उल्लू बनाने में रहे............

खोखले सन्दर्भ सारे ही निशाने में रहे.
ज़िंदगी बुनती रही हम ताने-बाने में रहे.

उसकी पीड़ा के सभी पन्ने उघाड़े क्या हुये,
सारे संगी-साथी केवल खिलखिलाने में रहे.

जब हुई दस्तारबन्दी पीठ पर कोई न था,
सब तमाशाई सिरफ़ बातें बनाने में रहे.

अपना उल्लू सीधा करना तो हुनरमंदी मियां,
जिन को ये आता हुनर उल्लू बनाने में रहे.

एक दिन भी शक्ल देखी, ना दिखाई यार ने,
सामने पड़ते ही मजबूरी गिनाने में रहे.

बाप वो कैसे, समाजी हो के दिखलाये, बता,
पूत जिस के अपनी बहुऒं के ठिकाने में रहे.

क्या बताऊं, खून के रिश्ते खड़े किस मोड़ पर,
अब तो बस अंगार जैसे आशियाने में रहे.
--योगेन्द्र मौदगिल

27 comments:

डॉ. मनोज मिश्र said...

क्या बताउं खून के ...................आशियाने में रहे .| क्या लिख दिया है भाई जी , आपने इन लाइनों में , आप की पोस्ट को पढ़ना मुझे बहुत अच्छा लगता है

नीरज गोस्वामी said...

बेहतरीन..."हमने पीड़ा के सभी...." लाजवाब शेर कहा है आपने...पूरी ग़ज़ल कमाल की है...
नीरज

गौतम राजऋषि said...

लाजवाब गुरूवर...एकदम तारीफों से परे...हर शेर हट कर..दिल से दाद निकली है

किस तरह औ कैसे तेरी गज़लों पे हम दाद दें
पढ़ते-गुनते हम तो बस इनको सजाने में रहे...

adil farsi said...

खोखले सन्दर्भ सारे ही निशाने में रहे
जिंदगी बुनती रही हम ताने-बाने मे रहे..बहुत अच्छे..बधाई

Abhishek Ojha said...

हर बार की तरह कमाल है... अब कितनी बार 'बहुत बढ़िया' कहें ? कुछ नए शब्द अब आप ही सूझा दीजिये !

राज भाटिय़ा said...

क्या बताउं खून के रिश्ते....
योगेन्दर जी एक सच से भरपुर कविता हद दी आप ने ,क्या बात है, बहुत सुंदर.
धन्यवाद

अनुपम अग्रवाल said...

हमें सिखाया ना आपने उत्तर सवाल का
शिक्षक तो व्यस्त यूं प्रश्न सिखाने में रहे

संगीता-जीवन सफ़र said...

मानवीय संवेदना को व्यक्त करती आपकी ये कविता बहुत ही भावुक लगी!बहुत सुंदर!

ताऊ रामपुरिया said...

बहुत लाजवाब रचना ! शुभकामनाएं !

"अर्श" said...

एक दिन भी शक्ल देखि न दिखाई दोस्तों...
बहोत खूब लिखा है आपने मज़ा आगया बहोत बढ़िया ..... ढेरो साधुवाद ,स्वीकारें ...

Dr. Amar Jyoti said...

'हमने पीड़ा के…'
बहुत सुन्दर।
'रहिमन निज मन कि बिथा…'
याद आ गया।
बधाई।

Straight Bend said...

Another beautiful one and thought provoking! Loved 2nd, 5th and last She'r.

God bless.
RC

admin said...

बहुत प्यारी गजल। खासकर उल्लू वाला शेर तो सवाशेर है।

भारतीय नागरिक - Indian Citizen said...

bahut khoob, wah-wah

Anil Pusadkar said...

लाजवाब् .

शोभा said...

बाप वो कैसे समाजी हो के दिखलाये बता,
पूत जिस के अपनी बहुऒं के ठिकाने में रहे.

क्या बताऊं खून के रिश्ते खड़े किस मोड़ पर,
अब तो बस अंगार जैसे आशियाने में रहे.
बहुत बढ़िया गज़ल।

Ankit said...

नमस्कार मौदगिल जी,
आपको तो बस पड़ते रहने का मन करता है, कितनी आसानी से चुनिन्दा लफ्जों में और सरलता से बात कहने का हुनर लाजवाब है.
बेतरीन ग़ज़ल कही है आपने.

Smart Indian said...

एक दिन भी शक्ल देखी न दिखाई यार ने
सामने पड़ते ही मजबूरी गिनाने में रहे
बहुत सुंदर!

कंचन सिंह चौहान said...

bahut khoob...! Antim do sher mujhe aur bhi achchhe lage

Manuj Mehta said...

वाह बहुत खूब लिखा है आपने.

नमस्कार, उम्मीद है की आप स्वस्थ एवं कुशल होंगे.
मैं कुछ दिनों के लिए गोवा गया हुआ था, इसलिए कुछ समय के लिए ब्लाग जगत से कट गया था. आब नियामत रूप से आता रहूँगा.

डॉ .अनुराग said...

पहला शेर बहुत खूब लगा ...ताने बने में रहे

Pt. D.K. Sharma "Vatsa" said...

"बेहतरीन प्रस्तुति के लिये बधाई स्वीकारें"
वैसे आप हि की टिप्पणी कापी करके यहा टिप्पीया रहा हू.
इब नवे लफ्ज कडै तै टोह कै ल्यावै महाराज.

Ashok Pandey said...

खोखले संदर्भ सारे ही निशाने में रहे,
जिंदगी बुनती रही हम ताने-बाने में रहे।
बहुत सुंदर प्रस्‍तुति..हमेशा की तरह शानदार गजल।

रचना गौड़ ’भारती’ said...

लाजवाब,बेहतरीन,सरश्रेस्ठ,अतिउत्तम......
आपने बहुत अच्छा लिखा है ।
भावों की अभिव्यक्ति मन को सुकुन पहुंचाती है।
लिखते रहि‌ए लिखने वालों की मंज़िल यही है ।
मेरे द्वारा संपादित पत्रिका देखें
www.zindagilive08.blogspot.com
मेरी पत्रिका का अगला अंक महिलाओं पर है , आप कोइ सुन्दर रचना या व्यंग भेजें (womens day )
आर्ट के लि‌ए देखें
www.chitrasansar.blogspot.com

!!अक्षय-मन!! said...

bahut umda sir ji..



मैंने मरने के लिए रिश्वत ली है ,मरने के लिए घूस ली है ????
๑۩۞۩๑वन्दना
शब्दों की๑۩۞۩๑

आप पढना और ये बात लोगो तक पहुंचानी जरुरी है ,,,,,
उन सैनिकों के साहस के लिए बलिदान और समर्पण के लिए देश की हमारी रक्षा के लिए जो बिना किसी स्वार्थ से बिना मतलब के हमारे लिए जान तक दे देते हैं
अक्षय-मन

रविकांत पाण्डेय said...

क्या बताउं खून के रिश्ते....

वाह!वाह! कितनी सहजता से आपने पते की बात कही। अच्छी रचना के लिये बधाई।

दिगम्बर नासवा said...

क्या बात है
बहुत खूब लिखा, सुंदर अभिव्यक्ति