कोई ढंग का काम करो और बनवाऒ पहचान मियां
वरना तुमको बिसरा देगी अपनी ही संतान मियां
अपनी ताक़त को पहचानो मत ग़ैरों की ऒर तको
खुद को खुद से छिपा के कब तक रक्खोगे अंजान मियां
अम्मां की आंखों का तारा बापू के सपनों का अफसर
बीए कर के शहर में आया बन बैठा दरब़ान मियां
जब से इस बस्ती के बाजू थाना एक खुला है तब से
भाग गये सब लोग यहां से बस्ती है सुनसान मियां
बैठ हमारे साथ कभी तो प्यार से दो-दो कौर छको
मिस्सी रोटी-हरे साग का बिछा है दस्तरख्वान मियां
--योगेन्द्र मौदगिल
29 comments:
अपनी ताक़त को पहचानो मत ग़ैरों की ऒर तको
खुद को खुद से छिप के कब तक रक्खोगे अंजान मियां
wah maudgil ji , hamesha ki tarah ek aur behatareen rachna se blog jagat ka gulshan mehka. bahut badhai.
जब से इस बस्ती के बाजू थाना एक खुला है तब से
भाग गये सब लोग यहां से बस्ती है सुनसान मियां
-गज़ल तुम्हारी सुनकर के, तुम पर है अभिमान मियां!!
एक दम पक्की ग़ज़ल
जै जै
sheron me hai jaan miyan
khoob tumhari shaan miyan
आपकी सुंदर टिपण्णी के लिए बहुत बहुत शुक्रिया!
बहुत ही उम्दा ग़ज़ल पेश किया है आपने!
'अम्मा की आँखों का तारा…'
मार्मिक यथार्थ!
सुंदर ग़ज़ल
बहुत सटीक रचना.
रामराम.
अम्मां की आंखों का तारा बापू के सपनों का अफसर
बीए कर के शहर में आया बन बैठा दरब़ान मियां..
बहुत सही तस्वीर .अच्छी रचना ,बधाई .
"बीए कर के शहर में आया बन बैठा दरब़ान मियां"
खुल के दाद सर इस शेर पर !!!
जब से इस बस्ती के बाजू थाना एक खुला है तब से
भाग गये सब लोग यहां से बस्ती है सुनसान मियां
BAHOT KHUB SAHIB... KYA KHHUB SHE'R KAHE HAI AAPNE..EK BAAR FIR SE LAGAYAA AAPNE KAS KE SABHI KO... KHUL KE DAAD SABHI SHE''R PE..
ARSH
बैठ हमारे साथ कभी तो प्यार से दो-दो कौर छको
मिस्सी रोटी-हरे साग का बिछा है दस्तरख्वान मियां
भाई जी इत्ते प्यार से बुलाओगे तो दौडे चले आयेंगे....बहुत की कमाल की ग़ज़ल कह डाली है आपने...हर एक शेर बरसों बरस हमारे साथ रहने वाला है...आप लाजवाब हो जी लाजवाब. वाह...वा...कित्ती बार करूँ...मन न भर रा...
नीरज
Bahut achchi rachana ..
अपनी ताक़त को पहचानो मत ग़ैरों की ऒर तको
खुद को खुद से छिप के कब तक रक्खोगे अंजान मियां
जब से इस बस्ती के बाजू थाना एक खुला है तब से
भाग गये सब लोग यहां से बस्ती है सुनसान मियां
Yeh do behad pasand aaye!
God bless
RC
वाह-वाह! वन्स मोर!
अम्मां की आंखों का तारा बापू के सपनों का अफसर
बीए कर के शहर में आया बन बैठा दरब़ान मियां
waah waah...
yogendra ji , kya khoob likha hai ji .. man ko choo gayi aapki rachana ,,,waha wah
badhai sweekar karen..
जब से इस बस्ती के बाजू थाना एक खुला है तब से
भाग गये सब लोग यहां से बस्ती है सुनसान मियां
वाह वाह.....गुरुदेव............छा गए आप...........क्या बात कही है...............समाज का दर्पण होती है आपकी हर एक रचना .........लाजवाब अंदाज़ है आपका
आपकी एक एक रचना में करारा सत्य होता है... बहुत खूब !
कोई ढंग का काम करो और बनवाऒ पहचान मियां
वरना तुमको बिसरा देगी अपनी ही संतान मियां
kya baat hai yogendra ji kamaal kaha hai
last sher bhi khoob pasand aaya
वाह! ज़ोरदार
'बैठ हमारे साथ कभी तो प्यार से दो-दो कौर छको
मिस्सी रोटी-हरे साग का बिछा है दस्तरख्वान मियां'
- यह प्यार और अपनापन ही सार तत्व है.
'बैठ हमारे साथ कभी तो प्यार से दो-दो कौर छको
मिस्सी रोटी-हरे साग का बिछा है दस्तरख्वान मियां'
Nimantran ke liye dhanyawad. Aapka menue sunkar hi muh men panee aagaya.
आपकी नसीहत ध्यान रखूँगा।
ना जानू क्यों पढते ही दिल को छू गई ये लाईन।
अपनी ताक़त को पहचानो मत ग़ैरों की ऒर तको
खुद को खुद से छिप के कब तक रक्खोगे अंजान मियां
और दरबान वाली भी। वाह।
bahut khoob kahu yaa kya kahu samjh me nahi aata/ aap ki rachnaye lazvaab rahti he/ bas padhhte raho aour mazaa lete raho//
वाह मौदगिल जी सच आप लाजवाब हैं। आज भी अपने दोस्तों को आप की गजलें-कविता सुनाता हुं पर हां सच्चाई के साथ आपका नाम भी बताता हूं।
मुझे जो बेहद पसंद आई---
जब से इस बस्ती के बाजू थाना एक खुला है तब से
भाग गये सब लोग यहां से बस्ती है सुनसान मियां
बहुत खूब।
अपनी ताक़त को पहचानो मत ग़ैरों की ऒर तको
खुद को खुद से छिपा के कब तक रक्खोगे अंजान मियां
बहुत ही बढ़िया ग़ज़ल है..सभी शेर बहुत खूब लगे!
बहुत ही लाजवाब और शानदार रचना लिखा है आपने!
सभी शेर एक से एक बढ़कर हैं.आदाब किसे कहूँ.
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