बेशक मारे महंगाई के रोम-रोम पुरनम होगा
जितनी तनखा उतने खरचे
ये सब हैं घर-घर के चरचे
लेकिन मध्यम व्यवसायी के
कैसे पूरे होते खरचे
यह गणित गर समझ लिया तो दर्द तुम्हारा कम होगा
बेशक मारे महंगाई के रोम-रोम पुरनम होगा
पीएफ बोनस छुट्टी भत्ते
पैंशन देती भोजन लत्ते
प्रायवेट में होकर बूढ़े
मिलते धक्के-सूखे गत्ते
भेदभाव यह रहा देखना और भी गहरा तम होगा
बेशक मारे महंगाई के रोम-रोम पुरनम होगा
देश में जो शिक्षा इक जैसी
देश में जो जनता इक जैसी
राजनीत क्यों करे फैसला
क्यों वोटों की ऐसी-तैसी
यही दौर जो रहा गति का हर पहलू बेदम होगा
बेशक मारे महंगाई के रोम-रोम पुरनम होगा
आरक्षण का अजब तमाशा
कहीं पै तोला कहीं पै माशा
किसी के दोनों हाथों लड्डू
और किसी को सिर्फ निराशा
रहा चलन जो यही सिसकता प्रतिभा का दम-खम होगा
बेशक मारे महंगाई के रोम-रोम पुरनम होगा
मन तो अपने में रमता हो
कैसे सामाजिक समता हो
कैसे पेट भरे जनता का
कैसे दूजे की ममता हो
गुणा-भाग ग़र यही रहा तो जीवन कोरा गम होगा
बेशक मारे महंगाई के रोम-रोम पुरनम होगा
--योगेन्द्र मौदगिल
21 comments:
मैं अव्वल आज.....
उचित शब्दों की तलाश में इस अनूठी रचना के लिये...और मैं हार मान लेता हूँ...
जितनी तनखा उतने खरचे
ये सब हैं घर-घर के चरचे
लेकिन मध्यम व्यवसायी के
कैसे पूरे होते खरचे...
ये गणित तो सारी समझों से परे है गुरूवर.
खूब-खूब तालियां इतनी सुंदर रचना पर
कमाल की रचना है ! लाजवाब ! बहुत शुभकामनाएं !
आपके एक-एक गीत/कविता में भारत की दशा बल्कि दुर्दशा का सचित्र वर्णन होता है.
देश में जो शिक्षा इक जैसी
देश में जो जनता इक जैसी
राजनीती क्यूँ करे फैसल
क्यूँ वोटो की ऐसी-तैसी
यही दौर जो रहा गति का हर पहलू बेदम हो
बेसक मरे महंगाई के रोम-रोम पुरनम होगा ....
बहोत ही तरीके और सलीके से मारा आपने कास के यही तो बात है आपमें जो औरों में नही शानदार हमेशा की तरह
ढेरो साधुवाद आपको साहब
जितनी तनखा उतने खरचे
ये सब हैं घर-घर के चरचे
लेकिन मध्यम व्यवसायी के
कैसे पूरे होते खरचे
घर घर की है यही कहानी
सबकी अलग अलग ज़ुबानी
हमेशा की तरह सुंदर रचना
बधाई
बहुत बेहतरीन रचना-हमेशा की तरह ..बधाई.
hamesha ki behatarin, dhnyabad
or mai mafi chahunga blog se kuchh dinon se gayab tha kyonki mai gaon gaya tha. par jaisa ki maine vada kiya tha driver bhai bus part-2 jaroor likhunga. dhnyabad
महंगाई, आरक्षण, राजनीति... बहुत खूब !
हमेशा की तरह शैली और रचना दोनों कमाल की !
satik.lajawab bahut khub
भाईया मै आज दस नम्बरी...
बहुत खुब लगी आप की यह कविता.... सभी की पोल खोलती, क्या महंगाई? क्या राजनिती?
धन्यवाद
Kadwa sach...
guptasandhya.blogspot.com
bahut khoobsurat rachna hai. itni khoobsurarti se aap baat keh jate hai.
आपकी गजलों की खासियत है इसकी सामाजिकता, जबकि ज्यादातर गजलें श्रृंगारिक होती हैं। यथार्थ बातें।
वाह ! यथार्थ का जो सटीक और सुंदर चित्रण किया है आपने,मन मुग्ध हो गया......साधुवाद..
जीवन के सच को साथॆक तरीके से अिभव्यक्त िकया है । अच्छा िलखा है आपने ।
http://www.ashokvichar.blogspot.com
बहुत सुंदर, आनंद आ गया!
सत्यतता को बहुत खूब उज़ागर किया आपने बहुत-बहुत बधाई...
" wah mehngayee kee saree history geography ka khaka taiyar kr diya aapne, behtrin rachna"
Regards
हमेशा की तरह लाजवाब !!
satya kaha...madhyam vargi ke kharche kaise chalte hai.n ve hi jaante hai.n... aur ye bhi sach ki jitni aay hai kharche utane hai.n .....:)
aap ki rachae.n hamesha shai jagah chot karti hai.n
Rom rom purnam hoga. Bahut saamyik, Yogee Badde aap hee kah sakte hen ye.
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