इससे पूर्व की रचना पर प्राप्त आपकी टिप्पणियों के लिये आभार प्रगट कर आप सब के स्नेह को हल्काऊंगा नहीं लीजिये एक बार फिर आप सब के लिये एक और हल्की-फुल्की रचना
क्यों है, क्या है, कैसा है..?
लगता मेरे जैसा है..
भीतर चाहे जैसा है..
पर बाहर इक जैसा है..
मुद्दत बाद मिला है वो,
अब भी बिल्कुल वैसा है..
एक झलक में चढ़ बैठा,
हाय.. नशा ये, कैसा है..
झीना-झीना सा पर्दा,
तेरी पलकों जैसा है..
वो भी तुझको ढूंढे है,
जिसका सब-कुछ पैसा है..
तन तो ढलता रहा मगर,
मन जैसा था वैसा है..
--योगेन्द्र मौदगिल
19 comments:
बहुत सही:
तन तो ढलता रहा मगर
मन जैसा था वैसा है.
हल्की नहीं आपने तो बहुत भारी रचना चेप दी :)
कभी कभी हलकी भी लगती भारी है।
जैसे छाती पर कोई चलती आरी है।
सुंदर रचना। बधाई!
बहुत सुन्दर रचना है यौगेंद्र जी, काफ़ी समय बाद आपको पढ़ा अच्छा लगा।
YOGENDRAJI, REALLY BAHUT SUNDAR SI RACHNA HAI, BAHUT ACHHI LAGI.
halki fulki si nahin
ye to bilkul bhainsa hai
teri rachna ka maza
bilkul pahle jaisa hai.
bahut khoob mudgil ji, behatareen, HALKI FULKI.
क्या बात है. फिर एक बार वैसा ही है!
झीना झीना सा पर्दा
तेरी पलकों जैसा है ..
पहले तो मतले ने फिर इस शे'र ने समा बांध दिया है आज की ग़ज़ल की बज्म में , छोटी बहा'र की उम्दा ग़ज़लों में एक ... बधाई हुज़ूर ..
अर्श
डूब गया मैं पढ़ कर रचना,मत पूछो की कैसा है,
जैसा लिखने में माहिर थे,बिल्कुल उसके जैसा है,
पढ़ा और एक एक लाइन अच्छी लगी..धन्यवाद
तन तो ढलता रहा मगर
मन जैसा था वैसा है.
कमाल है जी.......
ये ससुरा मन ही तो नहीं बदलता...आज भी वैसा का वैसा ही है ।
लगता है ये तो योगेंद्र भाई के अंदर के सीधे-साधे इंसान ही जैसा है...
जय हिंद...
bahut achchi lagi yeh kavita,,......
हलकी फुलकी बातों में काफी वज़नदार बात कह दी आपने ।
kavitt ki sahi pahichan hai aapki ye dil se via kalam nikli ye kavita
...
इस कविता को पढ़कर एक मशहूर ग़ज़ल के बोल याद आ रहे हैं ..
कितनी मुद्दत बाद मिले हो .......तुम कैसे हो ...
सुन्दर भावः लिए हुए अच्छी कविता...!!
VAAH GURUDEV .... AAJ BHI KAMAAL KI RACHNA HAI .. BAATO HI BAATON MEIN ITNA KUCH LIKH DIYA HAI .... SEEDHE DIL MEIN UTAR GAYA ...
तन तो ढलता रहा मगर
मन जैसा था वैसा है
अति सुन्दर प्रस्तुति, सुन्दर मनोभावों का वर्णन हमेशा की तरह एक नए रोचक अंदाज़ में
बधाई.
चन्द्र मोहन गुप्त
जयपुर
www.cmgupta.blogspot.com
'वो मुद्दत के बाद मिला है
फिर भी मेरे जैसा है'
भाई, बहुत सुंदर.
सबसे पहिले,
आप आये हमारे ब्लॉग पर खुदा का करम है...
कभी हम पोस्टों को कभी साइड बार को देखते हैं...
हम तो पहली बार मिले
पर लगता परिचित जैसा है
अरे छोड़ परे ये शिष्टाचार
अब बता तू कैसा है ??
और हम तो हाथ जोड़ कर गोड़ पड़ कर, कान पकड़ कर उठक-बैठक लगा कर माफ़ी माग रहे हैं ..जो ऊपर लिख दिय हैं....बस लिखने के बाद एतना न अच्छा लग गया कि हम छाप दे रहे हैं.....लेकिन आपके सम्मान को चोट न लगे बस ...!!! अगर बुरा लगे तो फट से डिलीट कर दीजियेगा....
विनीत
,
'ada'
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