जलते सूरज के पर, मन के भीतर खोजो.
क्यों भीग रहा अंबर, मन के भीतर खोजो.
क्यों बदल गये तेवर, मन के भीतर खोजो.
क्यों हो गये हम पत्थर, मन के भीतर खोजो..
अनसुलझे प्रश्न कितने मथते हैं जीवन को..
क्यों देह तरसती है जीवन भर यौवन को..
क्यों रिश्तों के ऊपर दीवारें भारी हैं..
बूआ से बहनों से क्यों बिटिया प्यारी है..
क्यों रिश्ते हैं नश्तर, मन के भीतर खोजो.
इन प्रश्नों के उत्तर, मन के भीतर खोजो..
चूल्हे दर चूल्हें हैं, हर चारदिवारी में..
कैक्टस ही कैक्टस हैं, सपनों की क्यारी में..
क्यों तोहमत के बादल घिर घिर कर आते हैं..
क्यों धब्बे जीवन का हिस्सा बन जाते हैं..
कब होंगें हम बेहतर, मन के भीतर खोजो.
इन प्रश्नों के उत्तर, मन के भीतर खोजो..
ये नकली सा जीवन, हम कब तक जीयेंगें..
तुम कहो गरल के घूंट, हम कब तक पीयेंगें..
कंक्रीट के जंगल में घर का एहसास नहीं..
इक हाथ को दूजे पर भी तो विश्वास नहीं..
क्यों मन भारी अक्सर, मन के भीतर खोजो.
इन प्रश्नों के उत्तर मन के भीतर खोजो..
पेड़ों पर, भ्रूणों पर, भई विपदा भारी है..
इनके-उनके-सबके, हाथों में आरी है..
जो बेटियां कम होंगी और पेड़ भी कम होंगें..
नयी नस्लों के हिस्से में ग़म ही ग़म होंगें..
ये पाप क्यों धरती पर, मन के भीतर खोजो.
इन प्रश्नों के उत्तर मन के भीतर खोजो..
--योगेन्द्र मौदगिल
31 comments:
कंकरीट के जंगल में घर का एहसास नहीं,
एक हाँथ को दूजे पर भी तो बिश्वास नहीं..
वह बहोत खूब मौदगिल साहब बहोत सुन्दर बहोत बहोत बधाई इसे रचना के लिए,...
अर्श
बहुत सारगर्भित रचना ! बहुत बधाई !
जीवन को सरल सहज एवं स्फ़ूर्त बनाने के लिये इन प्रश्नों का उत्तर खोजना बहुत जरूरी है। बढ़िया प्रस्तुति।
कंक्रीट के जंगल में घर का एहसास नहीं
इक हाथ को दूजे पर भी तो विश्वास नहीं
मार्मिक पंक्तियाँ!
आज के अनुत्तरित प्रश्नों को पूछती बहुत सुन्दर रचना !
घुघूती बासूती
बढ़िया...कवित्व ...निरंतर रहें.
योगेन्द्र जी बहुत ही सुंदर कविता
धन्यवाद
बहुत गहरा अर्थ लिए हुए है आपकी यह कविता !
vah kamal ki rachna ! dhanyavaad !
बिल्कुल भाई..मन के भीतर ही जबाब मिलेगा.
बहुत उम्दा!!
सही है साहब ! सारे जवाब मन की अन्दर ही हैं .... बहुत खूब.
अच्छा है..और जायका बदलने का ये अंदाज भी खूब है सर-सुंदर गज़लों के बीच में एक गीत.
वाह!!!!
सच है इन प्रश्नों के उत्तर मन के भीतर ही मिलेंगे!
" bhut sunder, bahvnatmk, amrmik prstutree hai, sach hai jo humare andr hai vhee hum bhar dhundty hain ye kaise mrgtreshna hai..."
Regards
bua se bahano se kyo bitiya pyari hai.... kyo rishte hai nashtar man ke bhitar khojo....!
sahi kaha...!
बहुत ही सुंदर गीत लिखा है आपने.
सही में हर प्रश्न का जवाब मन के भीतर छिपा हुआ है मगर हम कोशिश ही नही करते.
सुन्दर रचना। वास्तव में यदि अपने मन के भीतर खोजे तो उसे हर प्रश्न का जवाब मिल जाएगा।
सारगर्भित रचना
ठीक ही लिखा है आपने
सब बातों का जवाब मन के ही भीतर है
जरूरत है इमानदारी से उसे खोजने की
मन के भीतर ,
बहुत सुंदर
मुझे विश्वास था कि इस गंभीर रचना का भी आप स्वागत करेंगें
मैं आप सभी का वंदन-अभिनंदन कर स्वयं को धन्य मानता हूं
पिछली या उससे पिछली गजल के संदर्भ में आई एक टिप्पणी भाई विनय जी की थी वे हास्य-व्यंग्य चाह रहे थे तो विनय जी आज हास्य-व्यंग्य ही पोस्ट करूंगा
शेष शुभ
Achchi kavita! Rishton wala stanza(beheno buaaon se kyon beti pyaari hai) .. bahut pasand aaya. The flow of your poems is great and a lot of its credit goes to your vocab the langg you use. Using English words like 'Cactus' and 'Concrete', for me, hindered the flow.
Although, I believe what the Poet likes best to use is best for the Poem.
God bless.
RC
अपनी मेल चेक करने का श्रम करें, सर.
आपके ब्लॉग पर पहली बार आना हुआ और बहुत ही प्रभावशाली रचना पढ़ने को मिली बहुत-बहुत बधाई...
बेहद भावपूर्ण ओर अर्थ से भर गीत केक्टस वाली पंक्तिया खास पसंद आयी
इस बेहतरीन कविता में आपने ग़ज़ल का मर्म बयाँ कर दिया. बहुत ही बहुत सुंदर रचना है, योगी बड्डे क्या कहना ! अहा !
पेड़ों पर, भ्रूणों पर, भई विपदा भारी है..
इनके-उनके-सबके, हाथों में आरी है..
जो बेटियां कम होंगी और पेड़ भी कम होंगें..
नयी नस्लों के हिस्से में ग़म ही ग़म होंगें..
Bahut achchi panktiyaan.Badhai.
guptasandhya.blogspot.cm
बहुत गंभीर भावयुक्त कविता। नकली जीवन कब तक जीएंगे- मन के ऊपर महत्वपूर्ण सवाल।
दिल छु लेने वाली रचना के लिये हार्दिक बधाई
bahut hi sunder aur sachhi kavita hai
वाह ! अति सुंदर.......सारगर्भित भावपूर्ण मर्मस्पर्शी रचना के लिए साधुवाद.......
sir, ab try kijiye, script me apne blog ki spelling check kar lijiyega
योगेन्द्र जी बहुत अच्छा लिखा है, बहुत खूब।
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