एक ग़ज़ल आप सब के लिए
बच्चों के बीच दादी के किस्से संभालिये
बाबा की आन-बान के खूंटे संभालिये
अम्माँ की याद, तुलसी के बिरवे संभालिये
फसलों के साथ आपसी रिश्ते संभालिये
बुआ के साथ रख लियो कुछ मौसियों की याद
और भाभियों से प्यार के हिस्से संभालिये
कुनबे को इस तरह से वो रखता था बाँध कर
उस मिटटी के चूल्हे के वो ज़ज्बे संभालिये
मंदिर की सीढ़ियों का उतरना वो ताल में,
उस पहले-पहले प्यार के चरचे संभालिये
फ्रिज ले तो आए घर में ये भी ठीक है मगर
वो नीम के नीचे धरे मटके संभालिये
रिश्ते तलक हो जाते थे बस खेल खेल में
चौपाल में हँसते हुए बुड्ढे संभालिये
सिलबट्टा, चिमटा, पालना, संदूक, ओखली,
लस्सी, खटोला, ताश के पत्ते संभालिये
शायद दीये की आस लिए सो रहे हैं वो
पीपल के नीचे 'मौदगिल' पुरखे संभालिये
-- योगेन्द्र मौदगिल
प्रस्तुत ग़ज़ल मेरे ग़ज़ल संग्रह 'आजकल के दौर में' से
बच्चों के बीच दादी के किस्से संभालिये
बाबा की आन-बान के खूंटे संभालिये
अम्माँ की याद, तुलसी के बिरवे संभालिये
फसलों के साथ आपसी रिश्ते संभालिये
बुआ के साथ रख लियो कुछ मौसियों की याद
और भाभियों से प्यार के हिस्से संभालिये
कुनबे को इस तरह से वो रखता था बाँध कर
उस मिटटी के चूल्हे के वो ज़ज्बे संभालिये
मंदिर की सीढ़ियों का उतरना वो ताल में,
उस पहले-पहले प्यार के चरचे संभालिये
फ्रिज ले तो आए घर में ये भी ठीक है मगर
वो नीम के नीचे धरे मटके संभालिये
रिश्ते तलक हो जाते थे बस खेल खेल में
चौपाल में हँसते हुए बुड्ढे संभालिये
सिलबट्टा, चिमटा, पालना, संदूक, ओखली,
लस्सी, खटोला, ताश के पत्ते संभालिये
शायद दीये की आस लिए सो रहे हैं वो
पीपल के नीचे 'मौदगिल' पुरखे संभालिये
-- योगेन्द्र मौदगिल
प्रस्तुत ग़ज़ल मेरे ग़ज़ल संग्रह 'आजकल के दौर में' से