खुदा गुम है....

बातों से यार, फलसफा गुम है.
मेरा खुद से ही वास्ता गुम है.

मेरी आंखों में खोज ले उस को,
फिर न कहना यहां खुदा गुम है.

मौन पीपल है, चुप है मौलशिरी,
इस कदर सांझ से हवा गुम है.

दरमियानी सी सांवली छोरी,
कितनी खुश है कि आईना गुम है.

लोग विग्यापनों को बांच रहे,
मानो खबरों से वाकया गुम है.

दक्षिणा, चंदा-दान आश्रम का,
यही मुखरित है बस कथा गुम है.

लड़कियों ने बदल लिये चश्मे
बाप कहता है कि हया गुम है

मुआ जोबन है 'मौदगिल' बैरी,
गुम हैं गलियां तो रास्ता गुम है.
--योगेन्द्र मौदगिल

30 comments:

Advocate Rashmi saurana said...

kya baat hai Yogendra ji. bhut sundar. jari rhe.

आलोक साहिल said...

mast kar diya aapne yogendr ji,jhakka........
ALOK SINGH "SAHIL"

जितेन्द़ भगत said...

सही कहा कि‍ हमारे पास सैकड़ों मुद्दे हैं पर शायद कोई भी मुद्दा नहीं है-
लोग विग्यापनों को बांच रहे,
मानो खबरों से वाकया गुम है.

और खुशफहमी में भी लापरवाह रहने की मौज होती है-
दरमियानी सी सांवली छोरी,
कितनी खुश है कि आईना गुम है.

पढ़कर मजा आ गया।

seema gupta said...

मेरी आंखों में खोज ले उस को,
फिर न कहना यहां खुदा गुम है.
' kmaal kee lines, behtreen, straight from the heart"

Regards

परमजीत सिहँ बाली said...

बहुत बढिया गजल है।

मेरी आंखों में खोज ले उस को,
फिर न कहना यहां खुदा गुम है

MANVINDER BHIMBER said...

बातों से बात-फलसफा गुम है.
मेरा खुद से ही वास्ता गुम है.

मेरी आंखों में खोज ले उस को,
फिर न कहना यहां खुदा गुम है.
bahut sunder likha hai

शोभा said...

लोग विग्यापनों को बांच रहे,
मानो खबरों से वाकया गुम है.

दक्षिणा, चंदा-दान आश्रम का,
यही मुखरित है बस कथा गुम है.

मुआ जोबन है 'मौदगिल' बैरी,
गुम हैं गलियां तो रास्ता गुम है.
हास्य विनोद का सुन्दर संगम । वाह

Ashok Pandey said...

हमेशा की तरह खूबसूरत शायरी। धन्‍यवाद।

नीरज गोस्वामी said...

दरमियानी सी सांवली छोरी,
कितनी खुश है कि आईना गुम है.
मोदगिल भाई आप नहीं जानते आप ने क्या लिख दिया है....वाह...ऐसे शेर बरसों में लिखे जाते हैं और अचानक हो जाते हैं...कमाल है भाई...कमाल....जय हो.
नीरज

Udan Tashtari said...

दरमियानी सी सांवली छोरी,
कितनी खुश है कि आईना गुम है.


-बहुत जबरदस्त!!

कुश said...

sare hi sher lajawab hai.. par ye to shaandar hai..
मेरी आंखों में खोज ले उस को,
फिर न कहना यहां खुदा गुम है.

Anonymous said...

मेरी आंखों में खोज ले उस को,
फिर न कहना यहां खुदा गुम है.

दरमियानी सी सांवली छोरी,
कितनी खुश है कि आईना गुम है.

लोग विग्यापनों को बांच रहे,
मानो खबरों से वाकया गुम है.

waah.....bahut khub

"अर्श" said...

दरमियानी सी सांवली छोरी,
कितनी खुश है कि आईना गुम है.

mukammal sher hai bahot hi umda hai rachana....bahot hi sundar bhav dala hai khaskar is sher me......sundar rachana ke liye badhai..............


regards
Arsh

श्रद्धा जैन said...

मेरी आंखों में खोज ले उस को,
फिर न कहना यहां खुदा गुम है.

kya baat hai

मौन पीपल है, चुप है मौलशिरी,
इस कदर सांझ से हवा गुम है.

gazab ka andaaz hai ji

दरमियानी सी सांवली छोरी,
कितनी खुश है कि आईना गुम है.

kamaal kaha hai



मुआ जोबन है 'मौदगिल' बैरी,
गुम हैं गलियां तो रास्ता गुम है.

ji ji ji bus yahi sach hai

डॉ .अनुराग said...

kya baat kahi hai aapne......
दरमियानी सी सांवली छोरी,
कितनी खुश है कि आईना गुम है.
aor ye....
लोग विग्यापनों को बांच रहे,
मानो खबरों से वाकया गुम है.

Abhishek Ojha said...

"मेरी आंखों में खोज ले उस को,
फिर न कहना यहां खुदा गुम है."

बहुत खूब !

योगेन्द्र मौदगिल said...

आप की टिप्पणियां सच में संजीवनी हैं...
जय हो......

भूतनाथ said...

आप तो गजब की रचना करते हैं ! आप की नक़ल मार
कर आज मैंने भी एक कविता लिखी है ! ज़रा उसका
अवलोकन करके अपने विचार दे !

दीपक "तिवारी साहब" said...

बहुत सुंदर रचना ! तिवारी जी का सलाम आपको !

ताऊ रामपुरिया said...

भाई मौदगिल जी शेर क्या आज तो असली चाल्हे ही रौप राखे सै !
यो सांवली छोरी आला तो घणा जोरदार सै ! इत आइना की गायब होण
की कल्पना गजब कर री सै ! वाह भाई वाह !

makrand said...

अति सुन्दरतम ! बहुत बहुत बधाई और शुभकामनाए

रश्मि प्रभा... said...

मौन पीपल है, चुप है मौलशिरी,
इस कदर सांझ से हवा गुम है........

bahut hi utkrisht rachna lagi

राज भाटिय़ा said...

योगेन्दर जी क्या बात हे . आप की यह कविता हमेशा की तरह से बहुत ही अच्छी लगी....
मेरी आंखों में खोज ले उस को,
फिर न कहना यहां खुदा गुम है.
सच मे आज के युग मे ...
धन्यवाद

Kavita Vachaknavee said...

वाह - वाह!

समय मिले तो आज कल में सम्पर्क करें! आप के लिए एक नई योजना का विचार है।

यों आगामी सप्ताह यात्रा पर निकल रही हूँ। केदार सम्मान समारोह व सेमिनार की व्यस्तता है। अक्तूबर पहले सप्ताह के बाद थोडी़ राहत हो शायद।

अनूप शुक्ल said...

गुड है। गुमसुदगी की रपट दर्ज है।

Manish Kumar said...

क्या बात है हर एक शेर उम्दा लगा इस ग़ज़ल का !

Vinay said...

मेरी आंखों में खोज ले उस को,
फिर न कहना यहां खुदा गुम है.

दक्षिणा, चंदा-दान आश्रम का,
यही मुखरित है बस कथा गुम है.

both are really amazing!

मोहन वशिष्‍ठ said...

कभी बलियों उछलती हैं निगाहें.
कभी घण्टों फिसलती हैं निगाहें.

मदरसा, दैर हो, थाना या कोठा,
कईं कपड़े बदलती हैं निगाहें.

बेहतरीन रचना है अति उत्‍तम बधाई

Smart Indian said...

मौन पीपल है, चुप है मौलशिरी,
इस कदर सांझ से हवा गुम है.

दरमियानी सी सांवली छोरी,
कितनी खुश है कि आईना गुम है.

Excellent!

Satish Saxena said...

बहुत बढ़िया लिखते हो मौदगिल भाई !