तुष्टिकरण का नाटक बेखौफ चल रहा है.
जनता सिसक रही है और जम्मू जल रहा है.
भगवान से भरोसा भी उठ गया है बंधु,
ना जाने किस भरोसे अब देश चल रहा है ?
कर लूं मैं लूटमारी या फिर मैं रेप कर लूं,
जब से पहन ली खादी मेरा मन मचल रहा है.
इक यार दूसरे को है काटने में माहिर,
इस क़ौमी हिजड़ेपन से तन-मन उबल रहा है.
आतंकियों को अब तो मिलने लगी रियायत,
दरपन दिखाने वाला घर ही बदल रहा है.
वोटों की राजनीति ने कैसा दिन दिखाया,
जनता-जनार्दन को शासन कुचल रहा है.
अमराई जल रही है, पत्ते धधक रहे हैं,
जो बच गईं वो कलियां माली मसल रहा है.
--योगेन्द्र मौदगिल
13 comments:
sir, bahut achcha likha hai,
sahi chot hai aaj ke halat par....
तुष्टिकरण का नाटक बेखौफ चल रहा है.
जनता सिसक रही है और जम्मू जल रहा है.
"ah! ab kya khen, bhgvan hee malik hai, insaan to kuch kr nahee sektey, sub khamosh hain..."
Regards
आदरणीय योगेन्द्र जी,
आपकी रचनायें बेमिसाल हैं। व्यंग्य का पैनापन इसे ही कहते हैं जब मुस्कुराने में भी दर्द आँखों में उतर आयें...आपकी यह रचना मन छील देती है।
***राजीव रंजन प्रसाद
कर लूं मैं लूटमारी या फिर मैं रेप कर लूं,
जब से पहन ली खादी मेरा मन मचल रहा है.
योगेन्द्र जी,
आप ने आज के हालात पर करारी चोट की हे सचित्र कर दिया हे आप के शव्दो ने, कोई भी फ़िकर नही कर रहा देश की, जनता की.सब को वोटो की पडी हे अपनी जेब की पडी हे.
धन्यवाद एक बहुत ही सुन्दर कविता के लिये
पहली बार आपके ब्लॉग पर आया
काफी अच्छा व्यंग लिखते हैं आप. और भी अच्छा लिखने के लिए शुभकामनाएं.
साथ ही हौसला अफजाई के लिए शुक्रिया.
नेट पर काम बैठ पाता हूँ, इस लिए काम शब्दों में लिखना पड़ रहा है
कारारी थप्पड़ मारा आपने इस रुग्न व्यवस्था के ऊपर.
बहुत खूब.
अच्छा लिखे हैं.
बधाई.
अमराई जल रही है, पत्ते धधक रहे हैं,
जो बच गईं वो कलियां माली मसल रहा है
योगेन्द्र भाई...आप तो बस कमाल ही हैं....क्या व्यंग रचना है...एक दम सटीक वर्णन है आज की स्तिथि का...
नीरज
समकालीन समाज का नग्न चित्रण प्रस्तुत किया है आपने इस गजल में।
एक बेहतरीन गजल के लिए बहुत बहुत बधाई।
दिल की बात को शब्द दे दिये आपने !
aap sabhi ki sakriyata se abhibhoot hoon. aabhar....
बेहतरीन गजल के लिए बहुत बधाई।
ज़िन्दगी के सबसे ख़ौफ़नाक मन्ज़रों को आपने एक ग़ज़ल बनाकर पेश किया, कमस-कम कोई इसे पढ़कर ही सुधर जाये ! यह रचना अच्छे बुरे के तराज़ू में नहीं तौली जा सकती, बस इतना ही कहूँगा ऐसी रचना आपसा ही कोई श्रेष्ठ लिख सकता है!
कर लूं मैं लूटमारी या फिर मैं रेप कर लूं,
जब से पहन ली खादी मेरा मन मचल रहा है.
बिल्कुल सही कटाक्ष किया है आपने आज की राजनीति पर..
सभी शेर बब्बर शेर की भाँती दहाड़ते हुए लगे..
सुन्दर अभिव्यक्ति पर बधाई स्वीकारें..!!
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