उतने ऊंचे घर के गेट.
पेट भरा हो-लगता है,
भरा-भरा सा सबका पेट.
खूब चढ़ाता मन्दिर में,
बहियों से कर-कर आखेट.
जितना उत्पादन हो यार,
उतना क्यों गिर जाता रेट.
छोड़ के दारू बच्चों को,
ला दे कापी और स्लेट.
टुक-टुक देख रहा है यार,
घर है कोई भूखे पेट.
--योगेन्द्र मौदगिल
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24 comments:
बहुत बढ़िया और सटीक....
गुरुवर......आ गए अपनी स्टाइल में, बहोत खूब और सटीक रचना.
यथार्थ टपकता है आपकी तेज़ धार मैं, छीलते हुवे जाती आपकी रचना
अति उत्तम
हमेशा की तरह संदेश देती रचना
मौदगिल साहिब कसम से आप ये तो कास के लगाते हो मज़ा आजाता है ... जितना उत्पादन हो यार उतना क्यूँ गिर जाता रेट...बहोत खूब... इस पंक्ति में आपने ब्याव्शाईक शिक्षा देने से भी गुरेज नहीं किया वाह जी वाह.... ढेरो बधाई आपको...
अर्श
खूब चढ़ाता मन्दिर में,
बहियों से कर-कर आखेट.
जितना उत्पादन हो यार,
उतना क्यों गिर जाता रेट.waah bahut ahhe lage ye sher.gazalhamesha ki tarah nayab.
जितनी सुन्दर नेमप्लेट.
उतने ऊंचे घर के गेट.
योगेन्द्र जी बहुत ही सुंदर लगीआप की यह कविता भी हमेशा की तरह से, एक सच
धन्यवाद
बहुत ही सटीक और नायाब.
रामराम.
वाह !
क्या बात है योगेन्द्र जी...ये आपका एकाधिकार है इन खास अंदाज़े-बयानों पर। गज़ब का मतला...
और सरस्वती-सुमन के इस अंक का संपादन आप संभाल रहे हैं, बड़ी खुशी हुई। अभी पिछला अंक देखा था मुफ़लिस जी के संपादन वाली।
ढ़ेरों शुभकामानायें
बहुत खूब... आपकी स्टाइल के क्या कहने !!!!!!!!
पेट भरा हो लगता है,
भरा भरा सा सबका पेट
सही कहा....!
पढ़कर सिर्फ वाह !! वाह !! वाह !! कहा जा सकता है....इसके आगे के अभिव्यक्ति के सारे शब्द तो आपलोगों की चेरी बने हुए हैं...हमारे पास कुछ है ही नहीं तो क्या कहें..
mujhe to aapki chhote-chhote dohon wali rachnayen bahut achhi lagti hain.
जितना उत्पादन हो यार,
उतना क्यों गिर जाता रेट.
भाई जी बिलकुल सही कहा है आपने...ये बात अबकी जब मालिकसेठ लोग फेक्ट्री में आयेंगे तो उनसे पूछूँगा...हमारे भी ये खेल होता है भाई...
आपने हास्य की रचना मांगी है तो भाईजी हास्य में हमने अभी कलम चलाई नहीं अगर मेरी होली पे लिखी ग़ज़ल आपको पसंद हो तो भेज दूं...वो ही जो पंकज जी के तरही मुशायरे में छपी थी...
नीरज
उत्पादन बढेगा तो रेट तो गिरेगा
bahut sateek aur sunder hamesha ki tarah. badhai
बहुत बढ़िया कविवर.
इधर यायावरी और एयरटेल के इन्टरनेट कनेक्शन के चक्कर में आपके पिछले १० पोस्ट अपठित रह गए हैं. आज पूरा हिसाब बराबर करता हूँ.
जितनी सुन्दर नेमप्लेट.
उतने ऊंचे घर के गेट.
पेट भरा हो-लगता है,
भरा-भरा सा सबका पेट.
वाह !! वाह !! वाह !! saraswati suman ke sampadak pad ki bdhaiyan...!! Rone wala ank nikalega to btaiyega...!!!
हमेशा कि तरह सच्चाई से रूबरू कराती रचना...जिसके लिए शायद वाह वाह कहना भी कमतर होगा......आपको संपादक पद की बहुत बधाई....
जितनी सुन्दर नेमप्लेट.
उतने ऊंचे घर के गेट.
पेट भरा हो-लगता है,
भरा-भरा सा सबका पेट.
वाह क्या बात हैं।
सुंदर.
जीवन की विसंगतियों को बखूबी बयां किया है।
टुक टुक देख रहा है यार
घर में कोई भूखा पेट
बहुत खूब और स्टीक लिखाहै आपने।
बढ़िया रचना!!
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