तीन-चार दिन बाहर था. आज ही पानीपत लौटा हूं. आप सभी की स्नेहासिक्त टिप्पणियां सर-माथे पर.
फिलहाल बिना किसी टीका-टिप्पणी के कुछ पंक्तिंयां इस निवेदन के साथ कि---
(मेरी टिप्पणियां अभी बाधित रहेंगी आप अपना स्नेह बनाये रखें)
समर्पित कर रहा हूं कि:---
शुचिता बची न रुचिता, मानव के आचरण में.
रत हो गये हैं सारे, पर्यावरण-क्षरण में.
दीये, कसोरे, कुल्हड़, कूज़े, गिलास, पत्तल,
पुरखों की थातियां हैं, अब प्लास्टिक शरण में.
वन काट लगती फैक्ट्री, पीवीसी-पोलीथिन की,
संसाधनों का दोहन, वन-गांव-वायु-रण में.
लो थक गयी हैं आंखें, बरखा की बाट जोहते,
आदम की भूमिका है, बारिश के अपहरण में.
कैक्टस तो मुस्कराते, रोती बिचारी तुलसी,
वट-नीम और पीपल, हैं काल की शरण में.
भूमि कटाव सहते, नदियां हुई मरुस्थल,
अंगार होके धरती, दहकी, चरण-चरण में.
उत्थान को चले जो पहुंचे विनाश तक वो,
शैतानियत है केवल, आदम के आवरण में.
है राजनीति नागिन और राजनेता बिच्छु,
अब शेष गालियां हैं, जनता की व्याकरण में.
संभावनाएं ज़ीरो, हैं देश में तो 'मुदगिल',
संभव हो जो बचा लो, बच जाये जो भी कण में.
--योगेन्द्र मौदगिल
23 comments:
भूमि कटाव सहते, नदियां हुई मरुस्थल,
अंगार होके धरती, दहकी, चरण-चरण में.
पहले तो काफी इंतजार के बाद वापस आने के लिए आपका स्वागत है मौदगिल साहब जी आपकी ये पोस्ट पर्यावरण बचाने के लिए बेहतर प्रयास बधाई हो काफी अच्छी रचना के लिए बधाई
है राजनीति नागिन और राजनेता बिच्छू,
अब शेष गालियां हैं जनता के व्यायकरण में।
बहुत अच्छा है..सही बात कही है आपने।
सही है कविवर !... पालीथीन का राज... तुलसी का रुदन !
पर्यावरण पे आपकी ये कविता बहोत खूब रही ,ढेरो बधाई आपको..स्नेह परस्पर बना रहे ... प्रतिछारत ....
दीये, कसोरे, कुल्हड़, कूज़े, गिलास, पत्तल,
पुरखों की थातियां हैं, अब प्लास्टिक शरण में.
एक एक शेर से आप की चिंता समझ आ जाती है...हमारा जो हाल हो रहा है वो बहुत साफ़ नजर आ रहा है...ऐसी शशक्त ग़ज़ल के लिए ढेरों बधाई...
नीरज
paryavaran par kiya gaya chintan jaya na jaaye.
aisi kaamna aur vishvaas har jaagruk ka hona chahiye
स्वागत है वापसी पर और सुंदर रचना की बधाई।
bahut vicharpurn kavita
बेहतरीन और लाजवाब रचना !
रामराम !
वाह क्या बात है...
है राज्नीति नागिन, ओर राजनेता.....
योगेन्द्र जी बहुत ही तीखी कविता, मजा आ गया. लेकिन काफ़ी कुछ सोचने पर मजबुर भी करती है आप की यह कविता.
धन्यवाद
पर्यावरण के प्रति आपकी चिंता बेहद सटीक शब्दों में अभिव्यक्ति हुई है। आभार।
आप ने बहुत सही सवाल उठाए हैं।
dosara aur pa.nchava sher...... kya khoob
दीये, कसोरे, कुल्हड़, कूज़े, गिलास, पत्तल,
पुरखों की थातियां हैं, अब प्लास्टिक शरण में.
sahi likha hai .plastic yug hai .....har sher bahut khub hai
aisi sshakt rachna ke liye badhai.
mitti se judi hui gambheer kavita.
लो थक गयी हैं आंखें, बरखा की बाट जोहते,
आदम की भूमिका है, बारिश के अपहरण में.
खूबसूरत लेखन के लिया बधाई
बहुत बढ़िया!
शब्दों का तीखापन इधर इस दुन घाटी तक पहुंच कर सिहरा गया है..
कल के हिन्दुस्तान में आपके ब्लौग की चरचा छपी है...उस "रणचंडी" वाली रचना के लेकर
उत्थान को चले जो , पहुंचे विनाश तक वो,
" एक नही ना जाने कितने पहलुओं पर्यावरण, इंसानियत , मानवता , राजनीती की तरफ कटाक्ष करती एक शशक्त अभिव्यक्ति "
regards
पहले यार चकल्लस पर गए फिर हरियाणा एक्सप्रेस मगर वहां भी कबूतर ही मिला /फिर यहाँ आए तो यहाँ बहुत से सवाल मिले बढ़िया शब्दों का चयन मिला
वाह ! यथार्थ को अतिसुन्दर सटीक शब्दों में आपने चित्रित किया है.बहुत बहुत सुंदर पंक्तियाँ हैं.आभार.
सही कहा आजकल के दौर के बारे में!
Eak se badhkar eak panktiyan...bilkul sahi kaha aapne..
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