ज़िन्दगी का क्या भरोसा, आजकल के दौर में..!
रौशनी का क्या भरोसा, आजकल के दौर में..!
दरअसल जब चोट अपने लोग ही देने लगे,
फिर किसी का क्या भरोसा, आजकल के दौर में..!
छल-कपट तो हो गयी है, आजकल फितरत मियां,
आदमी का क्या भरोसा, आजकल के दौर में..!
पांव छूने के बहाने खींचते हैं टांग को,
बन्दगी का क्या भरोसा, आजकल के दौर में..!
लूटने वाले भी धंदे पर निकलते हैं मियां,
चौकसी का क्या भरोसा, आजकल के दौर में..!
अंततः बच्चों की खातिर बेच दी उस ने हया,
बेबसी का क्या भरोसा, आजकल के दौर में..!
गो मिले ना आब तो फिर जहर ही पीने लगे,
तिश्नगी का क्या भरोसा आजकल के दौर में..!
जीत हासिल कर ही लेने की अगर हो फिक्र तो,
बेखुदी का क्या भरोसा आजकल के दौर में..!
टिप्पणी पर ध्यान दोगे कुछ नहीं कह पाऒगे,
टिप्पणी का क्या भरोसा, आजकल के दौर में..!
--योगेन्द्र मौदगिल
44 comments:
क्या बात है!बहुत बढिया गजल है।
टिप्पणीयां किए बिन, हम से रहा जाता नही,
मौदगिल जी क्या करें हम,आजकल के दौर में..!
दरअसल जब चोट अपने लोग ही देने लगे,
फिर किसी का क्या भरोसा, आजकल के दौर में..!
छल-कपट तो हो गयी है, आजकल फितरत मियां,
आदमी का क्या भरोसा, आजकल के दौर में..!
बहुत खूब..आज के नाजुक दौर की पहचान कराती अच्छी शायरी।
टिपण्णी का ध्यान रखना, आज कल के दोर मै..
यह टिपण्णी नही है एक शबाशी है आज कल के दोर मै.
धन्यवाद एक सटीक बात को इतने उम्दा ढगं से कहने के लिये
आज तो बिल्कुल सिक्सर लगाया है मोदगिल साब आपने !
घणी बधाई !
राम राम !
सातवां मतला तो गज़ब का लिखा है .... तिश्नगी का क्या भरोसा आजकल के दौर में ....
ढेरो बधाई स्वीकार करें साहब.....
टिप्पणी पर ध्यान दोगे कुछ नहीं कह पाऒगे,
टिप्पणी का क्या भरोसा, आजकल के दौर में..!
Badhiya hai bhai.
bahut khoob
वाह ! बहुत ही सुंदर सार्थक गजल है.एकदम सही लिखा है आपने.
किसी का कुछ भरोसा नहीं. आखिरी लाइन तो बिल्कुल सच है ! भले आपके ब्लॉग के लिए ना हो :-)
टिप्पणी पर ध्यान दोगे कुछ नहीं कह पाऒगे,
टिप्पणी का क्या भरोसा, आजकल के दौर में..!
--क्या बात है!! बहुत खूब!!
टिप्पणी पर ध्यान दोगे कुछ नहीं कह पाऒगे,
टिप्पणी का क्या भरोसा, आजकल के दौर में..!
अपने भावः व्यक्त करने का आपका अलग ही अंदाज़ है
Regards
Ek katu satya aapki kavita ke madhyam se padne ko mila....
Achcha likhte hai aap....badhai aapko....
Regards
Bahut hi acha likha ha aapne aajkal kisi ka koi bharosa nahi bahut khub!bahut-2 badhai...
आज आप भी जुदा से नजर आये
पांव छूने के बहाने खींचते हैं टांग को,
बन्दगी का क्या भरोसा, आजकल के दौर में..!
हमेशा की तरह एक और धमाका
सुंदर गज़ल, आपकी शायरी को सलाम
सच को दर्शाती बहुत बढिया गजल कही आपने आजकल के दौर में|बहुत-बहुत बधाई|
aaj ke waqt aur mahoul ko khoob utara hai aapne is ghazal mein..
वाह्! बहुत खूब
आपने तो एक गजल मे ही सारे समाज का खाका खींच डाला.
padh kar achcha lagaa
Ek alag andaaj me sachchai bayan ki aapne.Badhai.
योगेन्द्र जी
नमस्कार
आपकी रचनाएं मिल गई हैं । और आप्ने बिल्कुल सही लिखा है क्योंकि ई मेल का भी क्या भरोसा कहीं और्र पहुंच जाए आज कल के दौर में ।
Achchi rachaha hai. "Go mile na .." She'r sabse adhik pasand aaya.
"Jeet haasil kar hi lene ki agar ho fikr to
bekhudi ka kya bharosa .."
Yeh She'r theek se samajh nahin paayi.
RC
ब्यूटी पार्लर की कहा कर कौन जाता है कहाँ
किसका करें भरोसा आज कल के दौर में
मार्ग दर्शक
पांव छूने के बहाने खींचते हैं टांग को,
बन्दगी का क्या भरोसा, आजकल के दौर में..!
बहुत बढिया ।
हर चीज से भरोसा उठ गया के ?
भाई मौदगिल जी,
आज कल के दौर में भरोसे उठने पर मई तो अक्सर कहा करता हूँ कि
१. एक जमाना था कि मर्द अपनी जबान से कही बात से फिरता नही था, पर आज कल चली जबान रोज़ ही फिरती रहती है, मुकरती रहती है , फिर आज के दौर में ऐसे लोगों को आप क्या कहेंगें ??????????????
२. एक जमाना था कि मर्द अपनी जबान से कही बात से से न फिरने का वास्ता देते हुए कहता था कि अगर मुकर गया तो मूछें मुड़वा दूँगा पर आज कल के लोग तो मूछ रखते ही नही तो फिर क्या मुड़ने का वास्ता देंगें??????
३. एक जमाना था कि मर्द की ज़रा सी गलती पर उसे चुल्लू भर पानी में डूब मरने की झिरकियाँ मिलती थी पर आज बड़ी से बड़ी गलती उसे चुल्लू भर पानी क्या, समुद्र में भी डुबाओ, तो हँसता हुआ बहार निकल आएगा .
उपरोक्त बातें बिचार करने और हो सकता है कि आप की किसी व्यंगात्मक कविता का हिस्सा बन सके इस विचार से आपको समर्पित है.
हमारे विचारों को व्यंग के पुट में बाँध कर आपने अपने अंदाज में जो संबल मुझे प्रदान किया है उसके लिए मैं आपका अनुग्रहीत हूँ.
चन्द्र मोहन गुप्त
क्या बात कही है, पूरी कविता ही अच्छी है, इसलिये क्या टिप्पणी की जाये.
आप के सभी ब्लॉग देखे. सन २००० वाले भास्कर के तरकश के मुकाबले धार काफी तेज लगी.
shesh SHUBH
अपने आप में सम्पूर्ण एवं उत्कृष्ट रचना देने के लिए आपके आभारी हैं मौदगिल भाई ! बधाई
६ठा, सातवाँ शेर बहुत उम्दा और आखिरी शेर सब पर भारी....! अनुभव तो आपसे बाँट ही चुकी हूँ :)
मैं बहुत दिनों से गायब रहा माफ़ी चाहता हूँ , मेरे छोटे भाई की शादी थी एक महिना तो उसमें लग गया और कुछ दिनों से मेरी तबियत बहुत ख़राब थी अब से नियमित ब्लॉग पर रहूँगा
यथार्थ चिंतन बहुत सुंदर बधाई पाँव चूने के बहाने टांग ख्हेंचते है ,, बंदगी क्या मायने हो गए ग\है आज कल
aapki ye rachana bahut acchi hai . aur man ko choo gayi hai .
desh mein is waqt jo ho raha hai uski suchak hai ye nazm.
aapko bahut bahut badhai
mujhe aapki kitab chahiye thi :
vksappatti@gmail.com
vijay
http://poemsofvijay.blogspot.com/
आजकल के दौर में..!
esi soch
esi kavita
आजकल के दौर में..!
टिप्पणी पर ध्यान दोगे कुछ नहीं कह पाऒगे,
टिप्पणी का क्या भरोसा, आजकल के दौर में..!
पढ़ते-पढ़ते हँसा दिया आपने ...
पांव छूने के बहाने खींचते हैं टांग को,
बन्दगी का क्या भरोसा, आजकल के दौर में..!
... chhaa gaye, kamaal ki rachanaa hai.
लूटने वाले भी धंदे पर निकलते हैं मियां इस मंदे के दौर में
चौकसी का क्या भरोसा आजकल के दौर में
मौदगिल साहब
अच्छी कविता हंसी से लोटपोट कर देने वाली खूब हंसे और आपने हंसाया
काफी दिन हो गए हैं अब तो वापस आ जाओ
अब इंतजार सहा नहीं जाता आजकल के दौर में
हो गई इंतहा इस मंदी के दौर में
अब तो हो रही है क्रास छंटनी भी हर तरफ
इस मंदी के दौर में
bahut khoob
tippani ka kya bharosa ...........
sundar rachanaa ke liye aabhar
parantu mujhe aapki aalochnatmak tippani ki prateekshaa rahegi
मौदगिल साहब बहुत ही शानदार रचना है !!!शुभकामनाएं !!!!
यूं समझ आया होगा जिस जिसके लिए लिख डाली
बाकी कर भरोसा टिप्पणी का,आज कल के दौर में
टिप्पणी पर ध्यान दोगे कुछ नहीं कह पाऒगे,
टिप्पणी का क्या भरोसा, आजकल के दौर में..!
bahut umda
पांव छूने के बहाने खींचते हैं टांग को,
बन्दगी का क्या भरोसा, आजकल के दौर में..!
bahut sundar likha sir
bhawnao ko shabd dena hame bhi sikha dijiye na thoda sa :-)
New Post - एहसास अनजाना सा.....
आपको नए साल की बधाई हो |
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