खुशफहमी में जीने वालों देखो आकर चौराहे पर
भूखा रामू गिरा पड़ा है बोझ में दब कर चौराहे पर
कब तक जीऒगे लाला तुम कूएं के मेंढक बन कर
गद्दी छोड़ो बाहर दुनिया देखो आकर चौराहे पर
बंदर गया खज़ाना लेने मुट्ठी भर-भर लाया कौड़ी
हाथ फैलाये बैठा है अब उसे लुटा कर चौराहे पर
भूख से नन्हा बच्चा उसका बिलख-बिलख कर जब था रोया
बैठ गयी वो बदन बेचने नज़र झुका कर चौराहे पर
अब तो हाट में इंसानों की बोली लग जाती है प्यारे
बैठें हैं मज़दूर सुबह से देखो सज कर चौराहे पर
जो सुनना चाहतें हैं ग़ज़लें जाम-हुस्न की और साक़ी की
इस महफिल से उठ जायें वो बैठें जा कर चौराहे पर
--योगेन्द्र मौदगिल
30 comments:
इक तड़प है आन्दोलित होने के लिए
वाह! गजब का तेवर है इस गज़ल में। एक सांस में पढ़ गया मैं तो। सरस्वती की असीम कृपा है आप पर। आपकी लेखनी यूं ही निरंतर चलती रहे।
जो सुनना चाहतें हैं ग़ज़लें जाम-हुस्न की और साक़ी की
इस महफिल से उठ जायें वो बैठें जा कर चौराहे पर
yah gazal nahin samaj ki vyavastha ke prati vidroh hai, poora andolan hai, wah mudgil ji , shabd kam pad gaye tareef ke kya karun.
बहुत उम्दा .
कठोर यथार्थ की सशक्त अभिव्यक्ति। बधाई।
बहुत सटीक और यथार्थ रचना.
रामराम.
भूख से नन्हा बच्चा उसका बिलख-बिलख कर जब था रोया
बैठ गयी वो बदन बेचने नज़र झुका कर चौराहे पर
satya bachan kahe hai aapne... bahot hi karaaraa lagaaya hai aapne....
arsh
बहुत अच्छा लिखा है।
Acchi pustak ki jankari di hai apne...
bahut khub...
भूख से नन्हा बच्चा उसका बिलख-बिलख कर जब था रोया
बैठ गयी वो बदन बेचने नज़र झुका कर चौराहे पर
बेहतरीन रचना ...आभार
मौदगिल जी , गजब ढाते हो...
कहो किस शेर के लिए वाह वाह कहें हर एक
दूसरे से बढ़ कर.
शैफाली जी की पसंद का शेर और फिर आखिरी शेर भी जिसे स्वप्न जी ने पसंद किया.
अब तो हाट में इंसानों की बोली लग जाती है प्यारे
बैठें हैं मज़दूर सुबह से देखो सज कर चौराहे पर
जो सुनना चाहतें हैं ग़ज़लें जाम-हुस्न की और साक़ी की
इस महफिल से उठ जायें वो बैठें जा कर चौराहे पर
बहुत खूब। हमेशा की तरह बेहतरीन प्रस्तुति।
आज के हालात की बखिये उधेड़ती हुई ग़ज़ल...एक एक शेर हथोडे की तरह दिमाग पर वार करता है...वाह मुदगिल भाई वाह...किन लफ्जों में तारीफ करूँ?....बस आँख बंद करके दिल से दुआ दे रहा हूँ...लिखते रहें ऐसे ही...
नीरज
भूख से नन्हा बच्चा उसका बिलख-बिलख कर जब था रोया
बैठ गयी वो बदन बेचने नज़र झुका कर चौराहे पर
kitna marmik !!!
sachchai liye sundar abhivyakti !!!
समाज की हकीकत बयां करती हुई बेहद दमदार रचना...आभार
मौदगिल जी, आपकी भेजी मेल मैं आज ही देख पाया हूं....यहां पंजाब में अभी 13 तारीख को चुनाव होने है...इसलिए व्यस्तता थोडी बढ गई है. चुनावों के पश्चात आपका वो कार्य अवश्य हो जाएगा.
धन्यवाद
bahut sashakt sach ka bayan krti huai sarthak rachna .
वाह वाह मोदगिल साहब.............आपकी पहचान ही समाज को आइना दिखाने वाली है...........और आपने इस बार भी कड़वा सच आइना दिखला दिया है सबको...........
बहुत ही सार्थक रचना........अंतिम शेर ग़ज़ल विद्या को नयी आयाम देता है
जो सुनना चाहतें हैं ग़ज़लें जाम-हुस्न की और साक़ी की
इस महफिल से उठ जायें वो बैठें जा कर चौराहे पर
bahut khoob.............
चौराहे पर तड़फती आत्माओं की आवाजों को बेहतरीन शब्द दिये है आपने। बहुत ही उम्दा चित्रण यथार्थ का।
हमेशा की तरह बेहतर लिखा है मौदगिल साहब वैसे आपके अंतराल साफ संकेत दे रहे हैं कि आप अभी चुनावों में व्यस्त चल रहे हैं खैर जीत आपकी पक्की सभी ब्लागर आप ही के हक में वोट डालेंगे आप चुनाव लडो शुभकामनाएं
बहुत सच बात कही है इस रचना में।
ek bar phir aapne mann ka munch loot liya...........bahut loot macha rakhi hai aapne...
BADHAI
पाय लागु गुरूवर....
एक बार फिर से चमत्कृत करती आपकी लेखनी...और आखिरी शेर तो बस..वो क्य कहते हैं इंगलिश में-हाँ, mindblowing
अब तो हाट में इंसानों की बोली लग जाती है प्यारे
बैठें हैं मज़दूर सुबह से देखो सज कर चौराहे पर
ham to roj inhi chauraaho se gujarte hai sar ji.....
रोज-रोज कहां से लाऊं नई उपमायें, नये शब्द प्रशंसा करने के लिये
भूख से नन्हा बच्चा उसका
बिलख-बिलख कर जब था रोया
बैठ गयी वो बदन बेचने
नज़र झुका कर चौराहे पर
bs , iske baad kya kehna aur kya sun`na....
zindgi ki talkhee ko yoon byaan kar pana saahas ka kaam hai.
aapko abhivaadan kehta hoon .
---MUFLIS---
अब तो हाट में इंसानों की बोली लग जाती है प्यारे
बैठें हैं मज़दूर सुबह से देखो सज कर चौराहे पर
कड़वी सच्चाई .
आभार.
चन्द्र मोहन गुप्त
चौराहे की सही तस्वीर पेश कर दी है आपने !
... कमाल-धमाल कर दिया, लाजवाब गजल, दिल को छूने वाली अभिव्यक्ति !!!!!!
वाह वाह क्या बात है! बहुत ही बढ़िया ग़ज़ल लिखा है आपने!
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