मेरे पहले संग्रह
मंज़र मंज़र अंगारे
में से आज एक अन्य ग़ज़ल
आप सभी के लिये
छल, कपट, संत्रास की संभावना
अब कहां उल्लास की संभावना
है मगरमच्छों से अपनी मित्रता
क्या करें विश्वास की संभावना
राजनीति है कलुषित इसलिये
है कुटिल इतिहास की संभावना
गुम्बदों ने यों कबूतर से कहा
छोड़ दो आकाश की संभावना
राजधानी में गधे रुकने लगे
देख बढ़िया घास की संभावना
--योगेन्द्र मौदगिल
31 comments:
बहुत उम्दा।
राजधानी में गधे रुकने लगे
देख बढ़िया घास की संभावना
अच्छी लगी ये पंक्तियाँ। वैसे पूरी गजल मजेदार है। लीजिये आपके सुर में सुर मिलाते हुए -
हो रहा है रोज पानी कम यहाँ।
बढ़ गयी है प्यास की संभावना।।
सादर
उदय प्रताप हयात
द्वारा - श्यामल सुमन
09955373288
www.manoramsuman.blogspot.com
shyamalsuman@gmail.com
bahut khub .......moudgil bhai
bahut khub .......moudgil bhai
सब आम चल रहा है,यही थी,
कुछ ख़ास की संभावना,
जब दरिया ही मिल गया,
कहाँ बची प्यास की संभावना ....
दुशंयत की याद दिला दी भाई साहब आपने, बहुत कड़ा तेवर अपनाया है, ग़ज़ल सग्रंह की प्रतिक्षा रहेगी। मनेष जी मौज में है, लेकिन बहुत व्यस्त।
है मगरमच्छों से अपनी मित्रता
क्या करें विश्वास की संभावना
गजब भाई गजब. बहुत बधाई.
रामराम.
बहुत ही सुंदर रचना
धन्यवाद
है मगरमच्छों से अपनी मित्रता
क्या करें विश्वास की संभावना
बहुत खूब लिखा है......हर शेर उम्दा.
धन्यवाद
aakhiri she'r to bas aapke kalam se ban sakta hai.... kamaal kar diyaa hai aapne....
badhaayee
arsh
rajdhaani men................
wah.bahut hi umda kataksh. sabhi sher behatareen.
maudgil ji badhai sweekaren.
इस ग़ज़ल के तो हम कब से फैन हैं
राजधानी में गधे रुकने लगे
देख बढ़िया घास की संभावना
बहुत बढिया!!
वाह कवी राज............लाजवाब...जब ये ग़ज़ल इतनी तल्ख़ है, तीखी है तो संग्रह कैसा होगा..............
बहूत ही खूब ............. प्रणाम है मेरा
है मगरमच्छों से अपनी मित्रता
क्या करें विश्वास की संभावना..bahut umda.
तुरन्त घास कटवा दी जाए।
बहुत बढिया।
घुघूती बासूती
राजधानी में गधे रुकने लगे
देख बढ़िया घास की संभावना
बहुत ही बढिया...
बहुत खूब !
राजधानी में गधे रुकने लगे
देख बढ़िया घास की संभावना.
अब तो इतने रूक गए हैं कि राजधानी में गधों में इंसान ढूंढ़ना पड़ता है :)
क्या बात है!
bhai sahab
बसंत आर्य आज कल कवि सम्मेलनो मे मशगुल hai...contact no...9820450659....hai.
राजधानी में गधे रुकने लगे
देख बढ़िया घास की संभावना
wah wah ..........
khoob...!
गुम्बदों ने यों कबूतर से कहा
छोड़ दो आकाश की संभावना
bahut achhe janab.
गधे वाला शेर बढि़या है । विशुद्ध हिंदी के काफिये वैसे भी सुनने में बहुत आंनद देते हैं । तिस पर आप जैसे महारथी के हाथों में पड़कर तो ये काफिये और निखर जाते हैं ।
बहुत सुंदर सम्भावना।
-Zakir Ali ‘Rajnish’
{ Secretary-TSALIIM & SBAI }
ठीक ही कहा आपने....
संभावनाओं पर टिका है ये सारा संसार,
संभावनाएं होती नहीं हर लेकिन साकार....
साभार
हमसफ़र यादों का.......
मै तरसता ही जिन्दगी में रह गया
खो गयी जो तेरे पास की संभावना
आप सभी का आभार
umda !
behtareen !
anand aa gaya...................
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