खबरदार

एक आदमी
घर में पालने के लिये
कुत्ता खरीदने बाजार आया
कुत्तों के मालिक ने उसे
अपना पूरा संग्रहालय दिखाया
आदमी को एक छोटे से
पिल्ले पर आ गया प्यार
कीमत चुका कर
उसे ले जाने को
हो गया तैयार
चलते समय पिल्ले ने
बड़े ही मान और दुलार से
अपनी मां को
चाटा और सहलाया
मां की आंखों की कोरों में
पानी भर आया
अपने मन पर काबू रख कर
उसने पिल्ले को समझाया
बेटे जा रहे हो..
अलविदा...
लेकिन याद रखना
जिस किसी का भी नमक खाना
उसे दगा मत देना
उसका अहित मत करना
अपने मालिक का
आजीवन साथ निभाना..
हर कीमत पर
सदैव अपना पशु धर्म निभाना..
लेकिन खबरदार...
आदमी के साथ रहते-रहते
आदमी मत बन जाना..
आदमी मत बन जाना..
--योगेन्द्र मौदगिल

11 comments:

राजीव रंजन प्रसाद said...

लेकिन खबरदार...
आदमी के साथ रहते-रहते
आदमी मत बन जाना..
आदमी मत बन जाना.

सच है, आदमी से बडा जानवर कहाँ है...


***राजीव रंजन प्रसाद

www.rajeevnhpc.blogspot.com
www.kuhukakona.blogspot.com

vipinkizindagi said...

सर , क्या कसकर मारा है. मज़ा आ गया....

लेकिन खबरदार...
आदमी के साथ रहते-रहते
आदमी मत बन जाना..
आदमी मत बन जाना.

ताऊ रामपुरिया said...

लेकिन खबरदार...
आदमी के साथ रहते-रहते
आदमी मत बन जाना..

बहुत जोरदार व्यंग है भ्राता ! बधाई हो !

ताऊजी said...

सही है कुत्ते को भी आदमी कहलवाना
गाली लगती है ! शानदार कविता के
लिए धन्यवाद !

Anil Pusadkar said...

shaandar.bada karara tamaacha hai ye aaj ke aadmi ke muh par,badhai aapko sateek shabd baano ke liye

राज भाटिय़ा said...

योगेन्द्र जी, बहुत ही दम दार कविता हे,
लेकिन खबरदार...
आदमी के साथ रहते-रहते
आदमी मत बन जाना..
धन्यवाद

Nitish Raj said...

लेकिन खबरदार...
आदमी के साथ रहते-रहते
आदमी मत बन जाना..
देखो कुत्ता भी आदमी बनने से
डरता है, कतराता है
बहुत बढ़िया, धन्यवाद
http://nitishraj30.blogspot.com
http://poemofsoul.blogspot.com

seema gupta said...

लेकिन याद रखना
जिस किसी का भी नमक खाना
उसे दगा मत देना
उसका अहित मत करना
अपने मालिक का
आजीवन साथ निभाना..
हर कीमत पर
" bhut khub, kya adda hai, yhan to inssan bhee dga dey jateyn hain aise mey ik janvar se vfaa ke umeed???? bhut khub a good post"

Regards

नीरज गोस्वामी said...

योगेन्द्र भाई
आप की रचना पढ़ कर गोपाल दस "नीरज" जी का लिखे गीत की चंद लाईने याद आ गयीं:" जानवर आदमी से ज्यादा वफादार है...खाता है कोडा भी...रहता है भूखा भी...फ़िर भी ये मालिक पे करता नहीं वार है...और इन्सान ये...माल जिसका खाता है, गीत जिसके गाता है...प्यार जिससे पाता है...उसके ही सीने में भौंकता कटार है....
नीरज

योगेन्द्र मौदगिल said...

भाई बालकिशन जी, मैं कुछ प्रयोग कर रहा था कि आपकी टिप्पणी हट गई. मुझे खेद है.
राजीव जी, विपिन जी, अनिल जी, नीरज जी, सीमा जी, आपकी निरन्तरता को नमन करता हूं.
नीतीश जी, फंदेबाज जी पहली मुलाकात के लिये आभार प्रगट कर आपके स्नेह को हल्काऊंगा नहीं.
भाटिया जी आपसे तो वादा किया था कि कुत्ते पर कविता पोस्ट करूंगा. सो कर दी.
हैरी महाराज को सैम महाराज के कल दर्शन कराऊंगा.
पीसी भाई आप हो हरियाणा के, आप हर बार आया करो, आपकी भी जरूरत सै..
जो लोग अभी भी दूरी बनाए है
उनकी क्षमता को भी प्रणाम

ज़ाकिर हुसैन said...

लेकिन खबरदार...
आदमी के साथ रहते-रहते
आदमी मत बन जाना..
आदमी मत बन जाना.

वाह योगेन्द्र साहब
कमाल की खिंचाई कर दी आपने तो.
मज़ा आ गया.