आदरेय भाई
अनिल पुसदकर जी की फोरस्ट्रोक टिप्पणी के सम्मान में
एक क्षणिका प्रस्तुत करता हूं कि
आधुनिक रामभक्त ने
इतिहास
कुछ ज्यादा ही दोहरा दिया
गर्भवती पत्नी को
जंगल नहीं
सीधे
स्वर्ग का रास्ता
दिखा दिया
--योगेन्द्र मौदगिल
12 comments:
आधुनिकता नही यह अमानवीयता हैं..वाह रे आधुनिक मानव...भावपूर्ण क्षणिका....
मौदगिल जी
नमस्कार
प्रहारक क्षणिका के लिए बधाई .
- विजय तिवारी ' किसलय "
nice.......बढ़िया..
गहरा वार है!!
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हिन्दी में विशिष्ट लेखन का आपका योगदान सराहनीय है. आपको साधुवाद!!
लेखन के साथ साथ प्रतिभा प्रोत्साहन हेतु टिप्पणी करना आपका कर्तव्य है एवं भाषा के प्रचार प्रसार हेतु अपने कर्तव्यों का निर्वहन करें. यह एक निवेदन मात्र है.
अनेक शुभकामनाएँ.
यह क्षणिका नहीं है
ये तो मिसाइल है भाई
अलग बात है कि आप
इस को अग्नि मानें ये त्रिशूल
http://chokhat.blogspot.com/
सिया वर राम चन्द्र की जय...
नीरज
मत भूलिए कि ये कलियुग है।
आपके ये दोहे जीवन के यथार्थ का निचोड़ हैं....बहुत सधी हुई और सटीक बात कही है...
dil jeet lete hain aap kuchh bhi likhen.. chahe kavita ho, geet ya dohe..
परिवार समाज की स्थिति की बहुत अच्छी तस्वीर खिंची है आपने अपने शब्दों में....
बहुत ही उम्दा रचना....
Poochhne aaya hoon aajkal khafa hain ya kaamon me khape hain???? :)
nazr-e-inayat nahin hoti.. ab koi shikayat nahin hoti huzoor.
संयुक्त परिवार का टूटना- आज के समय की नियति बनती जा रही है। विडंबना को उभारती हुई, अच्छी कविता।
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