छह मुक्तक

हैं साधुऒं के भेष में शैतान आजकल.
गायब हुए जहान से इन्सान आजकल
हर चेहरे प नक़ाब के ऊपर नक़ाब है,
मुश्किल बहुत हर शख्स की पहचान आजकल.

जो भेद खुल गया तो शर्मसार हो गया.
हर आदमी धंदे का तलबग़ार हो गया.
कोई राम बेचता है, कोई नाम बेचता,
संतों के लिये धर्म कारोबार हो गया.

इस रंगबाज दुनिया में रंगों की मौज है.
सब जानते हैं, आजकल नंगों की मौज है.
जीते हैं शराफत से कहाते हैं बेवकूफ,
लुच्चों की खूब मौज, लफंगों की मौज है.

लो सभ्यता का दिनबदिन उत्कर्ष देख लो.
अरे, सास-बहू-टीवी में संघर्ष देख लो.
ना पद्मिनी, ना पन्ना और न लक्ष्मीबाई,
हैं मल्लिका व राखियां आदर्श देख लो.

जीने का सिर्फ नाम सा करता हूं आजकल.
सच कहूं तो किश्तों में मरता हूं आजकल.
बूढ़ों की हत्या, बच्चों से होता बलात्कार,
अखब़ार को पढ़ने से भी डरता हूं आजकल.

बेखुदी में कैसा दम भरने लगा है मन.
संदेह अपने आप पर करने लगा है मन.
लम्पट गुरूघंटाल, छोटी छोटी बच्चियां,
अब पाठशालाऒं से भी डरने लगा है मन.
--योगेन्द्र मौदगिल

27 comments:

ताऊ रामपुरिया said...

बहुत शानदार ! नमन आपको !

एस. बी. सिंह said...

बहुत बढ़िया । धन्यवाद

संगीता पुरी said...

बहुत ही अच्‍छा!!!!

रविकांत पाण्डेय said...

वाह! वाह!! मजा आ गया। सभी मुक्तक शानदार हैं।

"अर्श" said...

कोई राम बेचता है कोई नाम बेचता ,
संतो के लिए हो है ये कारोबार आजकल ...

बहोत खूब लिखा है साहब
बहोत बधाई ....

गौतम राजऋषि said...

सलाम है योगेन्द्र जी...एक और मजेदार जायका
वाह---इस रंगबाज दुनिया में रंगों की मौज है,सब जानते हैं आजकल नंगों की मौज है....हा हा

Mumukshh Ki Rachanain said...

भाई योगेन्द्र जी,
आपके सभी मुक्तक एक से बढ़ कर एक हैं
धंधों सभी रंग दिखा गए

हकीकत से रू-ब-रू करवाने के लिए धन्यवाद.

चन्द्र मोहन गुप्त

Udan Tashtari said...

बहुत बढ़िया!!!!!

राज भाटिय़ा said...

आज का सच, बहुत सुंदर
धन्यवाद

अमिताभ मीत said...

क्या बात है भाई ... हर रंग श्वेत-श्याम में दिखा दिया. बधाई.

Smart Indian said...

मीठी कविता में कड़वा सच - यही है कवि की शक्ति!

seema gupta said...

" bitter truth, but truth....."

Regards

भारतीय नागरिक - Indian Citizen said...

sir, abhi mere blog par bhi aisa hi hai, jahan se iska source hai, wahin kuchh dikkat hai, at: ise hataiyega nahi. doosre server ki dikkat door hote hi khud-b-khud theek ho jaayega

saadar aapka

poore samaaj ki sachchai udhed kar rakh di, aapne

Straight Bend said...

Yogendra ji, wo Ghazals jinper aapne meri tareeef kee hai.... meri nahin Jigar ki hain (Jigar Muradabadi, the great Shayar)!
The title says "Jigar".
Aapko pasand aayi, achcha laga. He is one of my favorites.
RC

pallavi trivedi said...

waah...sabhi muktak bahut shaandar hain.

Vinay said...

पुराने रंग में फिर लौट आये मौदगिल साहब बधाई हो, बढ़िया रचना करी है! मज़ा आ गया! अख़बार पढ़ने से भी डरता हूँ सही कहा इंसानियत जैसे लुप्त होती जा रही है!

डॉ .अनुराग said...

तीसरा मुक्तक ज्यादा पसंद आया.......

Manish Kumar said...

बहुत बढ़िया । धन्यवाद

adil farsi said...

बहुत सुंदर मुक्तक है ..बधाई

बवाल said...

Aha ! Mere yogi badde ka koyee javaab nahin. Satya ukera shilp ke lahje men. Kya kahna !

gaganjaingarg said...

wah modgil ji maja aagaya aaj ke is geruaa samaj kya khub likha hai aapki lekhni ka koi jawab nahi hai
aapko shatt shatt sadhuwad

समीर यादव said...

कमाल योगेन्द्र जी .....जीते हैं शराफत से कहाते हैं बेवकूफ....
इस लाइन में ही सब कह दिया आपने...इसलिए दोहरे चरित्र वालों की बन आई है.

जितेन्द़ भगत said...

कि‍श्‍तों में जी रहें हैं- क्‍या खूब कही आपने।

अनुपम अग्रवाल said...

मै आपकी रचनाओं से बहुत प्रभावित हूँ .
दो लाइने मन में आ रही हैं;
जो भेद खुल गया तो शर्मसार हो गया ,
हर आदमी धंधे का तलबगार हो गया ,
समझ आया तो नाम पे कारोबार हो गया
ना समझ आया तो परवरदिगार हो गया

दिगम्बर नासवा said...

योगेन्द्र जी
हमेशा की तरह इस बार भी ६ मुक्तक लिख कर आपने छका लगा दिया
हर मुक्तक लाजवाब है
सुभान अल्ला

Abhishek Ojha said...

एक से बढ़कर एक शानदार है कविवर ! नकाब उतार कर सच्चा चेहरा दिखा दिया है आपने.

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क्षमा चाहता हूँ, देर हो जाती है आजकल... एक परीक्षा है इसी रविवार और आजकल थोड़ा काम भी बढ़ गया है. ये पढ़ाई का सिलसिला रोकने की इच्छा ही नहीं हो रही. और इसी सिलसिले में ब्लॉग पर पोस्ट नहीं आ रहे और टिपण्णीयों में देरी :( पर शीघ्र ही थोड़ा नियमित होता हूँ.

धन्यवाद आपको मेरी याद आई :-)

Dr.Bhawna Kunwar said...

ये पंक्तियां तो दिलो दिमाग में उतर गई बहुत प्रभावी पंक्तियां हैं... बहुत-बहुत बधाई