे बड़ा कीजे.
सब बराबर है अब मज़ा कीजे

बलग़मी है सिफत बलागों की,
थूंक कर साफ़ अब गला कीजे.

http://aatm-manthan.com