सुराही में समंदर दीखता है.
मुझे खुद में कलंदर दीखता है.
जमीं पर देख अंबर दीखता है.
खयालों में बवंडर दीखता है.
मेरे हाथों में तेरा हाथ गोया,
मुझे सब कुछ ही सुंदर दीखता है.
जुगाड़ी ने जुगाड़ी कार-कोठी,
मुकद्दर का सिकंदर दीखता है.
मैंने पत्थर में पा लिया उस को,
मुझे हीरा भी कंकर दीखता है.
मुझे यादों ने छू लिया 'मुदगिल'
बड़ा दिलफैंक मंजर दीखता है.
--योगेन्द्र मौदगिल
20 comments:
मैंने पत्थर में पा लिया उस को,
मुझे हीरा भी कंकर दीखता है.
बहोत ही सुंदर मौदगिल साहब बहोत खूब वह मज़ा आगया ... आपको ढेरो बधाई ..
अर्श
सुंदर मौदगिल साहब ! मज़ा आगया
वाह मोदगिल जी वाह...भाई नए रंग की ग़ज़ल में मजा आ गया...बहुत खूब भाई...
नीरज
जुगाड़ी ने जुगाड़ी कार-कोठी,
मुकद्दर का सिकंदर दीखता है.
बहुत बढ़िया ! बेहतरीन ! बधाई !
हमें बताया गया उनके शब्दों में हास्य,
हमें तो उसमें छिपा एक खंजर दीखता है.
सुंदर रचना के लिए बधाई.
हमें बताया गया उनके शब्दों में हास्य,
हमें तो उसमें छिपा एक खंजर दीखता है.
सुंदर रचना के लिए बधाई.
मुझे यादों ने छू लिया 'मुदगिल'
बड़ा दिलफैंक मंजर दीखता है.
क्या ग़म है जिसको छुपा रहे हो साहब!
जुगाड़ी ने जुगाड़ी कार-कोठी,
मुकद्दर का सिकंदर दीखता है.
वाह वाह क्या बात है.
बहुत ही खुब
धन्यवाद
मैंने पत्थर में पा लिया उस को,
मुझे हीरा भी कंकर दीखता है.
--आए हाय...क्या बात है. बहुत खूब महाराज!! जमाये रहिये.
Bhar hi diya aapne phir se GAGAR MEN SAAGAR.
acchi ghazal hai
मैंने पत्थर में पा लिया उस को,
मुझे हीरा भी कंकर दीखता है.
satya vachan
बहूत खूब. सर आप कुछ आच्हा और अलग लिखते है.
सुराही में समंदर दीखता है.
मुझे खुद में कलंदर दीखता है.
bahut khoob.....
मैंने पत्थर में पा लिया उस को,
मुझे हीरा भी कंकर दीखता है.
वाह !
मेरे हाथों में तेरा हाथ गोया,
मुझे सब कुछ ही सुंदर दीखता है.
जुगाड़ी ने जुगाड़ी कार-कोठी,
मुकद्दर का सिकंदर दीखता है.
मैंने पत्थर में पा लिया उस को,
मुझे हीरा भी कंकर दीखता है.
ye vaale sher acche hain..
AAP SABHI KA BAHUT-BAHUT AABHAAR
bahut achcha likha..
simple and sweet
मैंने पत्थर में पा लिया उस को,
मुझे हीरा भी कंकर दीखता है.
अति सुंदर, योगेन्द्र भाई!
बहुत सुंदर काफ़ियों का प्रयोग...वाह वाह
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