रणचण्डी की भेंट चढ़ा दो

बच्चा-बच्चा आज जगा ले अपने स्वाभिमान को.
उठो हिंद के वीर सपूतों, पहचानों-पहचान को.
अपनी पर आकर के बदलो दुनिया के उन्वान को.
बेईमान नहीं समझेगा, जीवन भर ईमान को.
आगे बढ़ कर आग लगा दो नफरत के हैवान को
हिंसा से ही ध्वस्त करो इस हिंसा की दूकान को.
रणचण्डी की भेंट चढ़ा दो पापी पाकिस्तान को....

या तो माफी मांगे या समझे सीमा संधान को.
वरना वो जाकर संभाले अपने कब्रिस्तान को.
समझ गया है चीन समझ है अमरीका-जापान को.
नमन किया है विश्व ने भारत के परमाणु ग्यान को
धता बताऒ ऒसामा-बिन-लादेन के फ़रमान को.
कौन चुनौति देगा बोलो, काली के वरदान को.
रणचण्डी की भेंट चढ़ा दो पापी पाकिस्तान को....

जिस दिन लांघ लिया भारत की सीमा के सम्मान को.
उस दिन ही खंडित कर डाला शिक्षा भरी कुरान को.
एक-एक दिन रहा डोलता यहां-वहां पहचान को.
कोई नहीं बचाने आया पापी के अरमान को.
जान को ले के भागे पट्ठे चोट लगी अभिमान को.
हिंसा, द्वेष, कपट से जन्मी ज़िन्ना की संतान को.
रणचण्डी की भेंट चढ़ा दो पापी पाकिस्तान को....

वीर जवानों की बलि लेने वाले इस अभियान को.
असल की है औलाद तो रखना स्मृति में अवसान को.
भारत मां के वीर लाडले रोक दें हर तूफ़ान को.
गीदड़ टोले की खातिर जब साधें तीर-कमान को.
इसीलिये है सीख यही बस सीमा तने जवान को
भारत मां का आंचल छूने वाले इस शैतान को.
रणचण्डी की भेंट चढ़ा दो पापी पाकिस्तान को....
--योगेन्द्र मौदगिल

29 comments:

गोविंद गोयल, श्रीगंगानगर said...

manmohan jee soniya jee se aagya lekar isko read kar lena. narayan narayan

सौरभ कुदेशिया said...

is hawan main desh ke sabhi gaddar netao ka bhi swah kar dijiye...ghar ke dushman jyaada khatarnak hai..

परमजीत सिहँ बाली said...

बढिया रचना है।बधाई स्वीकारे।

Ashok Pandey said...

बहुत अच्‍छा है यह ओजपूर्ण जागरण गीत। सही बात है। आज अपने स्‍वाभिमान की पहचान अत्‍यंत जरूरी है।

Anil Pusadkar said...

वक़्त की ज़रुरत है आपका गीत्।

ताऊ रामपुरिया said...

सामयीक उत्कृष्ट रचना ! रामराम !

Smart Indian said...

बड़ा ही सामयिक संदेश है आपकी रचना में.

भारतीय नागरिक - Indian Citizen said...

काश जन-सामान्य भी इस संदेश को समझ पाये.

नीरज गोस्वामी said...

जिस दिन लांघ लिया भारत की सीमा के सम्मान को.
उस दिन ही खंडित कर डाला शिक्षा भरी कुरान को.
एक दम सच बयां करती रचना...रोंगटे खड़े हो गए...धन्य हो...
नीरज

Abhishek Ojha said...

ऐसे ओज की अभी बहुत जरुरत है.

कंचन सिंह चौहान said...

is chouhan ko chandarbardai ki yad dila ji aapne.

दिनेशराय द्विवेदी said...

आप की इस रचना का प्रभाव नकारात्मक है। आप कब तक पाकिस्तान को गाली दे दे कर तालियाँ पिटवाते रहेंगे। ऐसी रचनाएँ कविता को कविता नहीं रहने देतीं। वीर रस के कवियों का धर्म होता है अपने सेनापति और सेना को उन की कमजोरियाँ याद दिलाना और युद्ध के लिए तैयार करना। आप की कविताएं तो जनता को ताली पीटने की कला सिखा रहीं हैं। आशा है इस आलोचना को सकारात्मक समझेंगे।

राज भाटिय़ा said...

बहुत सुंदर ओर हिम्मत से भरी एक कविता, ओर होना भी ऎसा ही चाहिये बिलकुल सही लिखा आप ने.
धन्यवाद

समयचक्र said...

ओजपूर्ण जागरण गीत... बिलकुल सही.

abhivyakti said...

aise hunkar ki zaroorat hai hamare desh ko.-jaya

sandhyagupta said...

Is kathin samay me utsah badhaane wali rachna.

PREETI BARTHWAL said...

योगेन्द्र जी बहुत ही अच्छी रचना है।

"अर्श" said...

बहोत ही भावनात्मक कविता लिखा है आपने मौदगिल साहब.. स्तब्ध हूँ इसलिए के हमें अपने को पहचानना भी नही आता ... आप सभी कवि मित्रो को मुंबई मिली जीत पे ढेरो बधाई ....

Pt. D.K. Sharma "Vatsa" said...

बहुत हि भावपूर्ण रचना. पूर्णत: वीर-रस में डुबी हुई.
बधाई स्वीकार करें

Satish Saxena said...

बहुत सुंदर रचना !

संगीता-जीवन सफ़र said...

देश के लिये निर्भिक शब्दों में सम्मान प्रकट करने वाले ओजस्वी कवि आपको शत-शत नमन|काश ये देशप्रेम राजनेताओं में भी होता?

राजा कुमारेन्द्र सिंह सेंगर said...

बहुत अच्‍छा है

Dr. Ashok Kumar Mishra said...

जीवन िस्थितयों को आपने बडे यथाथॆपरक ढंग से शब्दबद्ध िकया है । अच्छा िलखा है आपने । शब्दों में यथाथॆ की अिभव्यिक्त है । -
http://www.ashokvichar.blogspot.com

कडुवासच said...

... अत्यंत प्रभावशाली, प्रेरणादायक,शिक्षाप्रद अभिव्यक्ति है, शानदार-दमदार रचना के लिये ढेर-सारी शुभकामनाएँ।

गौतम राजऋषि said...

अंगार भरते शब्दों को इस संयोजन के लिये बधाई कविवर

स्वाति said...

सुंदर रचना !

दिगम्बर नासवा said...

या तो माफी मांगे या समझे सीमा संधान को.
वरना वो जाकर संभाले अपने कब्रिस्तान को.


"वक़्त आने पर बता देंगे तुझे ऐ आसमां"
आपने ठीक लिखा है, अब समय आ गया है

रंजना said...

सचमुच आवेश और अवसाद में प्रत्येक देशभक्त के मन में ऐसी ही भावनाएं आती हैं.बहुत ही सुंदर ओजपूर्ण कविता है.

Asha Joglekar said...

अत्यंत तेजस्वी, ओजस्वी रचना । बधाई ।