ब्लाग-जगत में पुनः उपस्थित हूं. लगभग २०-२२ दिन का अंतराल हरियाणा के चुनावों की भेंट चढ़ गया. कईं तरह के अनुभव हुए. अच्छे भी बुरे भी. राजनेताऒं के साथ रहना, खाना और पीना भी पड़ा. करता भी क्या धंदा मंदा था सोचा चलो यही सही.... इस बीच राह चलते कुछ नयी-पुरानी कविताएं याद हो आयी उन्हीं को आप सब के साथ बारी-बारी से बांट रहा हूं...
इस अंतराल की पहली कविता
सुर्खियों की लालसा हैरतअंगेज़ है
भारतीय राजनीतिग्य
तो कुछ ज्यादा ही तेज हैं
इसीलिये राजनैतिक पार्टियां
खबरें-दर-खबरें छाई
कहीं कांग्रेसी
कहीं समाजवादी कहीं कम्यूनिस्ट
तो कहीं भाजपाई
पर अपने तो एक ही बात समझ में आई
कि चोर-चोर मौसेरे भाई
पर लगता था कि
सारे चोरों ने कर लिया एक्का
ले लिया अनाचार का ठेक्का
शुरू किया भ्रष्टाचार का पाठ
सांम्प्रदायिकता की आरती
तो एक अनाचारी छंद सुन कर
डर गई मां भारती
छंद क्या था प्याला था ज़हर का
रुग्ण मानसिकता के ऒछे क़हर का
प्यार के धागे में
गांठों के अंबार का
रक्त के व्यापार का
ऐसा व्यापार
जिसकी टर्म्स एंड कंडीशंस थी घिनौनी
सुन कर मानवता हो रही थी बौनी
कि मुसलमान के खेत से उगा गेंहू
मुसलमान खाएगा
हिंदु के खेत से उगा चावल हिंदु के घर जाएगा
खाना रहना सोना
कमाई और पढ़ाई
सारी की सारी पट्ठों ने बांट दी भाई
देश के कर्णधार निकले कसाई
इन कसाइयों के मूंह लगा था
साम्प्रदायिकता का खून
खाली दिमाग़ में हिंसा का ज़नून
इसी ज़ुनून के हिस्से आया
सेना का जातिगत बंटवारा
खाने की अलग कौर
नहाने की अलग धारा
लेकिन इन भाड़े के टट्टुऒं को
एक बात का नहीं पता
कि कौन करेगा इनकी पहचान
कि कबूतर हिंदु है और चिड़िया मुसलमान
अमरूद सिक्ख है पपीता ईसाई
अरे कौन बतायेगा
आसमान की जाति
धरती का धर्म
पर इन साम्प्रदायिकता के हैवानों ने तो
बेच खाई शर्म
क्यौंकि यदि थोड़ी सी भी शर्म बची रहती
तो ये प्रश्न यों अनुत्तरित नहीं होते
और
हम देशवासी
धर्म और जाति की घेराबंदी में बंटे
यों नहीं रोते
यों नहीं रोते
--योगेन्द्र मौदगिल
19 comments:
खूब खींचा है ।
खींचते रहिए उधर कोई फ़र्क पड़ने वाला नहीं है ।
बहुत खूब साहब जी काफी अरसे से आपका इंतज़ार था
बहुत ही अच्छा लिखा है,,, आभार,,,, तो सर ये भी बता दीजिये की हरियाणा में किसका सिक्का चलने वाला है इस बार
http://dunalee.blogspot.com/
योगेन्द्र जी,
अंदर बाहर कोई भेद ना रहा
साथ रह के काफी कुछ जान पाये हैं
ईश्वर की अबूझ माया
ये टोपीवाले दोपाये हैं
खूब खबर ली। :)
सादर,
मुकेश कुमार तिवारी
...अपने तो एक ही बात समझ में आई
की चोर-चोर मौसेरे भाई.......
बहुत लाजबाब !
बेहतरीन
हमाम मे सब नंगे है
उपर से तो सब चंगे है
भाई खबर तो घणी जोरदार ली है पत थारी खबर इब मैं ल्युंगा..इत्ते दिन घर तैं बाहर कित घूम रे थे?
रामराम.
चलिए आप सही सलामत लौट तो आए। वरना उधर जाता है वही बरबाद हो कर आता है।
ज़बरदस्त प्रहार.कविता हथियार रूप में भी कम पैनी नहीं होती.
आज की राजनैतिक परिवेश पर सुन्दर कटाक्ष. आभार.
खामोशी के बाद मुँह खोले,
परंतु सौ आने सच बोले,
एक एक शब्द में सच्चाई है,
कविता दिल से कहूँ, बहुत ही भायी है,
लाज़बाव कटाक्ष राजनीति पर की,आपने
पूरे अंतराल की कसर पूरी कर दी आपने,
बढ़िया कविता...बधाई...
अब वापस आये हैं तो थोडा रेगुलर भी रहेंगे ऐसी आशा है !
पुनः स्वागत इस सटीक रचना के साथ. अब नियमित लिखिये-इन्तजार रहेगा.
हरियाणा चुनाव में २०-२२ दिन समर्पित कर संगति, खाने-पीने, उतने-बैठने के बावजूद कवि -मन के गहन मंथन से काफी गूढ़ बात निकल कर सामने आई है.
कविता में हरियाणा में सभी बड़ी पार्टियों का ज़िक्र कर दिया पर अपने ताऊ की पार्टी का ज़िक्र ही न किया........चौटाला भाई से कोई खुन्नस तो नहीं.........अकालियों के समर्थन पर भाजपाइयों की तरह ऐतराज़ तो नहीं........
कुल मिला कर ब्रेक के बाद आप का पुनरागमन काफी प्रभावशाली रहा, कहीं से भी थकान, हताशा नज़र नहीं आती, आता है तो कटु व्यंग का सदाबहार, जीवंत रूप,
बधाई.
चन्द्र मोहन गुप्त
jaipur
www.cmgupta.blogspot.com
राजनीतकों की सगत का असर दिख रहा है साफ़ !
तीखे तेवर पैनी धार
स्वागत है मौदगिल जी आपका
फिर एक बार
ब्रेक के बाद पढना अच्छा लगा। वही तेज धार। वही अंदाज।
लम्बे ANTRAAL के बाद ............. राज नेताओं के साथ आपने जो वक़्त गुज़ारा लगता है ये कविता उसका प्रतिफल है ........ अच्छी लताड़ लगाईं है आपने ............ पर नेता लोग जागेंगे नहीं
lajawaab dhaardaar vyangya. badhaai.
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