इधर समस्याऒं से निज़ात मिल तो रही है पर धीरे-धीरे......
इस बीच चंडीगढ़ साहित्य अकादमी ने सैक्टर १० के आडीटोरियम में एक हास्य कवि सम्मेलन करवाया वहीं उपस्थित कवियों के फोटो के साथ एक रचना प्रस्तुत है मेरे साथ खड़े हैं हरियाणवी हास्यकवि महेन्द्र सिंह (झज्जर) व जगबीर राठी (जींद) कुर्सियों पर है बायें से पंजाबी हास्यकवि हरि सिंह दिलबर (सिरसा) व सूफी जगजीत (अम्बाला) उनके साथ उर्दू हास्यकवि टी एन राज़ (पंचकूला) मंच संचालक गजलकार माधव कौशिक इस फोटो में नहीं आ पाये उन का फोटो फिर कभी
नूर का वन्ध्याकरण होता रहा
आईनों का अवतरण होता रहा
भूख ने किलकारियां भी लूट ली
नित्य शैशव का हरण होता रहा
चुटकुले तो मंच पर ऐंठे रहे
गीत-गजलों का मरण होता रहा
वोट- चंदा- लूट- हेराफेरियां
शहर में जनजागरण होता रहा
हर कदम पर यों तो लछमनरेख थी
फिर भी सीता का हरण होता रहा
देह ने बाज़ार को अपना लिया
वासनाऒं का वरण होता रहा
भावना- संवेदना- मन की व्यथा
दिनबदिन केवल क्षरण होता रहा
--योगेन्द्र मौदगिल
27 comments:
चुटकुले तो मंच पर ऐंठे रहे
गीत-गजलों का मरण होता रहा
बहुत सुंदर! मंच को बचाना जरूरी है क्योंकि मंच से काफ़ी उम्मीदें जुड़ी होती हैं। शुक्र है कि आप जैसे पुण्यात्मा इसे देख पा रहे हैं।
सच मे आज कल तो वाह वही चुटकुलों की हो रही है,
जो जितना दाँत निपोरे वही विजयी है,हास्य सम्राट है
और सुंदर भाव से सजी हास्य व्यंग का हरण हो रहा है..
परंतु आज भी हास्य और व्यंग की ठिठोली कम नही हुई है.
और दिन पर दिन बढ़ते ही जाएँगे..और एक दिन फिर से
मंच शान बना करेगी..और चुटकुले और हीहीआना धीरे धीरे कम होता जाएगा..
बहुत अच्छा प्रस्तुत किया आपने..
बधाई!!!
मौदगिल साहब कैसे हैं और कहाँ हैं? आपके दर्शन दुर्लभ हो गये हैं। फोटो देखकर लगता है कि काफ़ी व्यस्त रहे आप।
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बहुत बेहतरीन.
रामराम.
भाई जी...जी चाहता है आपके हाथ चूम लूं...क्या ग़ज़ल कही है आपने...सुभान अल्लाह...इतना खूबसूरत मतला अरसे बाद पढने को मिला...अरसे बाद ही मिला हिंदी के सुन्दर शब्दों का ग़ज़ल में गुंथन...समझ नहीं आ रहा की इस ग़ज़ल की प्रशंशा करूँ तो कैसे? वाह...एक एक शेर लाजवाब है...पढता हूँ और आपके सम्मान में उठ कर तालियाँ बजाता हूँ...वाह भाई जी वाह...
नीरज
bahut hi sundar rachana atisundar .......bahut bahut hi badhiya
भावना- संवेदना- मन की व्यथा
दिनबदिन केवल क्षरण होता रहा
आरोप-प्रत्यारोप के इस दौर में
दरिंदगी का संक्रमण होती रहा
नूर का वन्ध्याकरण होता रहा
आईनों का अवतरण होता रहा
भूख ने किलकारियां भी लूट ली
नित्य शैशव का हरण होता रहा........
बेहतरीन लाइनें.
लौटे तो मगर बखूबी लौटे आप... क्या खुबसूरत मतला लगाया है आपने वाह ग़ज़ल के बारे में क्या कहूँ बहोत ही खुबसूरत .... हिंदी के शब्द सयोंजन क्या खूबसूरती से की है आपने ... बहोत बहोत बधाई...
अर्श
हर कदम पर यों तो लछमनरेख थी
फिर भी सीता का हरण होता रहा
गज़ब !
"चुटकुले तो मंच पर ऐंठे रहे
गीत-गजलों का मरण होता रहा"
एकदम सटीक लिखा है आपने...आज मंचों पर कब्ज़ा किए बैठे चुटकुलेबाज़ों की पांचों घी में हैं और अर्थपूर्ण लिखने वाले कहीं खो गए हैं
बिलकुल सही कहा मौदगिल जी. दिन बा दिन केवल क्षरण ही होना है. आभार
कितना बड़ा सच है जो बताता है कि कानून और अपराध का कितना गहरा रिश्ता है-
हर कदम पर यों तो लछमनरेख थी
फिर भी सीता का हरण होता रहा
फोटो महेन्द्र सिंह की ही सही
पर नाम तो महेन्द्र शर्मा का छाप देते
गर वो नाराज हो गया तो ....
शेर लाजवाब है.
हर कदम पर यों तो लछमनरेख थी
फिर भी सीता का हरण होता रहा
लाजवाब आपके अपने अंदाज़ की ग़ज़ल है................ खूबसूरत शेरों से लदी
Majedar hai.
Wishing "Happy Icecream Day"...
See my new Post on "Icecrem Day" at "Pakhi ki duniya"
ग़ज़ल के हर शेर तुझे आइना दिखा रहे हैं
हया रही कहाँ, सुन के वो खिलखिला रहे हैं
मौदगिल साहब, आपने तो कमाल कर दिया, चंद पंक्तियों में सबको झकझोर दिया.
बधाई.
बेहतरीन!
वोट- चंदा- लूट- हेराफेरियां
शहर में जनजागरण होता रहा
हर कदम पर यों तो लछमनरेख थी
फिर भी सीता का हरण होता रहा
waah lajawab
'हर कदम पर …'
बहुत ख़ूब!
अब क्या कहूं, कुछ बचा ही नहीं.
चुटकुले तो मंच पर ऐंठे रहे
गीत-गजलों का मरण होता रहा
हर कदम पर यों तो लछमनरेख थी
फिर भी सीता का हरण होता रहा
देह ने बाज़ार को अपना लिया
वासनाऒं का वरण होता रहा
bahut gahre vayang hai
Ye wali Ghazal toh ... kya kahoon ...shabdheen hoon Yogendra ji. Sachmuch. Bus ek She'r khataktaa hai jo maine yahan copy nahi kiya, she'r badhiya hai ... bus apni-apni pasand hai. Makte mein lay theek nahin hai ya mere padhne ki lay mein gadbad hai ... dobara aakar padhoongi ...
Pranaam
RC
Matlaa crown hai ! ...
नूर का वन्ध्याकरण होता रहा
आईनों का अवतरण होता रहा
भूख ने किलकारियां भी लूट ली
नित्य शैशव का हरण होता रहा
चुटकुले तो मंच पर ऐंठे रहे
गीत-गजलों का मरण होता रहा
वोट- चंदा- लूट- हेराफेरियां
शहर में जनजागरण होता रहा
हर कदम पर यों तो लछमनरेख थी
फिर भी सीता का हरण होता रहा
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हर शेर व्यंग्य से भरपूर....वाह!...मज़ा आ गया
कवियों की तस्वीरें देख कर और भी अच्छा लगा
चुटकुले तो मंच पर ऐंठे रहे
गीत-गजलों का मरण होता रहा
इन पंक्तियों का दर्द वही जानेगा जिसने इस दर्द को भोगा होगा । एक कड़वी हकीकत को उतने ही तीखे तेवर का साथ अभिव्यक्ति देने के लिये आभार ।
'चुटकुले तो मंच पर ऐंठे रहे
गीत-गजलों का मरण होता रहा'
- आज के मंच की हकीकत बयान करती पंक्तियाँ.
'भावना- संवेदना- मन की व्यथा
दिनबदिन केवल क्षरण होता रहा'
- बाजारवाद का नतीजा.
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