कांच के गिलास का गुलाब छोड़ दे
मौत का ये काला असबाब छोड़ दे
चीज़ है बहुत ये खराब छोड़ दे
मेरे पप्पा आज से शराब छोड़ दे
गैरजिम्मेवारियां रवानगी है क्या
रोज ही बहकना दीवानगी है क्या
गालियां ही फैसलों की बानगी है क्या
पीटना अम्मां को मरदानगी है क्या
ऐसी मर्दानगी का ख़ाब छोड़ दे
गुस्से की ज्वाला की यह ताब छोड़ दे
चीज़ है बहुत ये खराब छोड़ दे
मेरे पप्पा आज से शराब छोड़ दे
दादू बूढ़ा हार गया खीजता नहीं
दिल तेरा कतई पसीजता नहीं
अम्मां की आंखों का पानी सूखता नहीं
और पप्पा तुझे यह दीखता नहीं
नशे में जो मिलते खिताब छोड़ दे
काहे रे बना है तू नवाब छोड़ दे
चीज़ है बहुत ये खराब छोड़ दे
मेरे पप्पा आज से शराब छोड़ दे
कांप रहा पप्पा तेरा गात क्यूं बता
मेरे घर छायी काली रात क्यूं बता
सूने पड़े बूआ जी के हाथ क्यूं बता
लौटी दहलीज़ से बरात क्यूं बता
भले इन सवालों का जवाब छोड़ दे
मांगता है कौन ये हिसाब छोड़ दे
चीज़ है बहुत ये खराब छोड़ दे
मेरे पप्पा आज से शराब छोड़ दे
मुझको दिलादे तू किताब-कापियां
मुनिया को गुड़िया-थोड़ी सी टाफियां
बुआ जी लिये ला दे थोड़ी चूड़ियां
दादी को दवाई की दिला दे पुड़ियां
सांझ की रंगीनी लाजवाब छोड़ दे
बोतलों का आज से हिसाब छोड़ दे
चीज़ है बहुत ये खराब छोड़ दे
मेरे पप्पा आज से शराब छोड़ दे
--योगेन्द्र मौदगिल
21 comments:
दादू बूढ़ा हार गया खीजता नहीं
दिल तेरा कतई पसीजता नहीं
अम्मां की आंखों का पानी सूखता नहीं
और पप्पा तुझे यह दीखता नहीं
atyant marmik sundar ..bahut badhayi aapko
बहुत अच्छा लिखा है. बधाई स्वीकारें.
बढ़िया है यह :)
सच में शराब एक पूरे परिवार को पी जाती है ओर उसमे सबसे बुरे दौर से गुजरना पड़ता है स्त्री ओर बच्चो को ,आपने इस कविता के मध्याम से कुछ पीड़ा दिखायी है
योगेन्द्र जी क्या बात है । बहुत बढिया लिखा है आपने । ये कविता सच में एक सीख देती है । बहुत अच्छा लेखन बधाई।
ek bar fir aapne bhartiya parivesh pe kas ke ki tippani ka chot mara.. magar isse koi ek b sikh jaye to sone pe suhaga,bahot hi sundar kavita hai bahot maza aaya padh ke ...
regards
योंगेंद्र जी सामयिक कविता लिखी है । बधाई हो
सांझ की रंगीनी लाजवाब छोड़ दे
बोतलों का आज से हिसाब छोड़ दे
चीज़ है बहुत ये खराब छोड़ दे
मेरे पप्पा आज से शराब छोड़ दे
बहुत सुंदर और शिक्षादायक कविता ! धन्यवाद !
हाँ हद से ज़्यादा तो कुछ भी ख़राब होता, पियो मगर मौक़ा हो जब दस्तूर हो, लेकिन इसकी फ़िक्र किसे!
बहुत शानदार रचना ! पता नही ये जिंदा ही क्यूँ खींचते हैं ?
यह शराबी इतनी पीते क्यो है???? क्या उसे अपने बच्चो से प्यार नही होता?? क्या उसे अपने घर की इज्जत जाती नही दिखती????
क्यो कोई इतनी पीता है???
आप कॊई कविता पढ कर मै बहुत कुछ सोचने पर मजबुर हो गया,अगर शराबी ना पीये तो कितने लोगो को खुश देख सकता है.
धन्यवाद एक भाव पुरण कविता के लिये.
अब आप प्रोफ़ाईल पर भी मुझे मिल सकते है
बहुत अच्छी बात कही है योगेन्द्र भाई. और बड़ी खूबसूरती से.
नमस्कार योगेन्द्र जी,
बहुत ही अच्छी और सत्य को छूती कविता लिखी है. एक आम बात को आपने अपने शब्दों में इतनी खूबसूरती से कहा जिसे चंद लफ्जों में बयान करना बेमानी लगता है.
मेरी तरफ़ से बधाई स्वीकारें.
कांच के गिलास का गुलाब छोड़ दे
मौत का ये काला असबाब छोड़ दे
चीज़ है बहुत ये खराब छोड़ दे
मेरे पप्पा आज से शराब छोड़ दे...
kya baat hai...
अविनाश जी आप और योगेन्द्र जी दोनों हमारे मित्र हुए और यह दिवस, सप्ताह, पखवाड़ा या वर्ष में नहीं अनवरत चले. हिन्दी के विकास और हिन्दी की प्रतिष्ठा के साथ.
योगेन्द्र जी
बहुत सटीक कविता है
कुछ ही शब्दों में गहरी बात कही है
समस्या को बयान करती कविता है...
बड़ा मार्मिक और सटीक आग्रह है. काश लोग ये आग्रह मान लें !
सही कहा आपने पर क्या करे पीने वालो का !!गावो मे तो ये आलम है कि...
इनके बच्चे नंगे घुमेंगे
और ये नशे मे झुमेंगे
bahut umda rachna
regards
अपने शराबी पिता की लत छुड़ाने के लिए प्रेरित करनेवाली बड़ी मार्मिक कविता रही ये। गुहार में अजब पीड़ा थी।
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