दौरे-हाज़िर में लगते हैं जानो-ईमां खतरे में..
बूढ़ी टोपी-भोला बचपन, दोनों यकसां खतरे में..
इतने झंडे, इतने परचम, पता नहीं अब क्या होगा..?
मंदिर की मस्ज़िद की छोड़ो, इन्सां-इन्सां खतरे में..
उठती, उठती, उठती तेगें, कंगूरों तक जा पहुंची..,
मीनारों से बोले पंछी राम ऒ रहमां खतरे में..
कत्ल, डकैती, हिंसा, कर्फ्यू, आगजनी, मारामारी,
दहशत का माहौल है, सारी दुनिया की जां खतरे में..
धनपति बनने की इच्छा ने ऐसा पागल कर डाला,
अरमां, इन्सां, ईमां, सामां, आसो-इमकां खतरे में.
खेत हुये कालोनी, बेटे, शह्र में नौकर हो बैठे,
बूढ़ा पीपल देख रहा है दहकां-दहकां खतरे में..
बाहर सोहबत का हमला तो घर में टीवी का हमला,
बच्चे तो बच्चे हैं भैय्या बाप के अरमां खतरे में.
उद्योगों के मंसूबों में ऐसा डूब गये 'मुदगिल',
घाटी, बस्ती, जंगल, पर्वत, नदिया, मैदां खतरे में..
--योगेन्द्र मौदगिल
31 comments:
पढ़ कर ऐसा लगता है हमको
अब
जैसे खतरा भी खतरे में है जमकर।
बहुत अच्छा है भाई.
बहुत सटीक और सुंदर ! शुभकामनाएं !
सटीक्।
क्या बात है मोद्गिल जी....वाह,खेत हुये कालोनी,बेटे,शहर में नौकर हो बैठे / बूढ़ा पीपल देख रहा है दहकां-दहकां खतरे में
एक शक सा था मगर यदि आप निवारण करें,मैं तो अभी सीख ही रहा हूँ गज़ल की वर्तनी को.आपने {२२२२-२२२२-२२२२-२२२} के मीटर पर लिखा है तो "शहर में.." का "र" का वजन?
कल आपकी शिव ओम जी की चोरी वाली टिप्पणी के बाद करीब एक घंटे तक व्रत जी से बात हुई.सारा किस्सा सुन कर दहल गया मैं तो.
शिव ओम जैसे मंजे हुये गज़लकार भी ऐसी हरकत करने लगे,तो भगवान बचाये...
" wah kya jubaat vykt kiyen hai aaj ke halat pr sach hee to kha, subkee jan khtry mey hain...."
Regards
सुंदर लिखा आपने योगेन्द्र जी हमेसा की तरह ..बधाई स्वीकारें
bahut khooob..!
mandir ki masjid ki chhodo, insan insan khatre men
गजल में आज तो सार्वभौम संकट पर चिंता जाहिर की गई है, लाजवाब।
खेत हुये कालोनी, बेटे, शहर में नौकर हो बैठे,
बूढ़ा पीपल देख रहा है दहकां-दहकां खतरे में..
बहुत ख़ूब...
बहुत बेहतरीन ! दीपावली की शुभकामनाएं !
गौतम भाई,
मैंने इस गज़ल को करीब ६ बजे ब्लाग पर डाला था
आपने करीब ८ बजे पढ़ा
यदि ७ के आसपास पढ़ते तो एक-दो गलतियां और भी मिलती
लाइट सिर्फ सुबीर जी की नहीं जाती
हमारी भी जाती है
कुछ टाइपिंग में भी कईं बार ध्यान नहीं जाता
और एक बात मुझे भी कोई उस्तादाना गुमान नहीं है
galti rah bhi sakti hai or ho bhi sakti hai
लेकिन आपका शुक्रिया ही नहीं बहुत-बहुत शुकरिया
इधर मैं भी ब्लाग्स टटोलता रहता हूं
नाम नहीं लूंगा पर कल दो ऐसे सज्जनों के ब्लाग नज़र आये जो चरबा उतारने में माहिर हैं
मेरा मन अब कोई भी गज़ल पोस्ट करने से कतरा रहा है
एक-दो दिन विचारूंगा
विग्यान भाई ने मुझे दोनों प्रतियां भेजी थी अपनी भी और अंबर जी वाली भी
अच्छा एक बात और विचारें कि जब हम मिसरा तरहा पर शेर कहते हैं ज़मीन भी एक काफ़िये भी एक से और रदीफ तो एक रहता ही है तब कईं बार शेरों या कहन का या सोच का या विचार का मेल नहीं हो जाता क्या..?
खैर फिलहाल इतना ही ..
लाइट जाने का वक्त हो रहा है..
अभी अविनाश जी, मीत जी, ताऊ जी, अनिल जी, सीमा जी, लवली जी, कंचन जी, कामनमैन जी, जीतेन्द्र जी, फिरदौस जी, और भूतनाथ जी आप सभी का भी अभिवादन करता हूं
बहुत सही कहा आपने.अतिसुन्दर अभिव्यक्ति.
मौदगील जी के उपर वर्तनी का हमला ।
शेर्गजल और ब्लाग भी खतरे में ॥ हा हा हा
विचारिये नही श्री मान लिखते रहिये बधाइ देने वालो का प्रतिशत ज्यादा है !!अगर ज्यादा ही दिमाग घुम गया है तो अपने ब्लाग मे मोटे-मोटे अक्षर मे लिख दिजीये कि
हमारे ब्लाग मे आपको सब कुछ मिलेगा गीत कविता शेर शायरी और गलती भी क्योकि कुछ लोगो को सिर्फ़ गलती ही देखने की आदत होती है!!
और हा फ़ोटो जानदार थी!!
आपकी गजलों मैं कहे हुवे शब्द आस पास के ही लगते हैं, सटीक बात सुंदर शब्दों मैं
बहुत बढ़िया बात कही है. बधाई स्वीकारें.
बहुत अच्छी !
भाई जी...कमाल किया है आपने...सब को खतरे में डाल दिया...इतना बढ़िया लिखा है की अपनी तो शायरी ही खतरे में पड़ गयी है...जियो भाई जी जियो ...बहुत बहुत बहुत बहुत बहुत बहुत बढ़िया रचना..ढेरम ढेर बधाई...
नीरज
अच्छा प्रयोग था जो ख़तरे में नहीं है! बधाई और दीपावली की शुभकामनाएँ स्वीकारें।
प्रयोग खूब है...आप ही ऐसा कर सकते है.....
जी सर मैं यही जानना चाह रहा था आपसे.कल को आपके ब्लौग से उठा कर एक-दो गज़लें मैं अपने नाम से छपवा लूँ, और आपको पता भी न चले...ये आपकी सब रचनायें जो एक-से-बढ़कर एक हीरे-पन्ने-मोती हैं---किस्का मन ना ललचा जाये.
आप जरा गौर से सोचिये ....हाँ ये बात और है कि फिर हम जैसे आपकी गज़लों के दीवाने इन हीरे-पन्नों को रोज-रोज देखने से तरस जायेंगे.
योगेन्दर जी भाई आप ने तो आज के हालाल्त ही साफ़ दिखा दिये.... बहुत ही सुन्दर कविता लिखी है,
धन पति बनने की चाह ने.....बार बार पढने को मन करता है...
धन्यवाद
bahot khub dhnyabad, दीपावली की शुभकामनाएं
रंजना जी, दिगंबर जी, शोभा जी, अभिषेक जी, नीरज जी, विनय जी, डा अनुराग जी, भाटिया जी, और भवेश जी आप सभी का अभिवादन-अभिनंदन.
दीपक जी, आपने थोड़ा गलत अर्थ निकाल लिया मात्रिक एवं छांदसिक गलतियां अनेकानेक कारणों से होती चलती रहती है गज़लें न देने का अभिप्राय to इसलिये था कि इधर गज़लचोरों की संख्या में भी अच्छी-खासी वृद्धि हो गयी है.. सो...
खैर.....
गौतम जी, एक बात और यदि हम विग्यान जी और अंबर जी वाली घटना पर पुनर्विचार करें तो मेरे ख्याल में दोनों के ब्लाग या वेबसाइट नहीं हैं. छिटपुट रूप से अवश्य है और चोरी........ चोरी तो भाई किताब से या जिस भी प्रिंट माध्यम से rachna छपी हो वहां se भी हो सकती है
लोग गोष्ठी में मात्र सुन कर ही चरबा उतार लेते हैं
इसलिये मैं apne blog par गज़लें देता ही रहूंगा लेकिन पूर्व प्रकाशित अथवा संकलित-संगृहित.
आप सभी का जबरदस्त शुक्रिया.....
और हां सभी ब्लागर मित्रों को दीपपर्व की शुभकामनाएं................
वाह सर जी
अच्छी गजल है
इसे पढ़वाने का धन्यवाद
हमें भी कुछ सिखाते रहिये
पिछले महीने वाला कविसम्मेलन बहुत बढ़िया था
अब कब करवाएंगें
जरूर बताना सर जी
ek bargi fir se maudgil sahab apne lagaya satik si tippani.. bahot hi umda lekhan hai bahot bhaya sahab,iske santh santh aapko diwali ki dhero shubhkamanayen...
regards
arsh
बहुत सुंदर लिखा है | दिवाली की बधाई
दीप मल्लिका दीपावली - आपके परिवारजनों, मित्रों, स्नेहीजनों व शुभ चिंतकों के लिये सुख, समृद्धि, शांति व धन-वैभव दायक हो॰॰॰॰॰॰॰॰॰॰ इसी कामना के साथ॰॰॰॰॰॰॰॰॰॰॰॰॰॰॰॰॰॰ दीपावली एवं नव वर्ष की हार्दिक बधाई एवं शुभकामनाएं
आप सही कहते हैं, बाकई दुनिया की जान खतरे में है, और इसे खतरे में डाला है ख़ुद हमने.
गज़ब का लिखा है मुदगिल भाई !
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