वन्देमातरम् भूल गयी रे....

यह कविता आप सब स्नेहिल पाठकों को समर्पित करता हूं



नवशिक्षा का दौर नर्सरी मस्ट हुई श्रीमान
इंगलिश प्रेयर को सुन कर खुश होते हैं भगवान
हैट, बैट, इस्कर्ट, टाई से भी बढ़ती है शान
दिनों-दोगुना पुख्ता होता अंग्रेजी का ग्यान
अमरीका को जानते बच्चे भूले हिन्दुस्तान
मंदिर, पूजा-पाठ छोड़ कर है टीवी का ध्यान
और विदेशी चैनल लेकर आये ऐसा ग्यान
वन्देमातरम् भूल गयी रे इस युग की सन्तान


कालेज जाकर के सीखें हैं ऐसे अनुसंधान
फैंसीड्रिल व आयोडैक्स से करते हैं जलपान
मोटरबाइक पर बनते हैं अक्सर यही प्लान
मर्सीडीज़ के साथ बने इक बंगला आलीशान
चार दिनों में बिन मेहनत के कैसे हों धनवान
माइकल जैक्सन और मेडोना पर रहते कुरबान
इसीलिये तो यान्नी लिखता ताजमहल पर गान
नवपीढ़ी की घटी चेतना घटा देश का ध्यान
वन्देमातरम् भूल गयी रे इस युग की सन्तान


घर की दीवारों के बेटा कच्चे-पक्के कान
बिना नींव के टिकेंगें कैसे यारों कहो मकान
आंगन-आंगन में उट्ठी हैं दीवारें श्रीमान
बनी-ठनी बहुऒं को केवल है किट्टी का ग्यान
ताश-तंबोला, बीयर के वो रखती हैं अरमान
सास-ससुर को बकें गालियां कुत्तों को सम्मान
हेयर-ड्रैसर एडवाइज़र हैं शोफर हैं दीवान
बच्चों को आया संभाले बूढ़ों को दरबान
वन्देमातरम् भूल गयी रे इस युग की सन्तान


बूढ़ों का सत्ता की खातिर डगमग हुआ इमान
नवपीढ़ी हो गई स्मगलर, बचपन लहुलुहान
चकलाघर हो गयीं चौकियां, घूसखोर दीवान
और प्रशासन राजनीत की नाज़ायज संतान
राजसभा में होता जन-गण हिंदी का अपमान
राजधानी में बसे लुटेरे, संसद है शम्शान
गिद्धों की बोटी के जैसा हो गया हिन्दुस्तान
और नपुंसक पीढ़ी केवल फुटपाथों की शान
वन्देमातरम् भूल गयी रे इस युग की सन्तान
--योगेन्द्र मौदगिल

39 comments:

Unknown said...

vandemaataram bhool gayi re is yug ki santaan !
waah waah
geet ka ek ek shabd iske shreshthtam hone ka saakshi hai.........
badhaai bandhu !
atyant umda rachna ki aapne..............

गिरिजेश राव, Girijesh Rao said...

"मोटरबाइक पर बनते हैं अक्सर यही प्लान
मर्सीडीज़ के साथ बने इक बंगला आलीशान
चार दिनों में बिन मेहनत के कैसे हों धनवान"

आप ने एकदम सही जगह पीटा है। मंचीय प्रस्तुति होने से इसका प्रभाव बहुत पड़ेगा।

साधुवाद्

अनिल कान्त said...

waah !!

PRINCIPAL HPS SR SEC SCHOOL said...

BAAT BAAT MEIN BAAT PATE KI KAH DI,
VANDE MATRAM SE TUMNE SHAHIDO KO JAI KAH DI.

MUBARAK HO.
MAAN GAYE USTAD.

RAMESH SACHDEVA
DIRECTOR,
HPS DAY-BOARDING SENIOR SECONDARY SCHOOL,
"A SCHOOL WHERE LEARNING & STUDYING @ SPEED OF THOUGHTS"
SHERGARH (M.DABWALI)-125104
DISTT. SIRSA (HARYANA) - INDIA
HERE DREAMS ARE TAKING SHAPE
www.haryanapublicschool.wordpress.com
+91-1668-230327, 229327

Anonymous said...

...बेहतरीन.

... टेम्पलेट शानदार है.

महेन्द्र मिश्र said...

bahut hi joradar or shaanadaar . badhai ho badhai.

श्यामल सुमन said...

बहुत खूब योगेन्द्र भाई। एक निराला अंदाज। एक पंक्ति मैं भी जोड़ दूँ-

साधु संत फकीरों ने अब बेच दिया इमान।
वन्देमातरम् भूल गयी रे इस युग की सन्तान।।

सादर
श्यामल सुमन
09955373288
www.manoramsuman.blogspot.com
shyamalsuman@gmail.com

Ashok Pandey said...

गिद्धों की बोटी के जैसा हो गया हिन्दुस्तान
और नपुंसक पीढ़ी केवल फुटपाथों की शान
वन्देमातरम् भूल गयी रे इस युग की सन्तान

बहुत खूब..हमेशा की तरह बेहतरीन रचना।

विनोद कुमार पांडेय said...

एक गुदगुदती हुई कड़वी सच्चाई,बधाई हो,


गिट-पिट,गिट-पिट,
गिट-पिट,गिट-पिट,
आज वही है सुपरहिट,
आज नर्सरी मस्ट हुई है,
सब की च्वाइस फर्स्ट हुई है,
तभी तो बच्चा सब भुला है,
अँग्रेज़ी मे सब भुला है.

Anil Pusadkar said...

समाज को नंगा कर दिया योगेन्द्र भाई।एक एक शब्द हथौड़े सा बज़ता है।तारीफ़ के लिये शब्द नही है मेरे पास, खुद को फ़ुटपाथ पर खड़ा पा रहा हुं।दिल जीत लिया आपने।

रंजन said...

घर की दीवारों के बेटा कच्चे-पक्के कान
बिना नींव के टिकेंगें कैसे यारों कहो मकान..

बहुत खुब...बधाई

P.N. Subramanian said...

यही चाहिए था. अच्छी धुनाई की आपने. आभार.

ताऊ रामपुरिया said...

आपने तो गिटपिट गिटपिट की रामनाम सत्य ही कर दिया.:)

रामराम.

Yogesh Verma Swapn said...

wah yogender ji, anupam rachna, badhai.

विवेक सिंह said...

बहुत गरमी है जी ! ठण्ड ठण्ड !

hempandey said...

'बनी-ठनी बहुऒं को केवल है किट्टी का ग्यान
ताश-तंबोला, बीयर के वो रखती हैं अरमान
सास-ससुर को बकें गालियां कुत्तों को सम्मान
हेयर-ड्रैसर एडवाइज़र हैं शोफर हैं दीवान
बच्चों को आया संभाले बूढ़ों को दरबान'
- इस कड़ुवे सच के लिए साधुवाद.

परमजीत सिहँ बाली said...

आज के माहौल पर लिखी बहुत जोरदार रचना है।बहुत बहुत बधाई।

sanjay vyas said...

bedhati hui,daahak kintu zaroori panktiyaan!

राज भाटिय़ा said...

घर की दीवारों के बेटा कच्चे-पक्के कान
बिना नींव के टिकेंगें कैसे यारों कहो मकान
आंगन-आंगन में उट्ठी हैं दीवारें श्रीमान
बनी-ठनी बहुऒं को केवल है किट्टी का ग्यान
ताश-तंबोला, बीयर के वो रखती हैं अरमान
सास-ससुर को बकें गालियां कुत्तों को सम्मान
हेयर-ड्रैसर एडवाइज़र हैं शोफर हैं दीवान
बच्चों को आया संभाले बूढ़ों को दरबान
वन्देमातरम् भूल गयी रे इस युग की सन्तान

आप की कविता का एक एक शव्द थपड है आज के इन बेकार लोगो के चेहरे पर , आंखे खोलने की ताकत है इस कविता मै काश इसे सभी पढे ओर शिक्षा ले, मुझे बहुत सुंदर लगी आप की यह कविता.
धन्यवाद

Himanshu Pandey said...

नये ढंग की कविता यहाँ । गज़ब ।

डॉ. मनोज मिश्र said...

बहुत बहुत बधाई।आज फिर जबरदस्त रचना .

दिगम्बर नासवा said...

राजधानी में बसे लुटेरे, संसद है शम्शान
गिद्धों की बोटी के जैसा हो गया हिन्दुस्तान
और नपुंसक पीढ़ी केवल फुटपाथों की शान
वन्देमातरम् भूल गयी रे इस युग की सन्तान


vaah gurudev ........... chaa गए आज फिर, tez dhaardaar kalam है आपकी............ samaaj की aankhen kholtaa huva लिखा है.... kaash सब समझ paate यह बात

के सी said...

आज बड़े दिनों के बाद किसी बड़े कवि सम्मलेन में हो आया हूँ जैसे, सोचता हूँ ऐसी कविताये पढ़ कर ही आप छा जाते होंगे न.... बहुत पसंद आई बडे कवि बड़े भाई बहुत बधाई
सरकारी नौकर होने के नाते आपकी आखिरी कविता पर मुझे चुप माना जाये.

के सी said...

आज बड़े दिनों के बाद किसी बड़े कवि सम्मलेन में हो आया हूँ जैसे, सोचता हूँ ऐसी कविताये पढ़ कर ही आप छा जाते होंगे न.... बहुत पसंद आई बडे कवि बड़े भाई बहुत बधाई
सरकारी नौकर होने के नाते आपकी आखिरी कविता पर मुझे चुप माना जाये.

के सी said...

आज बड़े दिनों के बाद किसी बड़े कवि सम्मलेन में हो आया हूँ जैसे, सोचता हूँ ऐसी कविताये पढ़ कर ही आप छा जाते होंगे न.... बहुत पसंद आई बडे कवि बड़े भाई बहुत बधाई
सरकारी नौकर होने के नाते आपकी आखिरी कविता पर मुझे चुप माना जाये.

के सी said...

योगेन्द्र जी एक कमेन्ट ही पोस्ट नहीं हो रहा था अभी देखा तो तीन बार हो गया है कृपया दो हटा दीजियेगा

Pt. D.K. Sharma "Vatsa" said...

घर की दीवारों के बेटा कच्चे-पक्के कान
बिना नींव के टिकेंगें कैसे यारों कहो मकान
आंगन-आंगन में उट्ठी हैं दीवारें श्रीमान
बनी-ठनी बहुऒं को केवल है किट्टी का ग्यान
ताश-तंबोला, बीयर के वो रखती हैं अरमान
सास-ससुर को बकें गालियां कुत्तों को सम्मान
हेयर-ड्रैसर एडवाइज़र हैं शोफर हैं दीवान
बच्चों को आया संभाले बूढ़ों को दरबान
वन्देमातरम् भूल गयी रे इस युग की सन्तान


समाज के कडुवे सच को उजागर करती हुई एक बेहतरीन रचना...........उम्दा,लाजवाब्!!!

शेफाली पाण्डे said...

वन्देमातरम् भूल गयी रे इस युग की सन्तान
bahut kadvee sachchaai bayaan kee aapne...aabhaar...

शोभना चौरे said...

और नपुंसक पीढ़ी केवल फुटपाथों की शान
वन्देमातरम् भूल गयी रे इस युग की सन्तान

bhut steek kha hai
t v ne hmsbke sochne smjhne ki shkti ko apne shiknje me le liya hai .
aur vo jo dikhata hai uska nasha sr chadhkar bol rha hai .

नीरज गोस्वामी said...

घर की दीवारों के बेटा कच्चे-पक्के कान
बिना नींव के टिकेंगें कैसे यारों कहो मकान
आंगन-आंगन में उट्ठी हैं दीवारें श्रीमान
बनी-ठनी बहुऒं को केवल है किट्टी का ग्यान
ताश-तंबोला, बीयर के वो रखती हैं अरमान
सास-ससुर को बकें गालियां कुत्तों को सम्मान
हेयर-ड्रैसर एडवाइज़र हैं शोफर हैं दीवान
बच्चों को आया संभाले बूढ़ों को दरबान
वन्देमातरम् भूल गयी रे इस युग की सन्तान
भाईजी इस सच्चाई को पढ़ कर सर शर्म से झुक जाता है...अद्भुत रचना रची है आपने...आज के दौर की विसंगितियों को बहुत बेबाकी से उजागर किया है...बहुत बहुत बहुत बहुत बहुत बहुत बहुत बहुत बहुत बहुत बहुत बहुत बहुत बधाई...
नीरज

ओम आर्य said...

आज की जेनरेसन ऐसी है .......बहुत सम्वेदंशील रचना ......सही कहा आपने

दिनेश शर्मा said...

अरे वाह! कितनी आसानी से सच कह दिया आपने ।

Science Bloggers Association said...

वंदेमातरम के बहाने आपने सामाजिक व्‍यवस्‍था पर करारा व्‍यंग्‍य किया है।

-Zakir Ali ‘Rajnish’
{ Secretary-TSALIIM & SBAI }

Pritishi said...

बहुत अच्छी कविता, योगेन्द्र जी .. शीर्षक ही बड़ा प्रभावशाली है ..| पूरी कविता ही अच्छी लगी, मगर ये पंक्तियाँ अजीब सी मुस्कराहट छोड़ गई ...

"इसीलिये तो यान्नी लिखता ताजमहल पर गान" - :-) :-)
"नवपीढ़ी की घटी चेतना घटा देश का ध्यान"

"घर की दीवारों के बेटा कच्चे-पक्के कान
बिना नींव के टिकेंगें कैसे यारों कहो मकान"

"बूढ़ों का सत्ता की खातिर डगमग हुआ इमान
नवपीढ़ी हो गई स्मगलर, बचपन लहुलुहान"
...
कविता से आगे बढ़कर टिपण्णी देना ठीक नहीं मगर इस बार इजाज़त दीजिये कहने की .... के खुद कविता में इन सवालों का जवाब छुपा है ..."बिना नींव के टिकेंगें कैसे ..." ... बस, थोडा सोचने वाली बात है!

Pranaam
RC

Pritishi said...

Kahin kahin lay theek zarasi theek karne ki zaroorat hai.

RC

रविकांत पाण्डेय said...

अच्छी चोट की है आपने । वैसे इसे आपकी आवाज में सुनना और प्रभावोत्पादक होगा। संभव हो तो सुनवाएं।

Asha Joglekar said...

वंदेमातरम् भूल गई है इस युग की संतान । जब माँ की ही कोई इज्जत न रही तो कहाँ का वंदन । पर आपने कस कस कर लगाये हैं ।

डॉ .अनुराग said...

aapke vyangya kahne ka alag andaaj hai yogendra ji...

राजीव तनेजा said...

किस पंक्ति की ज़्यादा तारीफ करें और किस की कम
सभी एक सी बढिया हैँ...इन सभी में है दम
आपकी लेखनी देख के श्रीमान भौंचक रह गए हम