क्षणिकाएं


सीएम के आदेशानुसार
गांव-गांव नये थाने लगे
हाय री विडम्बना
अब तो डाकू
दिन में भी आने लगे


बगैर रिश्वत
सरकारी नौकरी का स्वप्न
देखते हुए
ग्रेजुएट अलादीन ने
चिराग घिसाया
समझदार जिन्न
बाहर ही नहीं आया
--योगेन्द्र मौदगिल

10 comments:

admin said...

सीएम के आदेशानुसार
गांव-गांव नये थाने लगे
हाय री विडम्बना
अब तो डाकू
दिन में भी आने लगे।

आपकी सच्चाई का बहुत ही चुटीला वर्णन किया है। आशा है आगे भी इसी प्रकार चुटीली रचनाएं पढवाते रहेंगे।

कुश said...

जबरदस्त लेखन.. कम शब्दो में मारक बात.. बहुत बहुत बधाई

राज भाटिय़ा said...

योगेन्द्र जी,क्या बात हे आप की लेखनी की,जब गावं मे थाने नही थे तो शान्ति थी, ओर अब :) :) ओर वो समझदार जिन्न बेचारा गरीब हो गा, आप की क्षणिकाएं बहुत ही सुन्दर हे, दिल से धन्यवाद

seema gupta said...

बगैर रिश्वत
सरकारी नौकरी का स्वप्न
देखते हुए
ग्रेजुएट अलादीन ने
चिराग घिसाया
समझदार जिन्न
बाहर ही नहीं आया
"ha ha ha ha this is the best one i liked, kya jmana aa gya hai, bina rishvat liye jinn bhee kaam nahee kerta wonderful"

Regards

रंजू भाटिया said...

बगैर रिश्वत
सरकारी नौकरी का स्वप्न
देखते हुए
ग्रेजुएट अलादीन ने
चिराग घिसाया
समझदार जिन्न
बाहर ही नहीं आया

:) bahut accha

Ashok Pandey said...

हास्‍य-व्‍यंग्‍य की इन क्षणिकाओं में गागर में सागर भरा है। बहुत खूब।

Udan Tashtari said...

सटीक!!बहुत उम्दा.

शोभा said...

सीएम के आदेशानुसार
गांव-गांव नये थाने लगे
हाय री विडम्बना
अब तो डाकू
दिन में भी आने लगे
बहुत शुन्दर लिखा है. बधाई स्वीकारें.

Mumukshh Ki Rachanain said...

मौदगिल जी,

शानदार हास्य रस प्रस्तुति के लिय धन्यवाद
ग्रेजुएट को समझदार जिन्न ने
उसके ज्ञान की क्या औकात बताई
आप की निम्न कविता ने उसे
जन साधारण कों भी दर्शाई .....................

बगैर रिश्वत
सरकारी नौकरी का स्वप्न
देखते हुए
ग्रेजुएट अलादीन ने
चिराग घिसाया
समझदार जिन्न
बाहर ही नहीं आया

चन्द्र मोहन गुप्त

ताऊ रामपुरिया said...

भई यो क्षणिकाएं सें या पृथ्वी मिसाईल ?
गजब की मारक क्षमता है ! धन्यवाद !