इधर हरियाणा में विधानसभा भंग हो गई. एकाध दिन में चुनावों की तिथि भी घोषित हो जायेगी. चाहता था कुछ चुनावी छंद प्रस्तुत करूं.... लेकिन उनसे पूर्व आप सब के लिये एक गीत प्रस्तुत कर रहा हूं.... शायद अच्छा लगे... प्रतिक्रिया अपेक्षित...
उपवन की जिनपे थी जिम्मेवारियां.
वही लिये फिरते हैं अब आरियां.
देश में बढ़ी यें कैसी दुश्वारियां----भारती के चित्र पे लहू की धारियां..
गिल्ली-डंडे वाले हाथ पीयें सिग्रेट.
गंगाजल की जगह हैं बीयर के क्रेट.
नारी का सम्मान अब बन गया रेट.
पश्चिम समान हुये हम भी अपटूडेट.
जानकी के देश बिकती हैं नारियां,
औरत के भाग्य लिखी सिसकारियां.
देश में बढ़ी यें कैसी दुश्वारियां----भारती के चित्र पे लहू की धारियां..
बैंक-बीमा इस्ट्राइक का करते हैं शोर.
ठगों की जमात का है शैयरों पै जोर.
एक जैसे लगते हैं पुलिस व चोर.
बहूरूपिये हैं सारे देखो जिस ऒर.
देश खाने की भी लगती हैं बारियां,
नाम लोकतंत्र काम है मक्कारियां.
देश में बढ़ी यें कैसी दुश्वारियां----भारती के चित्र पे लहू की धारियां..
माइक के माहिरों से कौन है बचा.
राम की कथा हो चाहे वेदों की ऋचा.
पेट भरने के लिये शोर है मचा.
राम-राम, कृष्ण-कृष्ण हो या चाचाचा.
धरम की धंदे से हैं भागीदारियां,
कीचड़ से भरी रहें पिचकारियां.
देश में बढ़ी यें कैसी दुश्वारियां----भारती के चित्र पे लहू की धारियां..
बच्चों में सरस भाव भरिये जनाब.
बहू-बेटियों का मान करिये जनाब.
टेलीविजन से पर डरिये जनाब.
घर को बाज़ार मत करिये जनाब.
आप ही के कांधों पे है जिम्मेवारियां,
आंगन में गूंजने दो किलकारियां.
देश में बढ़ी यें कैसी दुश्वारियां----भारती के चित्र पे लहू की धारियां..
देश में बढ़ी यें कैसी दुश्वारियां----भारती के चित्र पे लहू की धारियां..
--योगेन्द्र मौदगिल
23 comments:
बहुत सही, यही तेवर तो आपकी रचनाओं में धार पैदा करता है। गीत पसंद आया। बधाई।
देखो तो लगी हैँ अपने देश को सभी बिमारियाँ
उफ!...ये कैसे दुश्वारियाँ....ये कैसे दुश्वारियाँ
समयानुसार सटीक रचना
बहुत सटीक रचना !!
बेहतरीन रचना
चुनावी छंद से कहीं बेहतर मिला कम से कम एक बहुत तेज करार लगाया आपने... गीत बहुत ही पसंद आया.. बधाई
अर्श
बहुत ही सुन्दर रचना..........अतिसुन्दर रचना
बेहतरीन है भाई. हर विषय पर इतनी सहजता से कविता करना ..... क्या कहूं मैं ? इस काबिल ही नहीं. बस खामोशी से आप की कविताओं का आनंद ले सकता हूँ.
आज के हालात पर सही लिखा आप ने.
धन्यवाद
बहुत खूब मौदगिल साहब जी बेहतरीन गीत प्रस्तुत किया है आज काफी दिनों बाद मैंने भी कुछ लिखने की कोशिश्ा की है जरा गौर फरमाएं आप सभी की प्रतिक्रिया जानना चाहता हूं
उपवन की जिनपे थी जिम्मेवारियां.
वही लिये फिरते हैं अब आरियां.
सटीक बहुत गहरे भावः . आभार.
ज़बरदस्त है, बेहद उम्दा!
dhuandhaar rachna.
aap ki chinta sahi hai..yahi aaj ki sthiti hai.
aakhir mein di salah bhi sahi hai magar sabhi khud ko seekha ,samjhdaar mante hain..sab sirf kahna chahte hain ..sunta koi nahin...isee liye shayad badi hain ye dushvariyan..
-behtreen rachna
ग़रीब भूखे पेट सो जाते है,
बच्चों के ख्वाब टूट कर खो जाते है,
आम आदमी के जेब पर महंगाई भारी है,
चारो ओर रुपयों की मारामारी है,
बढ़ रही है हर तरफ,बेरोज़गारियाँ,
भारती के चित्र पे लहू की धारियां..
बढ़िया चरित्र चित्रण..लोकतंत्र का...
बधाई..हो...बहुत सुंदर कविता..
भाई वाह !
बहुत ही उम्दा गीत !
बधाई !
Rakt men ubaal aa gaya.
-Zakir Ali ‘Rajnish’
{ Secretary-TSALIIM & SBAI }
jhakjhorne waalaa geet.
वैज्ञानिक दृष्टिकोण अपनाएं, राष्ट्र को प्रगति पथ पर ले जाएं।
वाह मौदगिल साहब वाह.
आपने तो देश कि तमाम बीमारियों को गीत के इस हास्पिटल में भर्ती दिखा ही दिया और साथ ही डाक्टरों कि हिदायतें भरी बातें भी अंतिम छंद में लिखवा दी.
देखें लोग ठीक होते ही फिर इस पर कितना अमल करते है?
लाजवाब व्यंग भरे इस चिंतन गीत में आपकी चिंता बहुत जायज़ है.
हम सब आपके साथ है............
चन्द्र मोहन गुप्त
जयपुर
टीवी से पर डरिये जनाब...
समजा को चेताती रचना, बहुत खूब।
गिल्ली-डंडे वाले हाथ पीयें सिग्रेट.
गंगाजल की जगह हैं बीयर के क्रेट.
नारी का सम्मान अब बन गया रेट.
पश्चिम समान हुये हम भी अपटूडेट.
BAHOOT HI TEEKH VYANG HAI GURUDEV .... AAPKI KALAM JAB CHALTI HAI TO KAMAAL CHALTI HAI ... NANGA KAR KE RAKH DETI HAI SAMAAJ KO AAINA DIKHA DETI HAI ... LAJAWAAB
Samkaaleen kavita ke roop men sundar kavita.
( Treasurer-S. T. )
बच्चों में सरस भाव भरिये जनाब.
बहू-बेटियों का मान करिये जनाब.
टेलीविजन से पर डरिये जनाब.
घर को बाज़ार मत करिये जनाब.
आप ही के कांधों पे है जिम्मेवारियां .
sahee kaha hai. hum hee shuru karate hain.
लाजवाब रचना
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