इक धमाका सा हुआ जब से नगर के बीचोंबीच.
कितनी दीवारें उठी फिर घर से घर के बीचोंबीच.
इन दिवारों से कहो अब कानाफूसी बंद हो,
हर कदम पर कान हैं अब इस शहर के बीचोंबीच.
स्कूली बच्चे ढूंढते रिक्शा में बैठे गौर से,
अपना भविष्य फिल्म के हर पोस्टर के बीचोंबीच.
पेट की मजबूरियां क्या-क्या कराती हैं सखी,
सोचती अक्सर वो नीले नाचघर के बीचोंबीच.
अब तो बस आतंक के डंके बजे हैं देख लो,
मौत के अल्फाज यारों हर खबर के बीचोंबीच.
कितनी नावें गर्व से उल्टी पड़ी हैं 'मौदगिल',
कितने तिनके शान से फैले नहर के बीचोंबीच.
- योगेन्द्र मौदगिल
23 comments:
यही हालात है...
क्या खूब उकेरे हैं हालात!!
बहुत खूब, मौदगिल जी!!
आपकी कवितायें उथल पुथल कर देती हैं मन में -जैसे ये !
ग़ज़ल दिल को छू गई।
बेहद पसंद आई।
आज की असलियत!
सामाजिक हालात की सच्ची तस्वीर पेश की है आपने। वाह।
सादर
श्यामल सुमन
09955373288
www.manoramsuman.blogspot.com
वर्तमान परिस्थितियों की सच्ची तश्वीर खींच दी आपने। आभार
maudgilji , hamesha ki tarah. umda.
बहुत सुंदर ग़ज़ल....दिल को छू गई......
"मौत के अल्फाज यारों हर खबर के बीच..."
बिलकुल सच्ची तसवीर । आभार ।
जिन्हें नाज़ है हिंद पर
कहां हैं, कहां हैं, कहां हैं...
न किनारे, न बीचोंबीच
और हम सब मझधार में...
जय हिंद...
दुनिया के सच को गजल में बांध देना कोई आपसे सीखे।
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छोटी सी गल्ती जो बडे़-बडे़ ब्लॉगर करते हैं।
क्या अंतरिक्ष में झण्डे गाड़ेगा इसरो का यह मिशन?
एक एक शब्द से सच्चाई टपकती हुई।
बहुत सुन्दर रचना, योगेन्द्र जी।
आज की परिस्थियों को बयां करती हुई एक बेहद खूबसूरत रचना !!
भाई जी...हमेशा की तरह...जय हो...
नीरज
हम आपको पढ़ रहे हैं बीचोबीच
जय हो
हमेशा की तरह शानदार!!!कमाल की पंक्तियाँ..
वही कामयाब है जो ऊंची दीवारें खड़ी कर सकता हो.
यथार्थपूर्ण रचना
यथार्त भरा है हर शेर में ......... प्रणाम गुरुदेव .........
सही समय का आंकलन !!
लाजवाब शेर गुरुवर सब के सब...खास कर मक्ता!
आपकी कवितायें उथल पुथल कर देती हैं मन में -जैसे ये !
sanjay
fatehabad
http://sanjaybhaskar.blogspot.com
आजकल के हालात को बयाँ करती सटीक रचना
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