गेरुआ : चार व्यंग्यचित्र



गेरुआ : चार व्यंग्यचित्र------घनाक्षरी में.......

आज दूसरा




सुबह राम बेचता हूं, सांझ श्याम बेचता हूं,
फूल, परशाद, खील, नारियल-मौली जी.


राम जी की किरपा से. काया फल-फूल रही,
भगतों को देता, राम-नाम की मैं गोली जी.


सफेद संगेमरमर, दे गये हैं काले भक्त,
उसको निहार मैं तो, भूल गया खोली जी.


कृष्णमय हो गया है, अंग-प्रत्यंग मेरा,
भगतनियों से, कर लेता हूं ठिठोली जी.
--योगेन्द्र मौदगिल

14 comments:

दिनेशराय द्विवेदी said...

बहुत कड़ा व्यंग्य है! बधाई!

Arvind Mishra said...

वह आधुनिक युग बोध की घनघोर रचना !भक्त जन आबाद रहें !

डॉ. महफूज़ अली (Dr. Mahfooz Ali) said...

बहुत अच्छी लगी यह पोस्ट........

विनोद कुमार पांडेय said...

धारते है पीताम्बर,दिल में है खोट,
ऐसे बनावटी लोगों पर आपने शब्दों से करी चोट,
फिर भी ये इतने मसगूल है अपने कर्म में,
याद नही इन्हे क्या निहित है धर्म में,
और देखिए धर्म की बात करते है,

बढ़िया व्यंगचित्र चल रहे है आज कल ताऊ जी...बधाई

ब्लॉ.ललित शर्मा said...

नित बणके कृष्ण रचावै रास लीला
पीसे तो इब भूलगे डालर करो ढीला
रात नै खुब जमे महफ़िल आश्रम पे
म्हारा गला तर हो थारा भी हो गीला

योगेन्द्र जी राम-राम

मनोज कुमार said...

बेहद रोचक और मार्मिक व्यंग्य है। यह कविता आपके विशिष्ट कवि-व्यक्तित्व का गहरा अहसास कराती है।

राज भाटिय़ा said...

आज का यह सच है जी

Udan Tashtari said...

बेहतरीन!!

जल्द ही आपको पॉडकास्ट का आसान तरीका भेजता हूँ. :)

Chandan Kumar Jha said...

वाह जी !!! मजेदार जी !!!! अच्छी लगी जी :)

Khushdeep Sehgal said...

वाह भगवन, वाह भक्तन...

जय हिंद...

पी.सी.गोदियाल "परचेत" said...

धंधा चोखा प्रतीत होता है मौदगिल साहब ! बेहतर रचना

Sulabh Jaiswal "सुलभ" said...

सही चित्र खींचे हैं.

Kajal Kumar's Cartoons काजल कुमार के कार्टून said...

वाह
बहुत सही ख़ाक़ा खींचा है आज का.
आभार.

राजीव तनेजा said...

बहुत ही सही वर्णन किया है आपने आजकल की पंडिताई का