सनसनी कर ली...

जब से पेड़ों से दुश्मनी कर ली.
हम ने दुश्वार जिन्दगी कर ली.

धूल-धूआं है ज़र्रे-ज़र्रे में,
जीते जी यार खुदकुशी कर ली.

एक सुविधा है पोलीथीन मियां,
हमने दुविधा मगर खुदी कर ली.

नीम-पीपल तो काट डाले पर,
युकेलिप्टस से दोस्ती कर ली.

अब तो दिन में च़िराग़ जलते हैं,
बंद किवाड़ों से तीरगी कर ली.

चौक पर इंतज़ार गाहक का,
हम ने नीलाम बेबसी कर ली.

ना बहू पास, ना ही पोते हैं,
दूर आंखों से रौशनी कर ली.

मेरे भीतर भी एक जंगल है,
कह दिया और सनसनी कर ली.

छोड़ के रिश्ते, तोड़ के यारी,
कर ली आरी से दोस्ती कर ली.

सच से रिश्ते को जोड़ कर तूने,
'मौदगिल' ये क्या दिल्लगी कर ली.
--योगेन्द्र मौदगिल

25 comments:

अमिताभ मीत said...

ना बहू पास, ना ही पोते हैं,
दूर आंखों से रौशनी कर ली.

बहुत खूब.

ताऊ रामपुरिया said...

नीम-पीपल तो काट डाले पर,
युकेलिप्टस से दोस्ती कर ली.
बहुत बढिया रचना ! शुभकामनाएं !

रंजू भाटिया said...

नीम-पीपल तो काट डाले पर,
युकेलिप्टस से दोस्ती कर ली.

बहुत खूब ..बढ़िया लगी यह

Anil Pusadkar said...

पुराने खज़ाने को छोड,नये कबाड से रिश्तेदारी कर ली।बहुत सुन्दर योगेन्द्र जी ,तारीफ़ के लिये शब्द नही है मेरे पास्। आपके शब्दों को,आपको प्रणाम करता हूं।

भारतीय नागरिक - Indian Citizen said...

sir, paryavaran pradooshit ho chuka hai, sab aankhen moonde baithen hain jiski keemat aane wali peedhion ko chukani padegi

भूतनाथ said...

सच से रिश्ते को जोड़ कर तूने,
'मौदगिल' ये क्या दिल्लगी कर ली.

भूतों से रिश्ते जोड़ कर और क्या होगा ?
पर बंधू आपके कवित्व को बारम्बार प्रणाम !

seema gupta said...

एक सुविधा है पोलीथीन मियां,
हमने दुविधा मगर खुदी कर ली.
'wah , great expression and thought on pollution also...'

regards

Unknown said...

बहुत ही बढिया रचना । आपकी बधाई

कंचन सिंह चौहान said...

एक सुविधा है पोलीथीन मियां,
हमने दुविधा मगर खुदी कर ली.

hmmm baat to sach hai..!

Dr. Amar Jyoti said...

बहुत ही सामयिक, सार्थक, और सशक्त रचना। बधाई।

डॉ .अनुराग said...

एक सुविधा है पोलीथीन मियां,
हमने दुविधा मगर खुदी कर ली.

नीम-पीपल तो काट डाले पर,
युकेलिप्टस से दोस्ती कर ली.

अब तो दिन में च़िराग़ जलते हैं,
बंद किवाड़ों से तीरगी कर ली.





kya bat hai .aaj ke samajik vijashyo par alag andaj se vyangya hai.

नीरज गोस्वामी said...

ना बहू पास, ना ही पोते हैं,
दूर आंखों से रौशनी कर ली.
भाई जी ये आप ने क्या लिख दिया...मेरे दिल की बात लिख डाली...वाह वाह...दरअसल अभी पिछली तीस तारिख को छोटे बेटे के पहला बेटा हुआ है...एक हफ्ता उसके पास रह के आया हूँ और अब सोच रहा हूँ की वापस आया ही क्यूँ ? आप का शेर पढ़ कर फ़िर से टिकट करवाली मैंने और फ़िर हफ्ते भर के लिए जा रहा हूँ...बहुत शानदार ग़ज़ल भाई बहुत ही शानदार...जय हो.
नीरज

शोभा said...

मेरे भीतर भी एक जंगल है,
कह दिया और सनसनी कर ली.

छोड़ के रिश्ते, तोड़ के यारी,
कर ली आरी से दोस्ती कर ली.

वाह! बहुत खूब.

Abhishek Ojha said...

पेंड पौधे... पालीथीन और रिश्ते बहुत अच्छी रचना है !

Vinay said...

आपकी रचना में दम है भई, हम पहले से ही आपके कायल हैं।

Anonymous said...

सच से रिश्ते को जोड़ कर तूने,
'मौदगिल' ये क्या दिल्लगी कर ली.

bahot hi sundar prastuti, dhnyabad

Udan Tashtari said...

बहुत अच्छी रचना ..वाह!

राज भाटिय़ा said...

ना बहू पास, ना ही पोते हैं,
दूर आंखों से रौशनी कर ली.
योगेन्दर जी बिलकुल सही लिखा...
ओलाद पास हॊ तो मन को शान्ति होती है
धन्यवाद

गौतम राजऋषि said...

बहुत सुंदर .....आपकी हर गज़ल अक से अक उम्दा निकलती जाअते है....

जितेन्द़ भगत said...

पर्यावरण पर आपकी बात सटीक लगी।

pallavi trivedi said...

वाह ..बहुत सार्थक और सटीक रचना.

"अर्श" said...

ek bar fir se aapne mara,bahot hi sundar wo v istarah se wah maudgil ji..
ना बहू पास, ना ही पोते हैं,
दूर आंखों से रौशनी कर ली
kya bat likh di hai aapne behtarin...
aapka mere blog me aana mere liya prerana shrot hai aapka hardik swagat hai blog me ...

regards

Smart Indian said...

बहुत सुंदर रचना है. निम्न पंक्तियाँ बहुत अच्छी लगीं:
ना बहू पास, ना ही पोते हैं,
दूर आंखों से रौशनी कर ली.

L.Goswami said...

क्या बात है हकीकत एक कटाक्ष के साथ ..सुंदर, बहुत सुंदर

विक्रांत बेशर्मा said...

बहुत ही सार्थक रचना है !!!!!!!!!