राजनीति
थोथी राजनीति
थोथी राजनीति में कोई दम नहीं
यदि मान लो
किसी तरह दम हो जाये
तो ये इधर-उधर फैली खरपतवार
उसे भी खा जाये
खरपतवार का भी काम
है बड़ा गदर
ना इसकी कदर
ना उसकी कदर
चूस कर फेंक दे
नगर हो या डगर
राजनीति के शेर
गुफा में दहाडें बाहर ढेर
लेकिन भाई साहब
आप स्वयं ढूंढना फर्क
उसी गोरखधंदे का अर्क
जब कोई राजनेता
अपने चेहरे पर मलता है
तो यही गुड़गोबर जबरदस्त फलता है
इसी के सहारे
छवियां बिगडुती है बनती हैं
किसी की तनती है
किसी की छनती है
कोई सोता है
कोई रोता है
कोई पाता है
कोई खोता है
समझदार राजनीतिग्य
अपने चेहरे की कालिख
विपक्षी के साबुन से धोता है
क्योंकि जनता का तो
हर युग में यही हाल रहा है
इसीलिये अपन ने कहा है
कि
पहले आंखें मूंद कर खूब बढ़ाया रोग
आग लगी तो फिर कुआं चले खोदने लोग
--योगेन्द्र मौदगिल
11 comments:
योगेन्द्र मौदगिल जी नमस्कार , आपका लिखा सुन्दर है , आप की सुखद वापसी हुई है
वाह्! सुन्दर कविता....
मौदगिल जी,अब की बार ब्लाग पै बडे घणे दिनाँ मैंह दिखाई पडे..
अभिनन्दन बन्धु !
एक के बाद एक जबरदस्त प्रस्तुति!!
वाह!बेहतरीन हैट्रिक्।
हुम्म!
उसमें भी ख़ासकर भारतवर्ष की संसदीय राजनीति.
Thothi rajneeti per aapki kavita main aapka akramak rukh prashansniya hai.'hasya kavi darbar'main apni upastithi darz karani hai.batayen kaise?
DEEPOTSAV KI HARDIK SHUBHKAMNAYEN.
बहुत दिनों बाद आप की नयी कविता पढने को मिली.
धन्यवाद.
कविता हमेशा की तराह तेज़ कटाक्ष करती हुई है.
दीवाली की शुभकामनाये स्वीकारें.
आपकी तीनो रचनाएं पढीं जबरदस्त जूते लगाये हैं । इतना ही कर सकते हैं हम अपने ब्लॉग पर । बढिया रचनाएं ।
behatareen bhavabhivyakti. badhaai.
हे राजनैतिक व्यंग्यों के महारथी..
आओ मैँ उतार लूँ आपकी आरती
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