भँवर से बच के निकलें जो उन्हें साहिल डुबोते हैं अजूबे तेरी दुनिया में कभी ऐसे भी होते हैं ये परदे की कलाकारी भला व्यवहार थोड़े है जो रिश्तों को बनाते हैं वही रिश्तों को खोते हैं वो फूलों से भी सुंदर हैं वो कलियों से भी कोमल हैं मुहब्बत करने वाले खूबसूरत लोग होते हैं किसी को पेट भरने तक मयस्सर भी नहीं रोटी बहुत से लोग खा-खा कर यहां बीमार होते हैं जिन्हें रातों में बिस्तर के कभी दर्शन नहीं होते बिछा कर धूप का टुकड़ा ऒढ़ अखब़ार सोते हैं हमीं ने आसमानों को सितारों से सजाया है हमीं धरती के सीने में बसंती बीज बोते हैं मुहब्बत से भरी नज़रें तो मिलती हैं मुकद्दर से बहुत से लोग नज़रों के मगर नश्तर चुभोते हैं --योगेन्द्र मौदगिल |
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ये परदे की कलाकारी
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25 comments:
मुहब्बत करने वाले खुबसूरत लोग होते है... ओहो क्या बात करदी आपने... . बहोत खूब लिखा है आपने....नए अंदाज़ में आये आज फिर से आप...
ढेरो बधाई आपको साहिब
अर्श
मुहब्बत से भरी नज़रें तो मिलती हैं मुकद्दर से
बहुत से लोग नज़रों के मगर नश्तर चुभोते हैं
वाह्! मौदगिल जी,बहुत ही खूब लिखा आपने.....बधाई
वाह! सटीक एवं बेहतरीन रचना!!
क्या बात है योगेन्द्र जी....इस लाजवाब तरही पर हम तो नत-मस्तक हो गये कविवर।
और गिरह तो इतना जबरदस्त लगाया है कि...उफ़्फ़्फ़्फ़्फ़्फ़्फ़्फ़्फ़्फ़्फ़
बहुत ही सुंदर हमेशा की तरह से .
धन्यवाद
खूबसूरत ग़ज़ल!
किसी को पेट भरने को मयस्सर भी नहीं रोटी।
बहुत से लोग खा खा कर यहाँ बीमार होते हैं।
जिन्हें रातों में बिस्तर के कभी दर्शन नहीं होते।
बिछा कर धूप का टुकड़ा ओढ़ अखबार सोते हैं।।
बेहतरीन पँक्तियाँ हैं। भाई वाह। कहते हैं कि-
सामान सर पे लेके खड़े हैं गरीब लोग।
खाली पड़ी है रेल में धनवान की जगह।।
सादर
श्यामल सुमन
09955373288
मुश्किलों से भागने की अपनी फितरत है नहीं।
कोशिशें गर दिल से हो तो जल उठेगी खुद शमां।।
www.manoramsuman.blogspot.com
बढि़याँ
'मुहब्बत करने वाले ख़ूबसूरत लोग होते हैं'
बहुत ख़ूब!
हमेशा की तरह एक बार फिर से दिल को छू गई आपकी ये ग़ज़ल, निम्न शेर तो विशेष लगा................
मुहब्बत से भरी नज़रें तो मिलती हैं मुकद्दर से
बहुत से लोग नज़रों के मगर नश्तर चुभोते हैं
चन्द्र मोहन गुप्त
wo phoolon se ,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,log hote hain.
hamesha ki tarah ek aur behtareen rachna, maudgil ji, jawaab nahin.
किसी को पेट भरने को मयस्सर भी नहीं रोटी।
बहुत से लोग खा खा कर यहाँ बीमार होते हैं
सच्ची...सटीक बातें
सटीक और शानदार रचना.
रामराम.
गुरूजी ने इसी मिसरे पर मुशायरा करवाया था" मोहब्बत करने वाले खूबसूरत लोग होते हैं" और आप ने क्या खूब ग़ज़ल कही है...आप के हुनर की अब क्या दाद दें...दे दे कर थक गए हैं और आपका ये हुनर दिनों दिन निखरता ही जा रहा है...क्या कहें? कहाँ से प्रशंशा के शब्द लायें भाईजी?
नीरज
जिन्हें रातों में बिस्तर के कभी दर्शन नहीं होते
बिछा कर धूप का टुकडा ओढ अखबार सोते हैं।
बहुत प्यारा शेर है, बधाई।
बहुत खूब।
जिन्हें रातों में बिस्तर के कभी दर्शन नहीं होते।
बिछा कर धूप का टुकड़ा ओढ़ अखबार सोते हैं।।
bahut khuub!
bemisaal gazal !
किसी को पेट भरने को मयासर नहीं रोटी.....क्या खूब कहा आपने योगेन्द्र जी....सचमुच कभी कभी आप समाज को जैसे कोई सुई सी चुभा जाते है
bahut khoob, wah-wah, bahut sundar.
खूब.....बहुत खूब....!
मुहब्बत से भरी नज़रें तो मिलती हैं मुकद्दर से
बहुत से लोग नज़रों के मगर नश्तर चुभोते हैं
" wah kya khub nazro ki dono sikko ke phlu ko byan krte shabd..."
Regards
किसी को पेट भरने को मयस्सर भी नहीं रोटी।
बहुत से लोग खा खा कर यहाँ बीमार होते हैं।
जिन्हें रातों में बिस्तर के कभी दर्शन नहीं होते।
बिछा कर धूप का टुकड़ा ओढ़ अखबार सोते हैं।।
बहूत बेहतरीन ग़ज़ल मोदगिल जी ..
आपकी ग़ज़ल अक्सर बहूत खूबसूरत होती है. कुछ समय पहले इसी मिसरे पर पंकज जी नें तरही मुशायरा करवाया था, आपकी ये ग़ज़ल उन सबसे ज़्यादा खूबसूरत है कुछ कहती हुई लगती है, आपका अंदाज़ आज बहूत कोमल सा लग रहा है. पढ़ कर दिल झूम उठा
Sare She'r achche hain magar kisi bhi She'r mein is baar koi nayi baat nahin nazar aayi ... muaafi.
God bless
RC
हर शेर एक से बढकर एक।
किसी को पेट भरने तक मयस्सर भी नही रोटी
बहुत से लोग खा खा कर यहाँ बीमार होते हैं।
जिन्हें रातों में बिस्तर के कभी दर्शन नही होते
बिछा कर धूप का टकडा ओढ अखबार सोते हैं।
बहुत ही बेहतरीन लिखा है आज के सच को।
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