इस अंतराल की दूसरी कविता.............

पैंतरेबाजियां
ड्रामेबाजियां
लफ्फाजियां और चालबाजियां
हर दल का दिनमान है
सारे दलों का
अपना-अपना योगदान है
और दलों की इसी दलदल में
अपना हिंदुस्तान है
बगल में छुरी
मूंह में राम
हाथ में रम
मन में काम
अनाचार है ललित-ललाम
राधा के घर राम
सीता के घर श्याम
हे मेरे राम
ना राजपथ
ना राजपंथी
ना जनपथ
ना आमपंथी
सारे नंगे
क्या राजवादी
क्या दामपंथी
झूठे वायदे, भ्रष्टाचार
चोरी, डकैती, बलात्कार
अपहरण उद्योग गजब का धांसू
राजनीति के देवता
बहा रहे घड़ियाली आंसू
मगरमच्छों के भाव आसमान पर
तिरंगा अवसान पर
समझ में नहीं आता
हिंदुस्तान राजनेताऒं पर
या
राजनेता हिंदुस्तान पर
--योगेन्द्र मौदगिल

16 comments:

महेन्द्र मिश्र said...

बहुत सटीक रचना बहुत कुछ कहती हुई . आभार

Yogesh Verma Swapn said...

bahut umda maudgil ji , kara vyangya.

संगीता पुरी said...

राजनेताओं का सुदर चरित्र चित्रण करती हुई रचना !!

राजीव तनेजा said...

सही कहा आपने...ये राजनेता देश पर बोझ हैँ...इन्हें तो चौराहे पर खड़ा कर के....एक दो तीन...


लेकिन फिर वही दुविधा कि इनके बाद इनसे बुरे आ गए तो?...

Mishra Pankaj said...

मोदगिल जी नमस्कार
सुन्दर लगा आप्का लिखा हुआ

राज भाटिय़ा said...

बहुत सच लिखा आप ने.धन्यवाद

विनोद कुमार पांडेय said...

वाह,खूब वार पर वार,शब्दों के साथ है,
पर नही सुधरेगें ये नेता जी की जात हैं,
सब बैठे है लगाए घात,
क्या चुन चुन कर कही आपने बात,
सच्चाई किस कदर बयाँ होती है आपने बता दिया,
सभी नेताओं को बेहतर आईना दिखा दिया,
पर कौन देखे आईना जहाँ सब अंधे है,
बस पैसे बटोरना ही जिनके धंधे है,

बहुत खूब लिखा आपने..बेहतरीन प्रस्तुति,
बधाई

Udan Tashtari said...

मारक रचना!

M VERMA said...

बेहतरीन रचना.

M VERMA said...

बेहतरीन रचना.

Khushdeep Sehgal said...

दलों की इसी दल में अपना हिंदुस्तान है...
कहने को फिर भी हम महान हैं...

जय हिंद...

Anil Pusadkar said...

राजाओं ने मरने के बाद राजनेताओं और जनप्रतिनिधियों के रूप मे जन्म लेना शुरू कर दिया है और शोषण का सिलसिला जारी हो गया।

Ankit said...

नमस्कार यौगेन्द्र जी,
खूबसूरती से शब्दों का संयोजन...........और सन्देश की सटीकता ने इस कविता को उम्दा बना दिया है.
बधाई स्वीकारें

Sulabh Jaiswal "सुलभ" said...

बहुत खूब
राजनेता बनाम हिन्दुस्तान!

Pritishi said...

अच्छी रचना, यह वेर्सेस ख़ास पसंद आये -

अपना अपना योगदान है
और "दलों के इसी दलदल" में
अपना हिन्दुस्तान है

और -

"ना राजपथ
ना राज्पंथी
ना जनपथ
ना आमपांथी"
.................
छोटासा सवाल नाचीज़ का, गुस्ताखी माफ़ -
ना राजपथ
ना राज्पंथी
ना जनपथ
ना आमपांथी
सारे नंगे
......
और -
ड्रामेबाजियां, लाफ्फेबाजियाँ, घडियाली आंसू ... (या कहें, कहते अच्छा करते बुरा, तो फिर नग्नता कैसी?)

बस यही कहना चाहती हूँ के अभिव्यक्ति ज़रा-सी परस्परविरोधी लगी ... हो सकता है मैं समझ न पाई ... इसी बहाने आपसे सीख लूंगी !

pranaam
RC

ओम आर्य said...

वाह .......बहुत ही सुन्दर और वाजिब सवाल भी है ....