पर्यावरण को समर्पित तीन छंद प्रस्तुत कर रहा हूं..........
भूमि-श्रंगार वृक्ष, उपहार प्रकृति के,
इन पर मानव का अत्याचार रोकिये.
मानते हैं बात जो दरांतियों-कुल्हाड़ियों की,
ऐसे असुरों को बेझिझक हो के टोकिये.
अब तो रे बाज आऒ, मान जाऒ, रुक जाऒ,
माफ अपराध सब, अब तक जो किये.
वृक्षों का कटान कर देगा अंत सभ्यता का,
सभ्यता के हित तत्काल इसे रोकिये....
स्वयं को शाकाहार, देंगें उपहार और,
धरती को वृक्षों का आधार देके जाएंगें.
निर्णय हमारा अब एक होना चाहिये कि,
हरी हरियाली ही अपार देके जाएंगें.
वरना ये हमने तो जैसे-तैसे काट ली है,
सोच संतान को क्या यार देके जाएंगें..?
यही हाल रहा तो नवेली सब पीढ़ियों को,
दमा-टीबी-अस्थमा उपहार दे के जाएंगें....
विषम विडम्बना में डूबा है विकासक्रम,
बूझती है पर निरूपाय मां वसुंधरा.
वृक्षों का कटान, निर्बाध देख-देख हाय,
टूक-टूक रोती, असहाय मां वसुंधरा.
गहने-लत्ते सम् तरू, लुट गये, लगती है,
नित्य तेजहीन-कृशकाय मां वसुंधरा.
यही हाल रहा तो ये कह देगी इक दिन,
दुनिया को सीधे बाय-बाय मां वसुंधरा....
--योगेन्द्र मौदगिल
23 comments:
यह अभियान उठाना है,हमे पर्यावरण बचाना है.
जनहित मे जारी गाना है, हमे पर्यावरण बचाना है.
संदेश देती रचना...बधाई!!!
अब नही चेते तो बहुत देर हो जायेगी। पर्यावरण को बचाना हमारा धंर्म होना चाहिए। सुन्दर रचना।
बहुत सामयिक और शिक्षाप्रद रचना.
रामराम.
वाह योगेन्द्रजी वाह !
कमाल के हैं तीनों छन्द...........
सटीक और सार्थक सन्देश दिया आपने...
बधाई !
उच्च कोटि ये तीन छंद अनूठे हैं और बहुत काम की बात बता जाते हैं...आज के युग में पर्यावरण की रक्षा हम सब का धर्म होना चाहिए..साधुवाद भाई जी इस सन्देश को इतने सुन्दर छंदों में बाँधने के लिए...
नीरज
सामयिक और शिक्षाप्रद ये तीनो छंद कमाल के है .. मां वसुंघरा का श्रृंगार तो हम समाप्त कर चुके .. अब और वृक्षों का कटना हमलोगों के लिए शर्मनाक है .. समय यहां तक आ गया है .. कि हम लकडी के फर्नीचरों का उपयोग ही रोक दें .. जबतक कि बडे स्तर पर वृक्षारोपण नहीं कर पाते !!
ऐसे सन्देश की बहुत ही आवश्यकता है ......अपने समाज को अतिसुन्दर रचना.....जितनी भी तारिफ की जाये कम है ....
बहुत सुन्दर छंद आभार.
अब तक तो सरकार के पर्यावरण मंत्रालय के सारे प्रयास व्यर्थ ही प्रतीत हो रहे हैं , शायद आपके ये मनमोहक छंद लोगों में कुछ जादू कर सके........................
बहुत सुन्दर तीनो छंद बेहतरीन अच्छे लगे.
बहुत ही बढिया सन्देशपरक रचना!!!! ऎसी रचनाओं की आज के समय में बहुत जरूरत है।।
आभार्!
समय की आवाज़ है आपके ये तीनों छन्द कि समय रहते चेत जाओ ....
बहुत ही बढिया
मन को छूती रचना......कविता के माध्यम से सुन्दर संदेश. आभार.
amoolya sandesh deti rachnayen. maudgil ji, badhai.
सुन्दर कृति
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सामयिक और शिक्षाप्रद सुन्दर संदेश
आभार
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क्रियेटिव मंच
निरीह हैं पेड़
काश इनकी ज़ुबान होती
इन छंदों के माध्यम से जागृति का अच्छा संदेश दिया है आपने। छंद और भाव दोनों उत्तम। बधाई।
वाकई दुःख होता हैं वृक्ष कटते हुए देखकर ,दूर दूर तक कोई वृक्ष नहीं दिखाई देता तो बहुत बुरा लगता हैं ,और जहाँ हरियाली हो लगता हैं ,सारी खुशियाँ यही मिल सकती हैं इन्सान को .आपकी कविता बहुत ही अच्छी हैं .
bahut hi achhe chand
aajkal chand hi padh rahi thi aur aapke ye achha sandesh dete hue chand padhne mil gaye
निर्मल पवित्र विचार वन्दनीय और अनुकरणीय है......
आपके रचनाशीलता की प्रशंशा के लिए उपयुक्त शब्द संधान तो असंभव है...
Sundar rachna ke liye kotishah aabhar.
वरना ये हमने तो जैसे-तैसे काट ली है,
सोच संतान को क्या यार देके जाएंगें..?
यही हाल रहा तो नवेली सब पीढ़ियों को,
दमा-टीबी-अस्थमा उपहार दे के जाएंगें.
Bhayawah kintu satya, Kash chetawanee se chet jayen hum bhee aur wo bhee.
PRAKRITI KO BACHAA KAR RAKHNA AAJ KI SABSE BADI CHUNOUTI HAI .... HAR KOI APNE APNE PRAYAAS KAR RAHA HAI ..... APKA PRAYAAS BHI UTTAM HAI ... KAVI AUR KAVITA KE MAADHYAM SE AGAR JAN JAN YS SANAJH SAKE TO SAARTHAK HAI ......
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