इन्सान ने इन्सान को ये क्या सिला दिया.
हंसते हुऒं को दर्द का पुतला बना दिया.
नादान थी वो इश्क के चक्कर में पड़ गई,
फिर इश्क ने घर से उसे कोठा दिखा दिया.
मन्दिरों की मस्जि़दों की नींव एक है,
ऊपर भले कंगूर या गुम्बद बना दिया.
एहसास अपनेपन का अगर हो भी तो कैसे,
रिश्तों के दांव आपने पैसा लगा दिया.
मां-बाप को रहने का सिखाते हैं सलीका,
तालीम ने बच्चों को ये क्या-क्या सिखा दिया.
धरती का घड़ा पाप से लबरेज़ है मियां,
इस मातमी माहौल ने अम्बर हिला दिया.
ना पेड़, ना पंछी कहीं, ना घास, ना पानी,
चारों तरफ कंक्रीट का जंगल उगा दिया.
मारे शरम के उठ ना सकी आंख 'मौदगिल'
हालात ने जब भी उसे शीशा दिखा दिया.
--योगेन्द्र मौदगिल
32 comments:
ना पेड़, ना पंछी कहीं, ना घास, ना पानी,
चारों तरफ कंक्रीट का जंगल उगा दिया.
नादान थी वो इश्क के चक्कर में पड़ गई,
फिर इश्क ने घर से उसे कोठा दिखा दिया.
मन्दिरों की मस्जि़दों की नींव एक है,
ऊपर भले कंगूर या गुम्बद बना दिया....
सभी लाइनें एक से बढ़ कर एक,बेहतरीन.
पहले की ही तरह एक और मौदगिली प्रस्तुति -बेजोड़ और बेलौस !
मां-बाप को रहने का सिखाते हैं सलीका,
तालीम ने बच्चों को ये क्या-क्या सिखा दिया.
-कितना बड़ा यथार्थ उजागर कर गये आप!! वाह!
नादान थी वो इश्क के चक्कर में पड़ गई,
फिर इश्क ने घर से उसे कोठा दिखा दिया.
खूबसूसत रचना योगेन्द्र भाई। वाह - आनन्द आ गया।
सादर
श्यामल सुमन
09955373288
www.manoramsuman.blogspot.com
shyamalsuman@gmail.com
इन्सान ने इन्सान को ये क्या सिला दिया.
हंसते हुऒं को दर्द का पुतला बना दिया.
"बेहद भावुक करते शब्द....."
regards
बहुत खूबसूरत गज़ल है
एहसास अपनेपन का अगर हो भी तो कैसे,
रिश्तों के दांव आपने पैसा लगा दिया.
लाजवाब बधाई
क्या करें भाई? यही जमाना है अब तो.
रामराम.
याद दिला दिए वो अल्फाज़ ," ऐसी किताबोंको हम क़ाबिले ज़प्ती समझते हैं , जिसे पढ़के बच्चे बापको खपती समझते हैं .."
तथा वो बेहतरीन गीत," तू हिंदू बनेगा न मुसलमान बनेगा, इंसान की औलाद है इंसान बनेगा!"
अब तो जमाना ही बदल गया.
bahut khoob Maudgil Ji
नादान थी वो इश्क के चक्कर में पड़ गई,
फिर इश्क ने घर से उसे कोठा दिखा दिया.
मन्दिरों की मस्जि़दों की नींव एक है,
ऊपर भले कंगूर या गुम्बद बना दिया.!
dono shero ka jawaab nahi
नादान थी वो इश्क के चक्कर में पड़ गई,
फिर इश्क ने घर से उसे कोठा दिखा दिया.
समाज की बुराईयों को इंगित करती आपकी ये गज़ल बहुत ही बढिया लगी
नादान थी वो इश्क के चक्कर में पड़ गई,
फिर इश्क ने घर से उसे कोठा दिखा दिया.
मन्दिरों की मस्जि़दों की नींव एक है,
ऊपर भले कंगूर या गुम्बद बना दिया.
मां-बाप को रहने का सिखाते हैं सलीका,
तालीम ने बच्चों को ये क्या-क्या सिखा दिया.
ye tin she'r sabhi ki hajaamat banaane ke liye kaafi hai bahot hi karaara ... bahot bahot badhaayee
arsh
bahut khub likha hai bhai......badhaaee
मौदगिल जी,
सर्वप्रथम आप हमारे ब्लॉग पर आये ह्रदय से आभारी हूँ...
मैं आपकी साईट पर पहले बार आई हूँ और महसूस किया है की बहुत कुछ खोती रही हूँ..
आपकी इस ग़ज़ल का हर शेर नायब मोती है जो ज़िन्दगी की सच्चाइयों को बेपर्दा करता नज़र आता है...
बहुत खूब..
चिलमन के पीछे कब तलक छिपोगी ज़िन्दगी
हमने भी आज देखिये पर्दा उठा दिया
बहर-वहर मत तौलियेगा क्योंकि उसकी तमीज हमें है ही नहीं...
Achchhee gazal.
-Zakir Ali ‘Rajnish’
{ Secretary-TSALIIM & SBAI }
wah maudgil ji, hamesha ki tarah ek behatareen prastuti,
bahut bahut mubaarak.
बहुत सुंदर रचना। साधारण शब्दों को सजा कर आप समाज के द्वंदों को उजागर कर देते हैं।
मन्दिरों की मस्जि़दों की नींव एक है,
ऊपर भले कंगूर या गुम्बद बना दिया
गुरु देव..इतनी बड़ी बात कह दी.... बस एक ही शेर में और पूरी दुनिया समझ नहीं पाती............सलाम है आपकी लेखनी को
इन्सान ने इन्सान को ये क्या सिला दिया.
हंसते हुऒं को दर्द का पुतला बना दिया.
wahhhhhhhh kya baat kahi aajkal yahi sawal bacha hai
नादान थी वो इश्क के चक्कर में पड़ गई,
फिर इश्क ने घर से उसे कोठा दिखा दिया.
hmmmmmmm bahut kadhwa sach
bahut dukhad dokha
मन्दिरों की मस्जि़दों की नींव एक है,
ऊपर भले कंगूर या गुम्बद बना दिया.
wah wah
एहसास अपनेपन का अगर हो भी तो कैसे,
रिश्तों के दांव आपने पैसा लगा दिया.
मां-बाप को रहने का सिखाते हैं सलीका,
तालीम ने बच्चों को ये क्या-क्या सिखा दिया.
hmmmmmmm sach kahte hain bachhe aajkal maa ko dekh sharmate hain
saath le jaane se ghabarte hain
धरती का घड़ा पाप से लबरेज़ है मियां,
इस मातमी माहौल ने अम्बर हिला दिया.
ना पेड़, ना पंछी कहीं, ना घास, ना पानी,
चारों तरफ कंक्रीट का जंगल उगा दिया.
मारे शरम के उठ ना सकी आंख 'मौदगिल'
हालात ने जब भी उसे शीशा दिखा दिया.
aapki gazal ke har sher ne man ko bheetar tak santusht kiya
Aapki bheji hui kitaab mil gayi
Sigapore wali bhi kal pahunchi hai
ab mere pass do prtiya hai
maine socha hai ki ek yaha par librery main rakhungi taki zayada se zayda log aapki gazal tak pahuch sake
aap ki raay chahiye hain
बहुत खूबसूरत गज़ल है
MUBAARAQ HO BHAI............
BAHUT UMDAA GHAZAL !
अच्छा लिखा है आपने । भाव, विचार और सटीक शब्दों के चयन से आपकी अभिव्यक्ति बड़ी प्रखर हो गई है।
मैने अपने ब्लाग पर एक लेख लिखा है-इन देशभक्त महिलाओं के जज्बे को सलाम-समय हो तो पढ़ें और कमेंट भी दें-
http://www.ashokvichar.blogspot.com
वाह क्या बात है ! सिर्फ मैं नहीं कह रहा... अभी जोर जोर से पढ़ रहा था मेरे मित्र कह रहे हैं :)
मन्दिरों की मस्जि़दों की नींव एक है,
ऊपर भले कंगूर या गुम्बद बना दिया....
sachchyi chhipi hai ..bahut sundar rachana..
मां-बाप को रहने का सिखाते हैं सलीका,
तालीम ने बच्चों को ये क्या-क्या सिखा दिया.
Bahut khub likha hai.
हर शेर में आपने जीवन का सच सजा दिया...
क्या कहूँ .....लाजवाब !!!
मन्दिरों की मस्जि़दों की नींव एक है,
ऊपर भले कंगूर या गुम्बद बना दिया.
बहुत खूब मौदगिल साहब, बढिया गज़ल ।
मां-बाप को रहने का सिखाते हैं सलीका,
तालीम ने बच्चों को ये क्या-क्या सिखा दिया.
वाह्! बिल्कुल यथार्थ का चित्रण कर डाला आपने।
बेहतरीन प्रस्तुती!!!
कबीराना अंदाज-
मन्दिरों की मस्जि़दों की नींव एक है,
ऊपर भले कंगूर या गुम्बद बना दिया.
hmm ....
RC to me
show details 3 Aug
इस बार भी सच ही कहूँगी, आशा है आप अन्यथा नहीं लेंगे | गुस्ताखी की माफ़ी चाहूंगी - यह वाली रचना ठीक-ठीक ही लगी | इसके आलावा ,,,, एक बात काफी समय से कहना छह रही थी, ओछ रही थी कहूं या नहीं, 'दखलअंदाजी' न लगे ... या फिर मुझे फेमिनिस्ट कह लीजिये (जो के मैं हूँ नहीं!)... मगर कविताओं में हर बार कविता में औरत का रूप 'अबला' ही क्यों नज़र आता है ? कभी नारी भ्रूण हत्या, कभी दुनिया से लड़ना, कभी प्रताड़ना, और आज ये कोठे वाली बात | हो सकता है मैं औरत हूँ इसलिए इस बात की और मेरा ध्यान केंदिर हुआ|
पर औरत होने के, और इन सब बातों के सच होने के बावजूद मैं खुद ये मानती हूँ के औरत होना उतनी बुरी बात नहीं !
कृपया अन्यथा न लें
प्रणाम
RC
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