नेता.....

जब कुछ न हो सका तो साला हो गया नेता.
ख़ाक़ियों को, ख़ादियों को धो गया नेता.

हिंदु हुये हिंदु तो मुल्ले हो गये मुल्ले,
बंटवारे के ये बीज पट्ठा बो गया नेता.

सुल्गे हुए चौराहों पे जलती रही जनता,
घर जा के एसी आन कर के सो गया नेता.

जनता ने, पत्रकारों ने जो पूछे कुछ सवाल,
फिर कैमरे के सामने ही रो गया नेता.

थक गईं फिर पुतलियां जनता की आंख की,
वापिस नहीं आया अगरचे जो गया नेता.
--योगेन्द्र मौदगिल

24 comments:

Udan Tashtari said...

सारा सच उजागर कर दिया.

Vinay said...

हर शे'र लाजवाब! मज़ा आ गया, क़सम से!

"अर्श" said...

वाकई सारा सच उजागर कर दिया आपने ,एक बार फ़िर लगाया कस के ... ढेरो बधाई आपको...

अर्श

seema gupta said...

"जब गरज पडी जनता को जी भर भर भरमाया...
काम निकल जाने पर गिरगिट सा रंग बदल गया नेता....."

Regards

Anil Pusadkar said...

नेताओं की नई और कई परिभाषा अच्छी लगी।

ताऊ रामपुरिया said...

बहुत सटीक सिक्सर लगाया है जी.

रामराम

Pt. D.K. Sharma "Vatsa" said...

वाह्! हर शेर उम्दा........मौदगिल जी, आपकी संगत के असर से उपजी 4 लाईनें मेरी तरफ से भी......
"कुर्सी को भूलकर, फिजां में खो गया नेता!
अजी चन्द्रमोहन से चांद मियां हो गया नेता!!
उतरा जो भूत इश्क का तो याद आई कुर्सी!
फिर चांद मियां से चन्द्रमोहन हो गया नेता!!"

रंजना said...

वाह ! वाह ! वाह ! एकदम सटीक...........

दिगम्बर नासवा said...

वाह वाह मोदगिल साहब...........नेता हैं ही इसी लायक की उनको धो धो कर मारा जाए..........मजा आ गया पढ़ कर, दिल में ठंडक आ गयी

भारतीय नागरिक - Indian Citizen said...

गुरू जी सटीक वार किया है.

Science Bloggers Association said...

नेताओं का सुंदर एवं सटीक आकलन किया किया है आपने। बधाई।

रंजू भाटिया said...

नेता के सब रूप सुंदर ढंग से व्यंग रूप में लिख दिए आपने .

P.N. Subramanian said...

अरे क्या बात है. जिया में चक्रवात आ गया.

Abhishek Ojha said...

पोल ही खोल दी आपने तो !

राज भाटिय़ा said...

मोदगिल साहब, अजी आप ने तो इन नेताओ की जन्म पत्री ही खोल दी, बहुत सुंदर.
धन्यवाद.

एक बात आज कल क्या बात है फ़ोटू बदल बदल कर आ रहे है, मै तो कई बार झिझक ही जात हुं, कि यह किस नोजवान के दुआरे आ गया, फ़ि चशमा साफ़ करे के देखता हुं तो पता चलता है अरे यह तो हमारे मोदगिल साहब जी ही है.

परमजीत सिहँ बाली said...

अच्छी चोट मारी है नेताओं पर।बहुत जोरदार व्यंग्य किया है।बधाई।

जब कुछ न हो सका तो साला हो गया नेता.
ख़ाक़ियों को, ख़ादियों को धो गया नेता.

हिंदु हुये हिंदु तो मुल्ले हो गये मुल्ले,
बंटवारे के ये बीज पट्ठा बो गया नेता.

सतपाल ख़याल said...

vyang aur kataksh ka khas andaz ghazal se bakhoobi jhalkta hai.
bahut achee ghazal hai

thanks!

sandhyagupta said...

Ek baar phir aapke chutile andaaj me rochak prastuti.Badhai.

बवाल said...

बहुत ही शानदार योगी बड्डे।

नीरज गोस्वामी said...

भाई जी...सच कहूँ...मेरा जी कर रहा है की आपको कंधे पे उठा कर नाचूं....क्या लिखा है भाई..वाह...जालिम कमाल कर दिया...
नीरज

राजीव तनेजा said...

तेज़ धार ...पैने वार....नुकीले हर बार हैँ मौदगिल जी बारंबार

daanish said...

"हर इलेक्शन जीत कर गायब हुआ ऐसे .
देखते ही रह गए सब, वो गया नेता ..."

हुज़ूर ! खूब पोल खोली है आपने ...
हर शेर अपने आप में एक छिपी हुई सच्ची
दास्ताँ लिए हुए है ......
कटाक्ष का बेहतर नमूना .......बधाई....!!
और हाँ ! आपकी आमद का शुक्रिया , यकीनी तौर पर मेरी हौसला-अफ़जाई हुई है ....
किसी भी रचना का आपकी पारखी नज़रों से गुज़र जाने से उस रचना का सृजन सार्थक हो जाता है , ऐसा मेरा दृढ विश्वास है .....
शुक्रिया . . . . . .
---मुफलिस---

Smart Indian said...

दुनिया को यही चला रहे हैं, भैया!

गौतम राजऋषि said...

ये जो आपका गज़ल रूपी डंडा है ना कविवर उफ़्फ़्फ़्फ़्फ़्फ़्फ़,क्या बरसता है-हर बार, हर दफ़ा
कमबखतों को फिर भी चोट नहीं लगती?

सलाम है मेरा----निराली चोट